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Pitru paksha 2018: पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें

By Pt. Anuj K Shukla
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लखनऊ। जब पितरों के कर्मो का लोप होने लगता है अर्थात जातक के द्वारा पितरों के श्राद्ध आदि कर्म उचित व विधिपूर्वक नहीं किये जाते है तो पितर प्रेत योनि में चले जाते है और जातक के वंश वृद्धि, धन वृद्धि, विकास, पद, प्रतिष्ठा आदि में बाधायें आने लगती है। 16 दिन चलने वाले पितृपक्ष इस बार 25 सितम्बर से 09 अक्टूबर तक रहेंगे। किसी भी व्यक्ति को पितृ दोष के कारण बाधायें, प्रगति में गिरावट, सन्तान से कष्ट, मानसिक दशा में गिरावट, आर्थिक विपन्नता हो रही है, तो श्राद्ध पक्ष में उस जातक को पूरे विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए और तर्पण करना चाहिए। पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितरों के श्राप से बचा जा सकता है।

Pitru paksha 2018: पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें

तर्पण-प्रत्येक दिन मध्यान्ह 12 बजे से 1:30 मिनट के मध्य तर्पण करना उत्तम रहेगा

तर्पण विधि- पीतल की थाली में विशुद्ध जल भरकर, उसमें थोड़े काले तिल व दूध डालकर अपने समक्ष रख लें एंव उसके आगे दूसरा खाली पात्र रख लें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश लेकर अंजली बना लें अर्थात दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उस मृत प्राणी का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुये अंजली में भरा हुये जल को दूसरे खाली पात्र में छोड़ दें। एक-2 व्यक्ति के लिए कम से कम तीन-तीन अंजली तर्पण करना उत्तम रहता है।

ऊॅत्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें

पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें

इस मन्त्र की 2 माला जाप करने के पश्चात पूजन स्थान पर रखें हुये जल के थोड़े भाग को आंखों में लगायें, थोड़ा जल घर में छिड़क दें और बचे हुये जल को पीपल के पेड़ में अर्पित कर दें। ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा निकल जायेगी और घर की लगभग हर प्रकार की समस्या से आप मुक्त हो जायेंगे।

क्या होती है पंचबलि

पितरों को तृप्त करने के लिए अश्विन मास के कृष्णपक्ष में जिस तिथि को पूर्वजों का देहान्त हुआ हो उस तिथि को तिल, जौ, पुष्प, गंगाजल या शुद्ध जल से तर्पण, पिण्डदान और पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात विद्वान ब्राहम्ण को भोजन, वस्त्र, फल व यथा शक्ति दान देना चाहिए। गाय, कौआ, कोयल व श्वान को भी भोजन देना चाहिए। यह कर्म पंचबलि की श्रेणी में आता है। पितृपक्ष में सूर्य दक्षिणायन होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है। कहा जाता है कि इसीलिए पितर अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन, पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध करे लेकिन ऐसा करते हुए बहुत सी बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है।

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पितृपक्ष में क्या वर्जित है

पितृपक्ष में क्या वर्जित है

  • श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समय कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग और निषेध बताया गया है।
  • श्राद्ध में सात पदार्थ- गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल महत्वपूर्ण हैं।
  • तुलसी से पितृगण प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं। मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं।
  • श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए।
  • श्राद्ध में लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 5-केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।
  • पितृपक्ष में पितृदोष निवारण हेतु उपाय

    पितृपक्ष में पितृदोष निवारण हेतु उपाय

    • अपने कुल देवता का विधिवत पूजन व अर्चन करें।
    • नाग योनि में पड़े पितरों को मुक्ति देने के लिए पितृपक्ष में ही चांदी के बने नाग-नागिन के जोड़े का दान करना चाहिए।
    • इस समय पीपल व बरगद की नियमित पूजा करने से पितृदोष का शमन होता है।
    • सूर्योदय के समय कुश के आसन पर खड़े होकर गायत्री मन्त्र का जाप करते हुये सूर्य का ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से पितृदोष की
    • शान्ति होती है।5-दत्तात्रेय देवता के चित्र या मूर्ति की प्रतिदिन पूजा करें।
    • इन 15 दिनों में यदि नित्य सूर्य को जल देकर आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने से भी पितृदोष में न्यूनता आती है।

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English summary
Pitru Paksha is a 15 lunar day’s period when Hindus pay homage to their ancestors, especially through food offerings.
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