जानिए कैसे घटती और बढ़ती है तिथियां
लखनऊ। भारत में दो प्रकार की तिथियां प्रचलित है। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि कहते है तथा चन्द्र गति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते है। सूर्य और चन्द्रमा जिस दिन एक बिन्दु पर आ जाते हैं उस तिथि को अमावस्या कहते हैं। अमरकोश की टीका में क्षीरस्वामी ने कहा है-''अमा सह सवतोस्यां चन्द्राकौ''। इसी प्रकार जब सूर्य और चन्द्रमा आमने-सामने आते है तो उस दिन पूर्णिमा या पौर्णमासी होती है। सामान्यतः अमावस्या या पूर्णिमा में 15 दिन का अन्तर होना चाहिए। किन्तु प्रत्येक तिथि एक दिन-रात 24 घण्टे अथवा 60 घटी में समाप्त नहीं होती है। अतः अमावस्या से पूर्णिमा और पूर्णिमा से अमावस्या कभी 15 दिनों के अन्तर पर कभी 14 दिनों के अन्तर पर, कभी 16 दिनों के अन्तर पर अथवा कभी 13 दिनों के अन्तर पर आती है।
सूर्य एवं चन्द्रमा की गति
इस अन्तर का कारण यह है कि तिथियां सूर्य एवं चन्द्रमा की गति से सम्बन्धित होती है। अतः जब सूर्य एवं चन्द्रमा की गति का अन्तर अधिक रहता है तब चन्द्रमा 15 दिनों की अपेक्षा 14 दिनों में ही सूर्य के सामने साथ अथवा साथ से सामने आ जाता है। यदि चन्द्रमा गति धीमी होती है तो उसे 16 दिन लग जाते है। इसे ही तिथियों की क्षय-वृद्धि अर्थात घटना और बढ़ना कहा जाता है।
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तिथि का घटना
यदि चन्द्रमा शीघ्र चलता रहा और अपनी गति से दो-दो घण्टे कम कम किये तो 12 दिनों में 24 घण्टे कम हो जायेंगे। इस प्रकार एक अहोरात्र पूर्व ही अर्थात बारहवें दिन ही चन्द्रमा की गति {12 अंशो वाला} तेरहवाॅ भाग समाप्त हो जायेगा। इसे ही त्रयोदशी का क्षय कहेंगे। क्योंकि साधारण गणना के अनुसार तो प्रत्येक अहोरात्र में चन्द्रमा के बारह अंश ही समाप्त होने चाहिए एवं इस प्रकार तेरहवें अहोरात्र में चन्द्रमा के बारह अंश ही समाप्त होने चाहिए एवं इस तरह तेरहवें अहोरात्र में तेरहवा अंश आना चाहिए। परन्तु जब यह देखा जाता है कि तेरहवें अहोरात्र में तेरहवें भाग का कोई स्थान नहीं है। अपितु, उस दिन प्रातःकाल से ही चैदहवाॅ भाग आरम्भ हो गया है तो इस प्रकार बारहवें अहोरात्र में ही तेरहवें भाग के समाप्त हो जाने से त्रयोदशी का क्षय होना कहा जाता है।
तिथि का बढ़ना
यदि चन्द्रमा मन्दगति से चला और उसने 12 अंश वाला भाग 24 घण्टे के स्थान पर 26 घण्टे में पूरा किया तो ये 2-2 घण्टों बचते-बचते अपने यथासंख्य अहोरात्र से आगे बढ़ जायेंगे। यदि 12-12 अंशो चतुर्थ भाग चैथे अहोरात्र में समाप्त न होकर पाॅचवें अहोरात्र में कुछ शेष रह गया तो इसे चतुर्थी तिथि की वृद्धि कहा जायेगा, क्योंकि वह भाग चतुर्थ अहोरात्र में तो रहा ही तथा पंचम अहोरात्र के सूर्योदय के समय भी वही रहा। यह नियम है कि सूर्योदय के समय 12-12 अंशो वाले भाग में से जिस संख्या का भाग चल रहा होगा, वही उस दिन की तिथि होगी। अस्तु पहले सूर्योदय को भी चतुर्थी रही और दूसरे दिन के सूर्योदय के समय भी चतुर्थी रही। इसलिए दो चतुर्थियाॅ हो जाती है। इसे ही तिथि की वृद्धि कहते है।
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