
आयु के होते हैं पांच भाग, जानिए किसे कहते हैं दीर्घायु
नई दिल्ली, 11 जून। प्रत्येक मनुष्य अपने भविष्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है। कई लोग अपनी आयु के बारे में ज्योतिषियों से प्रश्न पूछते हैं। किंतु भविष्य ज्ञात करने से पहले मनुष्य की आयु जान लेना अत्यंत आवश्यक होता है। यदि आयु ही नहीं होगी तो अन्य प्रश्नों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। अवस्था के अनुसार मनुष्य की आयु को पांच भागों में विभक्त किया गया है। ये हैं अल्पायु, मध्यमायु, संपूर्णायु, दीर्घायु और विपरीत आयु।

- अल्पायु : जन्म से 33 वर्ष तक की आयु अल्पायु मानी जाती है।
- मध्यमायु : 34 से 64 वर्ष तक की आयु मध्यमायु मानी जाती है।
- संपूर्णायु : 65 से 100 वर्ष तक की आयु को संपूर्णायु कहा जाता है।
- दीर्घायु : 101 से 120 वर्ष तक की आयु दीर्घायु कहलाती है।
- विपरीत आयु : 120 वर्ष के आगे जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक की आयु विपरीत आयु कही जाती है।
शनि की स्थिति तय करती है कितनी होगी आयु
जन्मकुंडली में प्रमुख रूप से आयु का विचार अष्टम स्थान से किया जाता है। तृतीय और दशम स्थान भी आयु स्थान कहे गए हैं। इसलिए आयु निर्धारण करते समय 3, 8, 10वें स्थान का विचार करना चाहिए। आयु का कारक ग्रह शनि है। यदि जन्मकुंडली में शनि का बल अधिक है, शनि अपने स्थान में या उच्च स्थान में या अपने मित्र क्षेत्र में हो तो जातक को पूर्ण आयु प्राप्त होती है। इसके विपरीत यदि शनि नीच स्थान या शत्रु क्षेत्र में या अन्य पाप ग्रहों के साथ हो तो अल्पायु होती है। शनि के सम क्षेत्रों में रहने पर मध्यमायु होती है।
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नैसर्गिक ग्रह का विचार भी आवश्यक
जातक की आयु किस प्रकार की है यह ज्ञात करने के लिए नैसर्गिक शुभ ग्रह और नैसर्गिक पाप ग्रह की स्थिति देखना आवश्यक है। नैसर्गिक शुभ ग्रह किसी भी स्थान के अधिपति होने पर भी केंद्र में स्थित होने पर आयु वृद्धि करते हैं। नैसर्गिक पाप ग्रह केंद्र में रहने पर आयु क्षीण करते हैं। ये ग्रह यदि कोणों में रहते हैं तो अधिक हानि नहीं करते। नैसर्गिक पाप ग्रह विशेषकर शनि के तृतीय, अष्टम स्थान में रहने पर आयु वृद्धि होती है।