आठमुखी रूद्राक्ष की विशेषता व धारण करने की विधि
नई दिल्ली। रूद्राक्ष भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है। भगवान की भक्ति एवं स्वयं की शक्ति को बढ़ाने के लिए संत-महात्मा अपने गले में रूद्राक्ष की अनेकों मालाओं को पहनकर आकर्षण का केन्द्र बने रहते है। रूद्राक्ष सिर्फ शिव के भक्ति के लिए नहीं अपितु इसमें आयुर्वेद के अनेक गुण विद्यमान है। आईये आज जानते आठमुखी रूद्राक्ष की विशेषता व धारण करने की विधि। यह रूद्राक्ष अष्ट देवियों का स्वरुप माना जाता है। इसे धारण करने से आठ देवियों की विशेष कृपा बनी रहती है। आठमुखी रुद्राक्ष पहनने से विभिन्न प्रकार के संकटों को दूर किया जा सकता है।
कचहरी में झमेलों से मिलेगा छुटकारा
-जिन
जातकों
के
कोर्ट-
कचहरी
में
मुकदमें
चल
रहे
है
ऐसे
लोगों
को
आठमुखी
रुद्राक्ष
धारण
करने
से
शीघ्र
ही
विजय
मिलती
है।
-
आठमुखी
रुद्राक्ष
शत्रुओं
का
नाश
करने
में
काफी
सक्षम
होता
है।
अतः
जो
लोग
अपने
शत्रुओं
से
परेशान
रहते
है,
उन्हें
यह
रुद्राक्ष
अवश्य
धारण
करना
चाहिए।
-साहस,
आत्मविश्वास
और
पराक्रम
से
भरपूर
आठमुखी
रुद्राक्ष
को
उन
लोगों
को
अवश्य
पहनना
चाहिए
जो
मनुष्य
शारीरिक
व
मानसिक
रुप
से
कमजोर
रहते
है।
दूर होंगे राहु के दुष्प्रभाव
-
जिस
परिवार
में
अकाल
मृत्यु
या
दुर्घटनाएं
प्रायः
होती
रहती
है।
उस
घर
में
आठमुखी
रुद्राक्ष
की
विधिवत्
पूजा
करने
से
लाभ
होता
है।
-
जिन
जातकों
को
कमर
या
रीढ़
की
हड्डी
से
सम्बन्धित
कोई
समस्या
बनी
रहती
है,
उन्हें
रेशमी
धागे
में
आठमुखी
रुद्राक्ष
को
धारण
करने
से
लाभ
मिलता
है।
-यह
रुद्राक्ष
प्रतिकूल
परिस्थिति
को
अनुकूल
बनाने
में
काफी
प्रभावशाली
साबित
होता
है।
-राहु
का
दुष्प्रभाव
दूर
करने
के
लिए
आठमुखी
रुद्राक्ष
को
गले
या
भुजा
में
धारण
करने
से
राहु
का
दोष
समाप्त
हो
जाता
है।
आठमुखी रूद्राक्ष को धारण विधि
किसी
मास
की
शुक्ल
पक्ष
की
त्रयोदशी
से
लेकर
पूर्णमासी
तक
विधिवत्
पूजन
करना
चाहिए।
हल्दी
के
चूर्ण
को
घोलकर
अनार
की
कलम
में
ताम्रपत्र
पर
षणकोण
यन्त्र
बनाकर
उसके
मध्य
में
इस
मन्त्र
''श्रीं
गलौं
फट्
स्वाहा''
को
लिखे
।
इसके
बाद
''ऊँ
सर्वशक्ति
कमलासनाय
नमः''
मन्त्र
को
पढ़ते
हुए
पुष्प
अक्षत
रखकर
गंगाजल
से
परिमार्जित
अष्ठमुखी
रुद्राक्ष
को
समर्पित
करे
।
गंगाजल
में
केसर,
गोरोचन
व
दूध
मिलाकर
निम्न
मन्त्र
ऊँ
गं
गणधिपते
नमः
से
रुद्राक्ष
का
अभिषेक
करें।
हवन
मन्त्र
-ऊँ
श्रीं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
हूं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
हीं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
क्लीं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
स्त्रीं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
गं
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
-ऊँ
ग्लौं
फट्-
स्वाहा
उपरोक्त
सभी
मन्त्रों
से
5-5
बार
स्वाहा
बोलकर
हवन
करना
चाहिए।
तत्पश्चात्
हवन
अग्नि
की
7
बार
परिक्रमा
करके
रुद्राक्ष
धारण
करना
चाहिए।