Makar Sankranti 2018: मकर संक्रांति पर क्यों होता है तिल का दान और क्यों खाते हैं खिचड़ी
नई दिल्ली। मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति से होता है।। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं और जब सूर्य मकर में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी 2018 यानी कि रविवार के दिन मनाई जा रही है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य का मकर में प्रवेश होने से ही सारे शुभ काम शुरु हो जाते हैं जैसे बच्चों के मुंडन, छेदन संस्कार , यही नहीं 14 तारीख के बाद लड़कियां मायके से ससुराल जाती हैं क्योंकि खरमास समाप्त हो जाता है।
धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है तो वहीं इस दिन खास तौर पर तिल का दान किया जाता है।
क्या है मान्यता
कहा जाता है कि संक्रान्ति के लिए तिल का दान सबसे शुभ माना गया है क्योंकि मान्यता है कि तिल शनि का द्रव्य है, तिल के जरिए इंसान अपने पूर्व जन्मों में किए गए पापों की माफी मांगता है, इस कारण लोग आज के दिन काला और सफेद दोनों तिल दान करते हैं।
आर्थिक स्थिति ठीक होती है
तिल का लड्डू दान करने से आर्थिक स्थिति ठीक होती है, लोग निरोगी होते हैं और उन्हें मानसिक शांति मिलती है। हो सके तो संक्रांति के दिन बहते जल में तिल और गुड़ का प्रवाह करें, इससे आपके सारे कष्टों का अंत जल्द ही हो जाएगा।
मंत्रों का जाप
दान करते वक्त निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना चाहिए...
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम, स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रांति पर खिचड़ी का प्रयोग क्यों?
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन भोजन के रूप में खिचड़ी खाने की परम्परा है, दरअसल यूपी में चावल की पैदावार अधिक होती थी। मकर संक्रांति को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है इसलिए नए चावल से नए साल का स्वागत किया जाता है।
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