Papankusha Ekadashi 2019: अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ से भी बड़ा है पापांकुशा एकादशी व्रत
नई दिल्ली। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। अपने नाम के अनुरूप यह एकादशी समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर मृत्यु के बाद मनुष्य के लिए बैकुंठ तक पहुंचाने का मार्ग बनाती है।
इस एकादशी के महात्म्य के बारे में कहा जाता है कि हजारों अवश्वमेघ यज्ञ और सैकड़ों राजसूय यज्ञ करने के बाद भी पापांकुशा एकादशी व्रत के 16वें भाग जितना भी फल नहीं मिलता है। जो मनुष्य पापांकुशा एकादशी का व्रत रखकर रात्रि जागरण करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और व्रत का पुण्य फल उस मनुष्य की आगामी 10 पीढ़ियों को भी मिलता है। इस बार यह एकादशी 9 अक्टूबर 2019 बुधवार को आ रही है।
पापांकुशा एकादशी व्रत के लाभ
- पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।
- जो मनुष्य एकादशी व्रत नहीं करते हैं, वे सदा पापों से घिरे रहते हैं। जो मनुष्य केवल इसी एक एकादशी का उपवास कर लेता है, उसे यम के दर्शन नहीं होते।
- इस एकादशी के व्रत को करने से निरोगी काया तथा सुंदर नारी और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- इस एकादशी व्रत को करने वाले मनुष्यों के मातृपक्ष के दस पुरुष, पितृपक्ष के दस पुरुष तथा स्त्री पक्ष के दस पुरुष, भगवान विष्णु का रूप धरकर व सुंदर आभूषणों से परिपूर्ण होकर विष्णु लोक को जाते हैं।
- पापांकुशा एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
- इस एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न, जल, खड़ाऊ, वस्त्र, छत्र आदि का दान करने से यम के दर्शन नहीं होते।
- इस एकादशी के दिन प्रत्येक मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ वस्तुएं दान करनी चाहिए।
- पापांकुशा एकादशी के दिन तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ आदि बनवाने का बड़ा महत्व है। ऐसे व्यक्ति को कभी नरक की यातना नहीं भोगना पड़ती। वह मनुष्य इस लोक में निरोगी, दीर्घायु, उत्तम संतान वाले, धन-धान्य से परिपूर्ण होकर सुख भोगते हैं तथा अंत में स्वर्ग लोक को जाते हैं।
- पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से मन शुद्ध और पवित्र होता है।
कैसे करें पापांकुशा एकादशी व्रत की पूजा
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र नदियों में या पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें। सूर्य को अर्घ्य दें और अपने पूजा स्थान में बैठकर एकादशी व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद अपने मस्तक पर सफेद चंदन या गोपी चंदन लगाकर भगवान पद्मनाभ की पूजा करें। भगवान को पंचामृत, पुष्प और ऋतुफल अर्पित करें। व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें। शाम के समय फलाहार कर सकते हैं। शाम को आहार ग्रहण करने से पहले उपासना और आरती जरूर करें। इस दिन इंद्रिय संयम रखते हुए रात्रि जागरण करें और भगवान श्रीहरि के भजन करें, मंत्रों का जाप करें।
एकादशी तिथि कब से कब तक
- एकादशी तिथि का प्रारंभ 8 अक्टूबर को दोपहर 2.50 बजे से होगा।
- एकादशी तिथि का समापन 9 अक्टूबर को सायं 5.18 बजे तक है।
- पारणा समय 10 अक्टूबर को प्रात: 6.51 से 9.32 तक है।
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