Rajyoga in a kundali: जानिए कैसे बनता है वृष लग्न का राजयोग
लखनऊ। वृष एक स्थिर लग्न है। यह चक्र के 30 अंश से 60 अंश के बीच पाई जाती है। वृष का अर्थ बैल हौता है। बैल एक मेहनती जानवर है। बैल स्वभाव से शान्त रहता है किन्तु एक बार यदि क्रोध आ जाये तो वह उग्र रूप धारण कर लेता है। इस राशि के स्वामी शुक्र है। शुक्र भी एक सौम्य ग्रह है। पृथ्वी राशि की यह राशि स्थिर स्वभाव वाली होती है। एक बार जो ठान लेती है, उसे करके ही दम लेती है। शुक्र लग्नेश होने के कारण इस लग्न की कुण्डली में शुभ ग्रह माना जाता है। बुध धनेश व पंचमेश होकर इस लग्न में कारक ग्रह होता है। शनि भी भाग्येश व दशमेश होकर शुभ योग कारक बन जाता है, बशर्ते वह कुण्डली में बलवान होना चाहिए।
चलिए जानते है वृष लग्न की कुण्डली में बनने वाले राजयोग क्या कहते है...
वृष लग्न
- वृष लग्न में जिसका जन्म हो और पूर्ण चन्द्रमा लग्न में उच्च का बैठा हो और साथ ही चार, पाॅच, छः ग्रह उच्च के या स्वग्रही या मित्र, शुभ नवांश में, केन्द्र त्रिकोण में बली हो तो या उच्च का चन्द्रमा लग्न में, सिंह का सूर्य चतुर्थ में, कुम्भ का शनि दशम में और वृश्चिक का गुरू सप्तम स्थान में हो तो व्यक्ति किसी बड़े पद पर आसाीन होकर सुख भोगता है।
- वृष का चन्द्रमा लग्न में हो, सिंह का सूर्य चतुर्थ भाव में हो, वृश्चिक का बृहस्पति सप्तम भाव में हो, कुम्भ का शनि में हो तो या उच्च का चन्द्रमा लग्न में, उच्च का गुरू भ्रात स्थान में, उच्च का बुध चतुर्थ में और उच्च का मंगल भाग्य स्थान में हो तो व्यक्ति एक अच्छा राजनेता बनता है।
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चार ग्रह भी स्वगृही बलवान बैठें तो...
- मिथुन बुध, कर्क का चन्द्रमा, सिंह का सूर्य, वृश्चिक का मंगल, कुम्भ का शनि, मीन का गुरू और वृष का शुक्र हो तो ये सभी ग्रह स्वग्रही है, इनमें से यदि चार ग्रह भी स्वगृही बलवान बैठें हो तो राजयोग बनते है। ऐसे जातक समाज में काफी लोकप्रिय होकर समाज की सेवा करते है।
- यदि वृष लग्न में बृहस्पति, मिथुन में चन्द्रमा, मकर में उच्च का मंगल, सिंह में शनि, कन्या में बुध-सूर्य और तुला का शुक्र हो तो मनुष्य बहुत बड़ा आदमी होता है।
- यदि वृष लग्न में स्वगृही शुक्र हो, मिथुन का चन्द्रमा दूसरे स्थान में बलवान हो और कर्क का गुरू अपने उच्चांश में तृतीय स्थान में हो तो मनुष्य बड़ा पराक्रमी, धनवान, यशस्वी तथा आदरणीय होता है।
- यदि लग्न में, उच्च का चन्द्रमा, चतुर्थ में स्वगृही सूर्य, सप्तम में वृश्चिक का गुरू और दशम में कुम्भ का शनि हो तो मनुष्य पुलिस या सेना आदि में निज पराक्रम के लिए धन, यश, पारितोषिक पाता है और यदि उच्च का चन्द्रमा लग्न में, मिथुन का गुरू दूसरे भाव में, शनि या सूर्य को छठे स्थान में, मीन का शुक्र एकादश स्थान में हो तो मनुष्य धनवान होता है।
ऐसे मिलता है सुख
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