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Vivah sanskar: क्या है विवाह संस्कार, क्यों है ये इतना महत्वपूर्ण?

By Pt. Anuj K Shukla
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लखनऊ। समस्त संस्कारों मेें विवाह संस्कार का महत्वपूर्ण स्थान है, अधिकांश ग्रह्रयसूत्रों का आरम्भ विवाह संस्कार से होता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में वैवाहिक विधि-विधानों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति मिलती है, उपनिषदों के युग में आश्रम चतुष्टय का सिद्धान्त पूरी तरह से प्रतिष्ठित हो चुका था, जिनमें गृहस्थाश्रम को सर्वाधिक महत्व दिया गया था। आज भी गृहस्थाश्रम का महत्व उसी प्रकार है। गृहस्थाश्रम की आधारशिला विवाह संसकार ही है, क्योंकि इसी संस्कार के अवसर पर वर-वधू अपने नवीन जीवन के महान उत्तरदायित्व का निर्वहन करने की प्रतिज्ञा करते है।

चलिए जानते है विवाह निश्चय के नियम क्या है ...

क्या है विवाह संस्कार?

क्या है विवाह संस्कार?

वधु, वर की सगोत्र और माता की सात पीढ़ी में से न हो। दो सगी बहनों का विवाह, दो सगे भाईयों से न करें। दो सगी बहनों का, दो सगे भाईयों का भाई-बहनों का एक संस्कार के बाद 6 माह के अन्दर कोई दूसरा संस्कार न करें। लड़की के विवाह के पीछे लड़कों का विवाह हो सकता है। पृथक माता {सौतेली} से हुए भाई-बहिनों का एक संस्कार द्वारा भेद, मण्डपभेद और आचार्य का भेद हो सकता है।

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 6 मास तक लघु मंगलकार्य न करें

6 मास तक लघु मंगलकार्य न करें

यमल {जोड़े} भाई-बहिनों का एक ही मण्डप में विवाह करने में कोई हानि नहीं है। इसी प्रकार विवाह से पीछे मुण्डन, यज्ञोपवीत 6 मास तक न करें। विवाह, उपनयन, चूड़ा, सीमन्त, केशान्त से 6 मास तक लघु मंगलकार्य न करें। सम्वत्सर भेद से जैसे माघ, फाल्गुन मास में एक मंगलकार्य हो तो आगे चैत्र के बाद दूसरा कोई मंगल कार्य कर सकते है। उसमें कोई दोष नहीं है।

मंगलकार्य के मध्य पितृकर्म न करें

मंगलकार्य के मध्य पितृकर्म न करें

मंगलकार्य के मध्य पितृकर्म {श्राद्धादि} अमंगल कार्य न करें। वाग्दान के अनन्तर वर-कन्या के तीन पीढ़ी में किसी की मृत्यु हो जाये तो 1 मास के बाद अथवा सूतक निवृत्त होने पर शान्ति करके विवाह किया जा सकता है। विवाह के पूर्व नान्दीमुख श्राद्ध के बाद तथा विनायक स्थापन हुए बाद तीन पीढ़ी तक की मृत्यु हो जाये, तो वह कन्या तथा वर-कन्या के माता-पिता को अशौच नहीं लगता है और निश्चित समय पर विवाह कर देना चाहिए।

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English summary
The most important of them being the ‘Vivah sanskar (Hindu wedding sanskar)’! The true objective of a wedding is that two individuals seek the blessings of God to lead a compatible and happy married life!
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