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Kundali: पितृदोष का क्या पड़ता है जीवन पर प्रभाव?

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में किसी जातक की जन्मकुंडली में बनने वाले पितृदोष को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष होने पर उसका जीवन अस्त-व्यस्त सा रहता है। उसके जीवन में किसी प्रकार की तरक्की, उन्न्ति नहीं हो पाती, या देरी से तरक्की होती है। माना जाता है कि पितरों की आत्माएं अतृप्त रह जाने पर जातक को पितृदोष लगता है। वैदिक ज्योतिष की प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य अथवा कुंडली में भाग्य भाव यानी नवें स्थान पर एक या एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर पितृदोष का निर्माण होता है। यह दोष कुंडली में सूर्य की अलग-अलग घरों में स्थिति के कारण अलग-अलग प्रभाव देता है।

आइए जानते हैं सूर्य की बारहों घरों में स्थिति के कारण क्या प्रभाव होता है...

पहले स्थान में पितृदोष

पहले स्थान में पितृदोष

किसी कुंडली के पहले घर में स्थित सूर्य पर एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली के पहले घर में पितृदोष बनता है। पहला घर आत्मा, शारीरिक स्थिति और पिता का स्थान होता है इसलिए जातक को किसी न किसी प्रकार की शारीरिक समस्या बनी रहती है। जातक को कोई गंभीर नेत्र रोग भी हो सकता है। दोष अत्यंत गंभीर होने पर जातक दृष्टिहीन भी हो सकता है। जातक शारीरिक रूप से बेहद कमजोर होता है। जातक को जीवन में भारी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक को संतानप्राप्ति में देरी होती है।

दूसरे स्थान में पितृदोष

कुंडली का दूसरा स्थान धन स्थान होता है। इसलिए इस घर में यदि पितृदोष बन रहा है तो जातक को जीवनभर गरीबी में जीवनयापन करना पड़ता है। जातक को दैनिक जीवन की जरूरतें पूरी करने के लिए बार-बार कर्ज लेना पड़ता है। जातक को वैवाहिक जीवन में भी भारी संकटों का सामना करना पड़ता है। संतान से इसकी बनती नहीं है। ऐसे जातक को पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती है। इसके जीवन में स्थायित्व नहीं रहता है और बार-बार गांव-शहर या घर बदलना पड़ता है। जातक को परिवार का सहयोग नहीं मिलता है।

तीसरे स्थान में पितृदोष

जन्मकुंडली के तीसरे घर में बनने वाला पितृदोष जातक के जीवन में उथल-पुथल मचा देता है। भाई बंधुओं से इस जातक की पटरी नहीं बैठती है। पैतृक संपत्ति को लेकर कष्ट बना रहता है। पिता से अनबन के कारण पैतृक संपत्ति से बेदखल कर दिया जाता है। ऐसे जातक को व्यावसायिक क्षेत्र में बहुत सी रुकावटों का सामना करना पड़ता है। लाभ नहीं होने के कारण जातक बार-बार अपना व्यवसाय बदलता रहता है। धन अर्जित करने के लिए जातक गलत रास्तों को अपनाने से भी हिचकता नहीं है। ऐसे जातकों की आयु कम होती है।

चौथे स्थान में पितृदोष

जन्म कुंडली के चौथे स्थान में बनने वाला पितृदोष जातक को जीवनभर मानसिक तनाव और मानसिक रोगों से पीड़ित करता है। चूंकि चौथा स्थान सुख स्थान है इसलिए इस घर में बनने वाला दोष जातक को तमाम सुखों से वंचित कर देता है। आर्थिक, संपत्ति, भूमि, वाहन इसे आसानी से प्राप्त नहीं हो पाते हैं। इन चीजों को पाने के लिए जातक जीवनभर कड़ी मेहनत करता है, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता। कर्ज के दुष्चक्र में जातक फंसता जाता है।

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पांचवें स्थान में पितृदोष

पांचवें स्थान में पितृदोष

जन्मकुंडली का पांचवां स्थान संतान का भाव होता है। यदि इस स्थान में पितृदोष बना हुआ है तो जातक को संतान उत्पन्न् करने में बाधा आती है। ऐसा जातक नि:संतान भी रह जाए तो कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि यह सब पितृदोष के प्रभाव के कारण होता है। यदि किसी दंपती को संतान हो भी जाए तो वह विकलांग या मानसिक रूप से कमजोर हो सकती है। जातक की आर्थिक स्थिति गड़बड़ रहती है। वह जो भी व्यापार या नौकरी करता है उसमें उसे स्थायित्व नहीं रहता है।

छठे स्थान में पितृदोष

छठे स्थान में बनने वाला पितृदोष जातक के लिए शारीरिक रूप से ठीक नहीं होता है। छठा स्थान रोगों का भाव होता है इसलिए सबसे ज्यादा कष्ट जातक को शारीरिक रूप से ही होता है। इसे किडनी, हृदय, कैंसर या आंतों से संबंधित कोई भयानक रोग हो सकता है। इन बीमारियों पर उसे खर्च भी अधिक करना होता है। छठे भाव के पितृदोष के कारण जातक को कोर्ट-कचहरी, पुलिस आदि के मामलों में उलझना पड़ता है। जातक के शत्रु बहुत होते हैं और हर तरह से हानि पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं।

सातवें स्थान में पितृदोष

सप्तम स्थान वैवाहिक जीवन, दांपत्य सुख, यौन सुख आदि का स्थान होता है। इस स्थान में बनने वाला पितृदोष जातक के वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। इस भाव में यदि सूर्य के साथ मंगल भी हो तो निश्चित रूप से जातक को विवाह के लिए लंबी प्रतीक्षा करना पड़ सकती है या जातक जीवनभर अविवाहित रहता है। ऐसे जातक का यदि विवाह हो भी जाए तो उसे पारिवारिक जीवन में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उसका विवाह टूट भी सकता है।

आठवें स्थान में पितृदोष

आठवें घर में बनने वाला पितृदोष जातक की आयु कम कर सकता है। जातक को जीवन में कई बार दुर्घटनाओं या भयंकर शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। कई बार मृत्यु तुल्य कष्ट भोगना पड़ते हैं। ऐसे जातक को शत्रु भी बार-बार हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं। इस भाव पर शनि का प्रभाव होने के कारण जातक को आर्थिक संकट बने रहते हैं। स्थायित्व बड़ी मुश्किल से मिल पाता है। इस स्थान में मंगल भी हो तो जातक को रक्त संबंधी कोई रोग होता है जिसमें उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

नवें स्थान में पितृदोष

नवें स्थान में पितृदोष

कुंडली के नवें स्थान में बनने वाला पितृदोष सीधे-सीधे जातक के भाग्य को प्रभावित करता है। जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता, इस कारण वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असफल होता है। आर्थिक, शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में जातक को भयंकर कष्ट भोगना पड़ते हैं। जातक को भिखारियों के समान जीवन व्यतीत करना पड़ता है। भयंकर कर्ज में डूबकर जातक आत्महत्या जैसा कदम भी उठा सकता है। नवें घर में बनने वाले पितृदोष के प्रभाव से जातक नि:संतान रहता है।

दसवें स्थान में पितृदोष

कुंडली के दसवें स्थान में पितृदोष होने का सबसे बुरा प्रभाव जातक के कार्य-व्यवसाय पर पड़ता है क्योंकि दसवां स्थान आजीविका का स्थान होता है। ऐसे जातक को बार-बार नौकरी बदलना पड़ती है। व्यापार में लगातार हानि होने के कारण उसमें भी बार-बार बदलाव करना पड़ता है। जातक को साझेदारी में तो बिलकुल भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए वरना इसे पार्टनरों से धोखा मिल सकता है। कहीं भी निवेश करने से उसमें हानि ही होती है। जातक को जीवन में बदनामी का सामना भी करना पड़ता है।

11वें स्थान में पितृदोष

कुंडली का 11वां स्थान आय स्थान होता है। यदि इस स्थान में पितृदोष बना हुआ है तो जातक की आय के साधन सीमित होते हैं और उनसे होने वाली आय भी अल्प मात्रा में होती है। इसके चलते जातक अपने दैनिक जीवन की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पाता है। धन संग्रह के लिए जातक गलत रास्ते पर चल पड़ता है। लूट, डकैती, चोरी और अन्य तरह के अपराध करने लगता है और इसके चलते इसका अधिकतर जीवन जेल में बीतता है। जातक का पारिवारिक और सामाजिक जीवन नगण्य रहता है।

12वें स्थान में पितृदोष

कुंडली के बारहवें स्थान में बनने वाला पितृदोष जातक को आय से अधिक खर्च करवाता है। छोटे-छोटे कार्यों में इसे खर्च अधिक करना पड़ता है। घर में पैसा आने से पहले उसके खर्च का रास्ता बन जाता है। 12वें स्थान का पितृदोष जातक को पारिवारिक सुख से वंचित कर देता है। जातक को ना तो अपने माता-पिता का सुख मिल पाता है और ना ही जीवनसाथी या संतान का। सामाजिक जीवन में भी कई बार बदनामी का सामना करना पड़ सकता है।

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English summary
Pitra Dosha is a Karmic Debt of the ancestors and reflected in the horoscope in the form of planetary combinations.
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