Padmini Ekadashi 2020: समस्त सुख प्रदान करती है पद्मिनी एकादशी
नई दिल्ली। अधिकमास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी तीन साल में एक बाद आती है, इसलिए इसका सर्वाधिक महत्व बताया गया है। इस बार आश्विन माह का अधिकमास होने के कारण यह एकादशी 27 सितंबर 2020 रविवार को आ रही है। इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन भगवा लक्ष्मीनारायण के साथ शिव-पार्वती की पूजा का भी विधान है। चूंकि अधिकमास के देवता स्वयं भगवान विष्णु होते हैं, ऐसे में इस एकादशी का व्रत-पूजन सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाला होता है। पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को अति प्रिय है इसलिए इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है तथा सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस बार अधिकमास 18 सितंबर से 16 अक्टूबर 2020 तक रहेगा।
कैसे करें पद्मिनी एकादशी की पूजा
पद्मिनी एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी तिथि के दिन से व्रती को संयम का पालन करना आवश्यक है। दशमी पर रात्रि में भोजन ना करें। एकादशी के दिन प्रात: सूर्योदय के समय उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करें। इसके बाद अपने पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ कर भगवान विष्णु की पूजा करें और एकादशी व्रत का संकल्प लें। दिनभर निराहार रहते हुए भागवत कथा, विष्णु पुराण आदि का श्रवण मनन करते रहें। सायंकाल में पुन: भगवान लक्ष्मीनारायण और शिव-पार्वती की पूजा करें। इसके बाद रात्रि के प्रत्येक प्रहर में पूजन कर ये वस्तु भेंट करें। प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी भेंट करें। अगले दिन द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें। ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा सहित विदा करें। इसके पश्चात स्वयं भोजन करके व्रत खोलें।
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पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
त्रेयायुग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय रानियां थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो आगे चलकर उनका राज्यभार संभाल सके। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे। तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया। महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्षवाकु वंश में उत्पन्न् हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या थीं, राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गई। दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए।
पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का किया व्रत
राजा ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- 12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न् होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे। रानी पद्मिनी ने एकादशी का व्रत किया। उसने एकादशी पर निराहार रहकर रात्रि जागरण किया। व्रत से प्रसन्न् होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य उत्पन्न् हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था। यह है इस एकादशी के व्रत का फल। इस एकादशी के फल से समस्त प्रकार सुख-समृद्धि, सौभाग्य प्राप्त होते हैं।
एकादशी तिथि कब से कब तक
- एकादशी प्रारंभ 26 सितंबर को सायं 6.59 से
- एकादशी पूर्ण 27 सितंबर को सायं 7.45 तक
- व्रत का पारण 28 सितंबर को प्रात: 6.17 से 8.41 तक
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