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Motivational Thought: धैर्य से मिलता है मनचाहा परिणाम

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। भारतीय जीवन दर्शन में धैर्य को व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी माना गया है। हमारे धर्मग्रंथों में बताया गया है कि जो व्यक्ति धैर्यशील होता है, वह दुनिया को जीत सकता है। सभी धर्मों के मूल वाक्यों में धैर्य का महत्व माना गया है। सब्र का फल मीठा होता है, यह वाक्य आपने भी कई जगह पढ़ा होगा। हमारे ऋषि मुनि कह गए हैं कि धैर्यवान के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। एक विचलित मन मस्तिष्क वाला व्यक्ति सामने पड़ी काम की उस वस्तु को भी अपनी हड़बड़ी में अनदेखा कर आगे बढ़ सकता है, जिसे ढूंढने वह निकला था। इसके विपरीत धैर्यवान व्यक्ति कोयले के ढेर में से भी हीरा निकालने की सामर्थ्य रखता है।

इस बात को समझने के लिए भगवान बुद्ध से जुड़ी एक कथा सुनते हैं...

भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को लेकर देशाटन पर निकले थे

भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को लेकर देशाटन पर निकले थे

एक बार की बात है। भगवान बुद्ध अपने शिष्यों को लेकर देशाटन पर निकले थे। नगर, कस्बे, गांव, जंगल में घूमते हुए वे और उनके शिष्य ज्ञान चर्चा करते चले जा रहे थे। रास्ते में यथासंभव उदाहरणों से वे अपने शिष्यों को ज्ञान का व्यावहारिक प्रमाण भी देते जाते थे। ऐसे ही एक बार पूरा दल जंगल में भ्रमण कर रहा था। इसी बीच एक नदी पड़ी, जिसे पार कर जंगल से बाहर निकलते ही बुद्ध ने अपने एक शिष्य से कहा कि वत्स, मुझे प्यास लगी है। मेरे लिए नदी से जल भर लाओ।

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जल आपके आचमन के योग्य नहीं

वह शिष्य तत्परता से एक घड़ा लेकर चल पड़ा। थोड़ी ही देर में वह शिष्य खाली हाथ वापस आ गया और बोला कि भगवन! क्षमा करें। वह जल आपके आचमन के योग्य नहीं है। भगवान बुद्ध ने कहा कि अभी हम सब उसी मार्ग से आए हैं, तब तो वह जल अशुद्ध नहीं था। इस पर शिष्य ने उत्तर दिया कि भगवन! अभी तो वह पूरी नदी ही काली पड़ गई है।

शिष्य ने कहा-स्वच्छ जल मैंने घड़े में भर लिया

शिष्य ने कहा-स्वच्छ जल मैंने घड़े में भर लिया

कुछ देर बाद बुद्ध ने अपने दूसरे शिष्य से कहा कि मेरे लिए नदी से जल ले आओ। वह शिष्य भी घड़ा लेकर तुरंत चल पड़ा। कुछ विलंब के बाद वह शिष्य वापस आया और साफ जल से भरा हुआ घड़ा भगवान के समक्ष प्रस्तुत किया। जल पीकर बुद्ध ने पूछा कि क्या तुम कहीं और से जल लाए हो? उस शिष्य ने कहा, नहीं भगवन! यह जल उसी नदी का है। उस नदी के पानी में मिट्टी घुल गई थी। मैंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की और जब मिट्टी नीचे बैठ गई, तब स्वच्छ जल मैंने घड़े में भर लिया।

धैर्य का महत्व समझाने के लिए मैंने जल की इच्छा प्रकट की

उसकी बात सुनकर भगवान बुद्ध ने कहा कि हे वत्स, मैंने पशुओं के एक झुंड को नदी की दिशा में जाते हुए देख लिया था। इसीलिए धैर्य का महत्व समझाने के लिए मैंने जल की इच्छा प्रकट की। पहले शिष्य को नदी का जल आचमन योग्य नहीं लगा क्योंकि पशुओं के द्वारा नदी पार करने से जल में मिट्टी घुल गई थी। यह जल भी उसी नदी से लिया गया है, पर अब यह पूरी तरह स्वच्छ और पीने योग्य है। पहले शिष्य ने अधैर्य का परिचय दिया और उसी अमृत तुल्य जल को गंदा समझकर छोड़ आया। वहीं दूसरे शिष्य ने धैर्य से मिट्टी बैठने की प्रतीक्षा की और इच्छित वस्तु को पा लिया।

धैर्य और अधैर्य में अंतर

धैर्य और अधैर्य में अंतर

यही अंतर है धैर्य और अधैर्य में, अधीरता में व्यक्ति सामने उपलब्ध उस वस्तु को भी ठुकरा देता है, जिसकी उसे आवश्यकता होती है। धैर्यवान व्यक्ति शांति से सही समय की प्रतीक्षा करता है और अपनी इच्छित वस्तु को कम प्रयास में ही पा लेता है।

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English summary
We must have patience to maintain our enthusiasm and industriousness when pursuing our goals. It is patience that reminds us that our hard work will pay off, that worthwhile goals take time to achieve.
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