कई बेहतरीन योग फिर भी इतना संघर्ष, ऐसी है श्रीराम की कुंडली
Lord Rama Kundali: इन दिनों में देश भर में राम मंदिर निर्माण के लिए धन संग्रह अभियान जोरों पर चल रहा है। इसमें जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जिलों, शहर औरगांवों में धन संग्रहण के लिए कार्यकर्ताओं को लगाया जा रहा है। ऐसे में हम भगवान श्री राम की कुंडली का विश्लेषण कर रहे हैं, जो कई बेहतरीन योगों के बावजूद संघर्ष की महिमा बताती है।
श्री राम का जन्म
राम चरित मानस के बाल कांड में एक चौपाई के माध्यम से श्री राम के जन्म के समय का उल्लेख कुछ इस तरह किया गया है :-
नौमी
तिथि
मधु
मास
पुनीता।
सुकल
पच्छ
अभिजित
हरिप्रीता॥
मध्यदिवस
अति
सीत
न
घामा।
पावन
काल
लोक
बिश्रामा॥
इसका
भावार्थ
है
कि
पवित्र
चैत्र
का
महीना
था,
नवमी
तिथि
थी।
शुक्ल
पक्ष
और
भगवान
का
प्रिय
अभिजित
मुहूर्त
था।
दोपहर
का
समय
था।
न
बहुत
सर्दी
थी,
न
धूप
(गरमी)
थी।
वह
पवित्र
समय
सब
लोकों
को
शांति
देनेवाला
था।
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कुंडली की विशेषताएं
भगवान राम की कुंडली कर्क लग्न की है और कर्क ही उनकी राशि है। भगवान राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ था। लग्नेश चंद्रमा स्वराशि में हैं, जो षष्ठेश और नवमेश गुरु के साथ लग्न में विराजमान हैं। खास बात है कि कुंडली के चारों अलग-अलग केन्द्रों में गुरु, शनि, मंगल और सूर्य उच्च के होकर बैठे हैं। इसके अलावा सबसे बली त्रिकोण यानी नवम भाव में शुक्र उच्च के होकर विराजमान हैं।
कुंडली में बनने वाले योग
लग्न में बली गजकेसरी योग बन रहा है। इसके अलावा कुंडली में हंस, रूचक और शश पंच महापुरुष योग, साथ ही लग्न में शत्रुहंता योग बन रहा है। लग्न पर दो उच्च के पाप ग्रहों मंगल और शनि की दृष्टि होने के कारण प्रबल राजभंग योग भी बन रहा है। इसके अलावा लग्न में विराजमान गुरु कुंडली के षष्ठेश भी हैं, इसलिए भगवान राम को हर मोड़ पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा और वह जीवन भर संघर्षों से जूझते रहे।
आखिर क्यों कहलाए मर्यादा पुरुषोत्तम
हालांकि लग्न में बैठे गुरु नवमेश भी हैं, जिसके चलते वह जीवन भर नीति और न्याय का पालन करते रहे और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। दशम भाव में विराजमान उच्च के सूर्य ने उन्हें न्यायप्रिय राजा की ख्याति दिलाई, इसीलिए उन्हें कई युगों के बाद आज भी पूजा जा रहा है।
क्यों रहे सुखों से दूर
कुंडली में राहु तृतीय भाव में हैं, जिन्होंने उनके पराक्रम में इजाफा किया।वहीं शुक्र उच्च के होकर नवम भाव में केतु के साथ विराजमान हैं। हालांकि सुखों के कारक शुक्र के राहु-केतु अक्ष पर स्थित होने के कारण सांसारिक सुख ज्यादातर जीवनकाल में उनसे काफी हद तक दूर ही रहे।
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