Planetary Movements: ग्रहों की गति क्या है और कैसे बदलती है?
लखनऊ। प्रत्येक ग्रह की पृथक-पृथक गति होती है। सभी ग्रहों के साथ राहु-केतु भी आकाशमार्गीय क्रांति प्रदेश के पथ पर भ्रमण करते रहते है। गति दो प्रकार की होती है-परिभ्रमण और परिक्रमण।
- परिभ्रमण-जब ग्रह अपनी धुरी पर अपने ही आस-पास परिश्चम से पूर्व की ओर घूमता है, उस गति को परिभ्रमण कहते है।
- परिक्रमण-ग्रह जब अपने मार्ग से चलते हुए सूर्य के आस-पास घूमता है, जैसे परिक्रमा कर कर रहा हो तो उस गति को परिक्रमण कहते है।
परिभ्रमण
पृथ्वी जब अपनी धुरी पर रात-दिन में अर्थात 24 घण्टे में अपने ही चारों ओर घूम लेती है तो उसे परिभ्रमण कहते है। पृथ्वी जब परिभ्रमण करते हुए अपनी कक्षा पर सूर्य की परिक्रमा करने को आगे बढ़ती है तो उसे परिक्रमण कहते है। जैसे भौंरा अपने आस-पास चक्कर लगाते हुए आगे बढ़ता है।परिक्रमण भी दो प्रकार का होता है-मार्गी गति और वक्री गति।
यह पढ़ें: वक्री गुरू की चाल का यूं हो रहा है हम पर असर, रहें थोड़ा सतर्क
- मार्गी गति-जब ग्रह अपने मार्ग में सीधा बढ़ते चला जाता है तो उसे मार्गी ग्रह कहते है। यह गति पश्चिम से पूर्व को होती है। जैसे सूर्य मेष राशि में है तो उसके उपरान्त वृष फिर मिथुन आदि की ओर बढ़ता जायेगा। यही ग्रहों की सीधी गति है।
- वक्री गति-जब ग्रह सीधी चाल चलते-चलते एकदम वापस लौट पड़ता है तो उसे वक्री ग्रह कहते है। यह गति पूर्व से पश्चिम को सूर्य की चाल के विरूद्ध होती है। जैसे कोई ग्रह मिथुन राशि में है तो उसके उपरान्त वह कर्क राशि की ओर जायेगा किन्तु आगे न बढ़कर फिर वृष की ओर लौट पड़े तो उसे ग्रह की वक्री गति कही जायेगी। इस प्रकार से प्रत्येक ग्रह की पृथक-पृथक गति होती है। कोई शीघ्र चलता है और कोई धीमी गति से चलता है।
राहु-केतु को छोड़कर अन्य ग्रहों की गति सदा बदलती रहती है
- चन्द्र-यह पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक है और सबसे तेज चलने वाला है। पृथ्वी के आस-पास प्रायः 30 दिन में घूमकर अपनी परिक्रमा पूरी कर लेता है।
- शनि-यह ग्रह पृथ्वी से सबसे अधिक दूरी पर है और सबसे धीमी चाल चलने वाला है। यह 30 वर्ष में अपनी परिक्रमा पूरी कर पाता है।
- सूर्य-यह 365,1/4 दिन में अपनी परिक्रमा पूरी कर पाता है। प्रतिदिन लगभग एक अंश की दूरी तय करता है। इस प्रकार स्थूल मान से 1 राशि 1 महीने रहता है।
इस
प्रकार
से
चन्द्रमा
सवा
दो
दिन
एक
राशि
में,
मंगल
एक
महीना,
बुध
एक
महीना,
गुरू
13
महीना,
शुक्र
1
महीना,
शनि
30
महीना
और
राहु-केतु
18-18
महीने
एक
राशि
में
रहते
है।
राहु-केतु
को
छोड़कर
अन्य
ग्रहों
की
गति
सदा
बदलती
रहती
है।
राहु-केतु
की
गति
कभी
बदलती
नहीं
है।
राहु-केतु
सदा
ही
वक्री
गति
से
यानि
उलटी
चाल
चलते
है।
सूर्य
और
चन्द्रमा
कभी
भी
वक्री
गति
से
नहीं
चलते
है,
वह
सदैव
सीधी
गति
में
चलते
है।
सूर्य के आस-पास परिक्रमा मार्ग है...
सूर्य के आस-पास जो परिक्रमा मार्ग है, वह गोली नहीं बल्कि अण्डाकार है। इस मार्ग का कुछ भाग सूर्य के समीप पड़ जाता है और कुछ दूर हो जाता है। कोई ग्रह जब चलते-चलते सूर्य के अधिक पास पहुंच जाता है। {यह घटना पृथ्वी के सम्बन्ध में लगभग 1 जनवरी को होती है } जब सूर्य से ग्रह अधिक दूरी पर चला जाता है तब उसे सूर्य से अधिक दूर कहते है। {यह घटना पृथ्वी पर लगभग 1 जुलाई को होती है}। ग्रह जब सूर्य के समीप हो जाता है तो सूर्य की आकर्षण शक्ति बढ़ती है जिसके कारण सूर्य के खिचांव से ग्रह की गति में अधिक तेजी आ जाती है। और ज्यों-ज्यों वह ग्रह सूर्य से दूर होता जाता है, उसकी गति धीमी होती जाती है। क्योंकि सूर्य से दूरी होने के कारण सूर्य का खिचांव कम होने लगता है और उस स्थिति में ग्रह वक्री हो जाता है। किन्तु जब दूर से लौटकर ग्रह सूर्य की ओर बढ़ता है तब फिर से मार्गी हो जाता है।
यह पढ़ें: नवग्रहों को बैलेंस करके भाग्योदय करती है अष्टधातु