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Pitru Paksha 2020: श्राद्ध में इन 15 बातों का है खास महत्व
नई दिल्ली। पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त किए जाने वाले तर्पण, पिंडदान आदि में कुछ चीजें प्रयुक्त की जाती है, उनका बड़ा महत्व होता है। शास्त्रों में इन वस्तुओं के बारे में विशेष रूप से निर्देशित किया गया है। आइए समझिए क्या हैं वे वस्तुएं जिनका श्राद्ध करते समय ध्यान रखना आवश्यक है।
इन बातों का रखें खास ख्याल
- कुतप वेला : श्राद्ध करने के लिए कुतप वेला का महत्व बताया गया है। दिन का आठवां मुहूर्त कुतप वेला कहलाता है। यह समय दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक का होता है। इसी समय में श्राद्ध किया जाना चाहिए।
- कुश-काले तिल : कुश तथा काले तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से मानी गई है। इसलिए श्राद्ध में इनका विशेष महत्व होता है। इन वस्तुओं का उपयोग करने से पितर को पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है।
- चांदी के पात्र : श्राद्ध में पितरों के निमित्त पात्र के रूप में पलाश तथा महुआ के वृक्षों के पत्तों के दोने और लकड़ी तथा हाथ से बनाए मिट्टी के पात्रों का प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन इन सबसे बढ़कर चांदी के पात्रों का विशेष महत्व कहा गया है। पितरों को यदि चांदी के पात्र से या चांदी मढ़े हुए पात्रों से श्रद्धापूर्वक जल भी प्रदान कर दिया जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिंड और भोजन के लिए पात्र भी चांदी के ही उपयुक्त माने गए हैं। चांदी की उत्पत्ति शिवजी के नेत्र से हुई है इसलिए यह पितरों को परम प्रिय है।
- दौहित्र (कन्या का पुत्र), कुतप (दिन का आठवां मुहूर्त), तिल, चांदी का दान और भगवत स्मरण ये पांच श्राद्ध के लिए अत्यंत पवित्र माने गए हैं।
इन चीजों की जरूरत होती है
- दूध, गंगाजल, शहद, टसर का कपड़ा इनका प्रयोग श्राद्ध करते समय अवश्य करना चाहिए।
- तुलसी को श्राद्ध में ग्राह्य माना गया है। तुलसी की गंध से पितृ प्रसन्न् होकर गरूड़ पर आरूढ़ हो विष्णुलोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितृ हमेशा तृप्त रहते है।
- श्राद्ध करने वाले में तीन गुण अवश्य होना चाहिए। पवित्रता, अक्रोध, अचापल्य (जल्दबाजी न करना)।
- श्राद्ध में मुख्य रूप से सफेद पुष्प का प्रयोग करना चाहिए। सफेद में भी सुगंधित पुष्प होना चाहिए। मालती, जूही, चंपा, कमल, तुलसी और भृंगराज ये प्रशंसनीय है। स्मृतिसार के अनुसार अगस्त्यपुष्प, भृंगराज, तुलसी, शतपत्रिका, चंपा, तिल पुष्प ये छह पितरों को सर्वाधिक प्रिय है।
तीर्थों में श्राद्ध की विशेष महिमा
- गया, पुष्कर, प्रयाग, कुशावर्त (हरिद्वार) आदि तीर्थों में श्राद्ध की विशेष महिमा है। सामान्यत: घर में, गोशाला में, देवालय, गंगा, यमुना, नर्मदा आदि पवित्र नदियों के तट पर श्राद्ध करने का अत्यधिक महत्व है। श्राद्ध करने के स्थान को गाय के गोबर-मिट्टी से लीपकर शुद्ध कर लेना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर ढाल वाली भूमि श्राद्ध के लिए सर्वथा उपयुक्त कही गई है।
- श्राद्ध में केवल गाय का दूध, दही और घी काम में लेना चाहिए। जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, सांवां, सरसों का तेल, तिन्न्ी का चावल, कंगनी आदि से पितरों को तृप्त करना चाहिए। आम, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना आंवला, खीर, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, नीलकैथ, परवल, चिरौंजी, बेर इन्हें श्राद्ध में जरूर काम में लेना चाहिए। जौ, कंगनी, मूंग, गेहूं, धान, तिल, मटर, कचनार और सरसों का श्राद्ध में होना आवश्यक है।
- श्राद्ध का भोजन ग्रहण करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को है। ब्राह्मण भी कैसा होना चाहिए इसके लिए भी निर्देश हैं। शील, शौच एवं प्रज्ञा से युक्त सदाचारी तथा संध्या वंदन एवं गायत्री मंत्र का जाप करने वाल ब्राह्मण को श्राद्ध में निमंत्रण देना चाहिए। तप, धर्म, दया, दान, सत्य, ज्ञान, वेदज्ञान, विद्या, विनय तथा अस्तेय आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण इसका अधिकारी है।
- श्राद्ध करते समय रेशमी, नेपाली कंबल, ऊन, काष्ठ, तृण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। काष्ठासनों में भी शमी, काश्मरी, शल्ल, कदंब, जामुन, आम, मौलसिरी और वरुण के आसन श्रेष्ठ हैं। इनमें भी लोहे की कील नहीं होनी चाहिए।
- श्राद्ध में भोजन के समय मौन रहना चाहिए। मांगने या प्रतिषेध करने का संकेत हाथ से करना चाहिए। भोजन करते समय ब्राह्मण से भोजन कैसा बना, यह भी नहीं पूछना चाहिए। भोजनकर्ता को भी श्राद्ध के भोजन की प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए।
- श्राद्ध में ब्राह्मणों को बैठाकर उनके पैर धोना चाहिए। खड़े होकर पैर धोने पर पितर निराश होकर चले जाते हैं। पत्नी को दाहिनी ओर खड़ा करना चाहिए। उसे बाएं रहकर जल नहीं गिराना चाहिए। अन्यथा वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरों को प्राप्त नहीं होता।
- श्राद्ध में लोहे के पात्र का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। ब्राह्मण को लोहे के पात्र, स्टील की थाली में भोजन नहीं करवाना चाहिए। पत्तल-दोने में भोजन करवाना चाहिए, चांदी की थाली में भोजन करवाना चाहिए।
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English summary
Pitru Paksha will commence from 1st September till 17 September. These 15 Things are very Important, Please have a look.
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