श्रावण में जरूर करें कालसर्प दोष की शांति
नई दिल्ली। कालसर्प दोष को लेकर लोगों के मन में कई प्रकार की भ्रांतियां, डर और सवाल होते हैं। ज्योतिष के कई विद्वान कालसर्प दोष को महज एक कल्पना बताते हैं, लेकिन आधुनिक काल के कई ग्रंथों में इस दोष का उल्लेख मिलता है। हालांकि यह दोष इतना भी भयानक नहीं होता है, जितना इसको लेकर डर पैदा कर दिया गया है।
कालसर्प योग सिर्फ एक भ्रान्ति है, इससे परेशान ना हो
ज्योतिष की भाषा में कालसर्प दोष तब बनता है, जब राहु और केतु के मध्य समस्त ग्रह आ आते हैं। राहु-केतु की अलग-अलग भावों में उपस्थिति के कारण 12 प्रकार के कालसर्प दोष बनते हैं। कहा जाता है जब किसी जातक की जन्मकुंडली में कालसर्प दोष होता है तो उसके जीवन में कुछ भी व्यवस्थित नहीं चलता। उसके प्रत्येक कार्य में बाधा आती है। आर्थिक तरक्की अवरूद्ध हो जाती है। आय से अधिक खर्च होता है और स्वयं को या परिवार के किसी सदस्य को बीमारियां चलती रहती हैं।
घबराने या परेशान होने की आवश्यकता नहीं
यदि ऐसा सब आपके साथ भी हो रहा है तो घबराने या परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। भले ही आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो या न हो आप श्रावण माह में शिवजी की उपासना, आराधना, अभिषेक करेंगे तो न केवल कालसर्प दोष से मुक्त हो जाएंगे बल्कि जन्म कुंडली के अन्य दोषों से भी छुटकारा मिल जाएगा। आइये जानते हैं कैसे करें शिवजी को प्रसन्न।
कालसर्प दोष की शांति
जिन जातकों की कुंडली में स्पष्ट कालसर्प दोष बना हुआ है वे श्रावण माह में आने वाली कृष्णपक्ष की चतुर्दशी या अमावस्या को किसी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां शिवलिंग पर सर्प नहीं हो। ऐसे शिवलिंग पर सर्प लगवाकर शिवमहिम्न स्तोत्र से अभिषेक करें। शिवजी को दूध से बनी मिठाई अर्पित करें। साथ ही 11 जरूरतमंद या भूखे लोगों को भोजन कराएं। इससे शिवकृपा तुरंत प्राप्त होगी और कालसर्प दोष की शांति होगी।
नागपंचमी पूजा
कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति श्रावण कृष्ण पंचमी तिथि को व्रत रखे। एक घड़े पर अष्टगंध से सर्प का आकार बनाकर पंचोपचार पूजन कर गीले आटे से चौमुखी दीपक बनाएं और घी डालकर उसे प्रज्जवलित करें। नागपंचमी की कथा सुनकर अपने परिवार की सुख-शांति, समृद्धि की कामना करें।
पितृदोष से मुक्ति
जन्मकुंडली में पितृदोष होने पर भी कार्यों में बाधाएं आती हैं और जीवन में संकट बने रहते हैं। यदि ऐसा है तो श्रावण के प्रत्येक सोमवार को घी से शिवजी का अभिषेक करें। शिवलिंग पर श्वेत चंदन का लेप करें। बिल्व पत्र, सफेद आंकड़े के फूल और धतूरे अर्पित करें। इससे पितृदोष की शांति होगी और आर्थिक तरक्की के रास्ते खुलेंगे।
ग्रहण दोष से मुक्ति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य या चंद्र के साथ राहु या केतु की युति होती है तब उस जातक के जीवन में ग्रहण दोष का निर्माण होता है। यह एक ऐसा योग है जो सूर्य और चंद्र से मिलने वाले शुभ प्रभावों को रोक देता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कभी मान-सम्मान नहीं मिलता। वह दूसरों के लिए चाहे कितना भी कर ले लेकिन बदले में उसे कुछ हाथ नहीं लगता। यदि सूर्य के कारण ग्रहण दोष लगा हुआ है तो प्रातःकाल में सूर्य को जल अर्पित करें और शुद्धजल में दूध और शकर मिलाकर शिवजी को हर दिन अर्पित करें। यदि चंद्र के कारण ग्रहण दोष लगा हुआ है तो पूरे श्रावण माह सायं के समय शिवजी को 108 बेलपत्र अर्पित करें। सुगंधित द्रव्यों से पूजन करें।