Pitru Paksha 2019: इंदिरा एकादशी 25 सितंबर को, जानिए इसका महत्व
नई दिल्ली। आश्विन कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। इस पितृपक्ष में इंदिरा एकादशी 25 सितंबर 2019, बुधवार को आ रही है। इस एकादशी के दिन बुध-पुष्य का संयोग भी है। शास्त्रों में इंदिरा एकादशी के महत्व के बारे में कहा गया है कि जो व्यक्ति पितृपक्ष में आने वाली इस एकादशी का व्रत करता है और उसका फल अपने पितरों को देता है, वह पितरों को अधोगति से मुक्ति दिला देता है। इसके फलस्वरूप जातक का जीवन सुखी बनता है, उसके स्वयं के भी सभी पापों का नाश होता है।
काफी महत्वपूर्ण है इंदिरा एकादशी...
पितृपक्ष में आने के कारण इंदिरा एकादशी को पितरों की मुक्ति के लिए सबसे उत्तम दिन माना गया है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत करके उसका पुण्यफल पितरों को प्रदान कर दे तो इससे पितरों को यम की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।
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एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया राजा ने...
राजा ने कहा- महर्षि! कृपा करके अपने आगमन का कारण बताएं। तब नारदजी ने कहा कि हे राजन! मेरे वचनों को ध्यानपूर्वक सुनिए। मैं आपके पिता का संदेशा लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं। राजा इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा के बारे में जानकर अत्यंत दुखी हुए और देवर्षि से पिता के मोक्ष का उपाय पूछने लगे। देवर्षि ने कहा कि हे राजन आप आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और उसका पुण्य फल अपने पिता को प्रदान कर दो तो इससे उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। आश्विन कृष्ण एकादशी आने पर राजा ने नारदजी के बताए अनुसार व्रत किया और उसका फल अपने पिता को प्रदान कर दिया। व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को पीड़ा से मुक्ति मिली और राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
यह सतयुग के समय की बात है। महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम के प्रतापी राजा का शासन था। राजा भगवान विष्णु का परम भक्त था और धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता था। एक दिन राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उनकी सभा में आए। राजा इंद्रसेन उन्हें देखकर तुरंत अपने आसन से उठ खड़े हुए और महर्षि को प्रणाम किया। उन्होंने महर्षि को बैठने के लिए उच्च आसन प्रदान किया।
इंदिरा एकादशी व्रत की पूजा विधि
महर्षि नारद के बताए अनुसार दशमी तिथि के दिन से व्रती को पूर्ण संयम का पालन करते हुए दिन व्यतीत करना है। दशमी के दिन सायंकाल में भोजन ना करें। एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी, कुएं पर स्नान करें और गीले वस्त्र से सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद अपने पूजा स्थान को स्वच्छ कर भगवान विष्णु के सामने एकादशी व्रत का संकल्प लें और साथ ही इसका पुण्य फल अपने पितरों को प्रदान कर उनकी मुक्ति की कामना करें। दिनभर निराहार रहते हुए शाम के समय शालिग्राम की पूजा करें। द्वादशी के दिन सुबह व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर यथायोग्य दक्षिणा भेंट प्रदान करें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
एकादशी कब से कब तक
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 24 सितंबर को सायं 4.42 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 25 सितंबर को दोप. 2.08 बजे तक
- पारण का समय: 26 सितंबर को प्रातः 6.15 से 8.38 तक
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