अशुभ अस्त ग्रहों को मजबूत करने के लिए भूलकर भी न पहनें रत्न
नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में भविष्य कथन का आधार ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति, उनका बल, उनका अस्त और उदित होना है। कोई ग्रह कुंडली में कैसा प्रभाव दे रहा है या भविष्य में देने वाला है, यह उसके बलाबल को देखकर ही पता किया जाता है। भविष्य कथन सटीक तभी हो पाता है, जब अस्त ग्रहों का ठीक से विचार किया जाए। आखिर ये ग्रहों का अस्त होना होता क्या है? और वाकई इनका क्या असर होता है। आज हम इसी बात पर चर्चा करेंगे।
वैदिक ज्योतिष
वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। अपने पथ में भ्रमण करते समय ये ग्रह कभी सूर्य के निकट आ जाते हैं तो कभी दूर हो जाते हैं। अपने भ्रमणकाल में जब कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है तो सूर्य के तेजोमयी प्रकाश में वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है और सूर्य के प्रकाश में छुप जाता है। वह आकाश में दिखाई देना बंद हो जाता है। ऐसे में इस ग्रह को अस्त ग्रह कहा जाता है। प्रत्येक ग्रह की सूर्य से यह दूरी या निकटता डिग्रियों में मापी जाती है।
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ग्रह भी अस्त होते हैं
- बुध सूर्य के दोनों ओर 14 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है। यदि बुध वक्री हो तो वह सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।
- बृहस्पति सूर्य के दोनों ओर 11 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माना जाता है।
- शुक्र सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है। लेकिन यदि शुक्र वक्री चल रहा हो तो वह सूर्य के दोनों ओर 8 डिग्री या इससे अधिक निकट आने पर अस्त हो जाता है।
- शनि सूर्य के दोनों ओर 15 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जाता है।
अस्त का अर्थ क्या है?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है तो स्वाभाविक रूप से वह अपनी क्षमता खो देता है। उसके बल में कमी आ जाती है और कहा जाए तो कुंडली में उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है। कुंडली में जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है तो उसे बल प्रदान करने के लिए ज्योतिष में कई तरह के उपाय बताए गए हैं। अस्त ग्रहों को बल देने के कारण वे शुभ स्थिति में आ जाते हैं ऐसा माना जाता है। इसमें संबंधित ग्रह का रत्न पहना देना भी एक उपाय है। लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि यदि जन्मकुंडली में कोई ग्रह अस्त हुआ है और वह पहले से आपके लिए अशुभ फलदायी है तो उसका रत्न पहनाकर उसे अतिरिक्त बल देने की भूल कभी नहीं करना चाहिए। इससे अशुभ ग्रह को और बल मिलेगा और वह अशुभ फल देने लगेगा। केवल उन्हीं अस्त ग्रहों के रत्न धारण करवाए जाते हैं जो कुंडली में शुभ फल दे रहे हों। अशुभ अस्त ग्रहों को अतिरिक्त बल देने के लिए उनसे जुड़े मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्रों की शक्ति से अशुभ अस्त ग्रहों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आता है। नवग्रह पूजा भी ऐसे में काफी लाभदायी होती है।
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