जन्मकुंडली में जानिए कौन है मारक और प्रबल मारक ग्रह?
नई दिल्ली, 22 जून। किसी भी जन्मकुंडली का विचार करते समय मारक स्थान और मारकेश का विचार करना अत्यंत आवश्यक है। मारक स्थान वह होता है जहां से किसी जातक की आयु और उसके लिए मारक ग्रह अर्थात् कौन सा ग्रह उसके मृत्यु तुल्य कष्ट या उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है, उसका विचार किया जाता है। कुंडली में जन्म लग्न से अष्टम भाव और उस अष्टम भाव से अष्टम भाव अर्थात् लग्न से तीसरा स्थान आयु स्थान कहलाता है। और अष्टम व तृतीय के द्वादश स्थान सप्तम और द्वितीय मारक स्थान कहे जाते हैं। इन मारक स्थान में जो राशि होती है उसके स्वामी मारकेश कहलाते हैं। इस प्रकार हमने देखा किसप्तम और द्वितीय भाव मारक स्थान होते हैं औन इन दोनों में भी सप्तम से द्वितीय प्रबल मारक होता है।
अपने लग्न के अनुसार जानिए मारक-प्रबल मारक
- लग्न मारक प्रबल मारक
- मेष शुक्र शुक्र
- वृषभ बुध, गुरु मंगल
- मिथुन चंद्र, शनि गुरु
- कर्क सूर्य शनि
- सिंह बुध, गुरु शनि
- कन्या शुक्र, मंगल गुरु
- तुला शुक्र मंगल
- वृश्चिक गुरु, बुध शुक्र
- धनु बुध, चंद्र शनि
- मकर सूर्य, शनि चंद्र
- कुंभ गुरु, बुध सूर्य
- मीन मंगल, शुक्र बुध
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सूर्य से आयु विचार
जन्म कुंडली में सूर्य को आत्म तत्व का प्रतीक माना गया है। इसीलिए यह ग्रह आयु प्रदाता कहा गया है। जन्मकुंडली में सूर्य की स्थिति देखकर पता लगाया जा सकता है किमनुष्य की आयु कितनी होगी। सामान्य नियम के अनुसार लग्नेश अर्थात् लग्न स्थान की राशि का जो स्वामी होता है यह यदि सूर्य का मित्र है तो जातक दीर्घायु होता है। लग्नेश सूर्य से सम भाव रखता हो तो मध्यायु और लग्नेश सूर्य का शत्रु हो तो अल्पायु मानना चाहिए। दीर्घायु न्यूनतम 96 वर्ष और अधिकतम 120 वर्ष की होती है। मध्यायु 64 से 80 वर्ष तक होती है और अल्पायु 32 से 40 वर्ष तक मानी गई है।