पिता दक्ष के तप फल से जन्मीं देवी सती,पढ़ें रोचक कथा
नई दिल्ली। पुराणों द्वारा बताई गई कथाओं में सदा ही यह वर्णन मिलता है कि असुरों के नाश के लिए देवी ने अवतार लिया है। धार्मिक कथाओं के अनुसार किसी असुर के उत्पात से पार पाने में जब भी देवता असफल हुए, तब उनका उद्धार करने के लिए देवी प्रकट हुईं। इन सब कथाओं से अलग है माता पार्वती या सती के जन्म की कथा। इस कथा में पिता-पुत्री के कोमल स्नेह और उस अनिर्वचनीय प्रेम की गाथा है, जिसे एक पिता- पुत्री ही अनुभव कर सकते हैं।
आइये, आज हम भी इस दिव्य, कोमल और सम्भवतः सबसे अधिक पवित्र प्रेम की गाथा के साक्षी बनते हैं-
पर्वत राज दक्ष अनेक पुत्रियों के पिता थे। वे अपनी प्रत्येक पुत्री पर लाड़ लुटाया करते थे। इतनी पुत्रियों के पिता होने के बाद भी उनके मन में एक अधूरापन- सा था। उन्हें लगता था कि अभी तक उनके आंगन में उस कन्या की किलकारी नहीं गूंजी है, जो संसार में अद्वितीय हो। अपनी इसी कामना को पूर्ण करने के संकल्प के साथ महाराज दक्ष माता आद्या की आराधना में डूब गए। उन्होंने लंबे समय तक वन में कठोर तपस्या कर आदिशक्ति को प्रसन्न किया।
उनके तप से प्रसन्न होकर माता आद्या प्रकट हुईं और महाराज से वर मांगने को कहा। महाराज दक्ष ने कहा - हे माते! मैं एक ऐसी अनुपम कन्या का पिता बनने की कामना रखता हूं, जो इस ब्रह्मांड में अद्वितीय हो। मेरी कन्या इस संसार की धारा बदलने की क्षमता रखती हो। मेरी कन्या ऐसी हो कि उसका हर कर्म सृष्टि को प्रभावित करे। मेरी कन्या इतनी अद्भुत हो कि देवगण भी उसके आगे नतमस्तक हों और उससे सहायता पाने को दंडवत हों। मेरी यह कन्या ब्रह्मांड को शरण देने, उसके दुख दूर करने में सक्षम हो। संसार की सारी शक्तियों का स्रोत मेरी पुत्री में समाहित हो।
'हे राजन! मैं स्वयं तुम्हारे घर पर पुत्री रूप में जन्म लूंगी'
दक्ष की बात सुनकर माता आद्या ने कहा- हे राजन! मैं स्वयं तुम्हारे घर पर पुत्री रूप में जन्म लूंगी। उस अवतार में मुझे सती के नाम से जाना जाएगा। इसके पश्चात सती के रूप में स्वयं आदिशक्ति ने महाराज दक्ष के घर में जन्म लिया। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण उन्हें पार्वती नाम से भी जाना गया। सती की हर लीला अद्भुत थी। उसने बचपन में ही ऐसे अनेक कार्य किए, जिन्हें अभूतपूर्व ही कहा जा सकता है। स्वाभाविक- सी बात है कि यह कन्या पिता दक्ष की समस्त महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने में सक्षम थी। यही सती युवा होने पर महाशिव की पत्नी बनीं और आदिशक्ति होने के नाते सम्पूर्ण विश्व को अपनी विविध लीलाओं के माध्यम से शरण देती रहीं।
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