Shani Pradosh vrat 2020 : शनि पुष्य के दुर्लभ संयोग में आ रहा है शनि प्रदोष व्रत
नई दिल्ली। शनि प्रदोष के साथ शनि पुष्य का दुर्लभ और सर्वसिद्धिदायक संयोग 7 मार्च 2020 को बन रहा है। ऐसा संयोग कई वर्षों में एक बार बनता है जब शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र और प्रदोष व्रत दोनों साथ आ जाए। इस संयोग वाला दिन अनेक प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस दिन प्रदोष व्रत होने से न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है, बल्कि शनि पुष्य होने के कारण शनि की पीड़ा से मुक्ति के अलावा धन संपत्ति और जीवन में स्थायित्व की प्राप्ति वाला दिन भी होता है।
शनि प्रदोष का महत्व
भगवान की शिव की पूजा-भक्ति आयु, आरोग्य प्रदाता और संकटों का नाश करने वाली होती है। अचानक आने वाली दुर्घटनाओं से भी शिव की भक्ति रक्षा करती है। भगवान शिव वैसे तो छोटे-छोटे प्रयासों से ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन कुछ विशेष दिन उनकी भक्ति के लिए खास होते हैं। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन शनिवार या सोमवार का संयोग होना इस व्रत के फल को कई गुना बढ़ा देता है। इस बार शनि प्रदोष व्रत फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी 7 मार्च 2020 को आ रहा है। शनि प्रदोष व्रत के दिन न केवल भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है बल्कि शनिदेव की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती लगी हुई है। शनि का लघुकल्याणी ढैया चल रहा है। जिन लोगों की कुंडली में शनि खराब अवस्था में हैं। वक्री होकर नेष्टकारक है, उन्हें शनि प्रदोष का व्रत अवश्य करना चाहिए।
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कैसे करें शनि प्रदोष की पूजा
शनि प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नहाने के जल में गंगा, नर्मदा, यमुना आदि पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें। घर के पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ करके पूर्वाभिमुख होकर भगवान शिव समेत उनके पूरे परिवार का पूजन करें। शिव का पंचामृत से स्नान कराएं। आंकड़े के फूल, बेल पत्र, धतूरा, अक्षत आदि से पूजन कर नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति या जिस किसी विशेष प्रयोजन के लिए प्रदोष व्रत कर रहे हैं उसे बोलकर व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निराहार रहते हुए संयम का पालन करते हुए बिताएं। शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन करें। अभिषेक करें। इस दिन शनिवार है इसलिए शनि स्तवराज, शनि चालीसा या शनि के मंत्रों का जाप भी करें। प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पूर्व का होता है। उस समय में ही प्रदोष का पूजन संपन्न करना चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत का फल
- शनि प्रदोष व्रत के फल से शनिजनित रोग, कष्ट, पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।
- शनि कुंडली में अशुभ फल दे रहा हो तो उनमें शांति आती है।
- शनि की साढ़ेसाती के दुष्परिणाम कम होते हैं और सर्वत्र रक्षा होती है।
- प्रदोष व्रत से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
- आयु, आरोग्य और धन-संपत्ति सुख की प्राप्ति होती है।
- शारीरिक कष्टों से मुक्ति होकर शरीर को बल प्राप्त होता है।
- आर्थिक संकटों का समाधान होता है।
- प्रदोष व्रत से कुंडली में दूषित प्रभाव दे रहे चंद्र की भी शांति होती है।
- किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए पूरे वर्ष के प्रदोष व्रत करना चाहिए।
त्रयोदशी कब से कब तक
7 मार्च को प्रातः 9.28 बजे तक द्वादशी तिथि रहेगी, इसके बाद त्रयोदशी तिथि प्रारंभ होगी। चूंकि त्रयोदशी तिथि 7 मार्च को सूर्योदय के बाद प्रारंभ होकर 8 मार्च को सूर्योदय से पूर्व प्रातः 6.30 बजे ही समाप्त हो रही है इसलिए त्रयोदशी तिथि का क्षय हो गया है। लेकिन प्रदोष पूजा में कोई विघ्न नहीं है क्योंकि 7 मार्च को सायं प्रदोषकाल के समय त्रयोदशी तिथि रहेगी, इसलिए प्रदोष व्रत 7 मार्च को किया जाएगा। इस दिन पुष्य नक्षत्र प्रातः प्रातः 9 बजकर 04 मिनट तक ही रहेगा।
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