Holika Dahan 2020: रघुकुल की रीत है होलिका दहन
नई दिल्ली। होलिका दहन का मुहूर्त पास आते ही मोहल्ले, गलियों और चौराहों पर धूम मच जाती है। बुजुर्गो और युवाओं से अधिक बच्चे होलिका दहन के कार्यक्रम में रंग भरते हैं। घर-घर से चंदा इकट्ठा करना, लकडि़यां जमा करना, उपले मांग कर लाना और होलिका दहन के स्थान को निश्चित कर सजाना, इन सबमें पूरे तन-मन से लगे बच्चों का शोरगुल बड़ों के मन में भी उत्साह भर देता है। आमतौर पर होलिका दहन की कथा राक्षसी होलिका के पतन से जुड़ी मानी जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि होलिका दहन की परंपरा महाराज रघु के काल से प्रारंभ हुई। महाराज रघु भगवान राम के पूर्वज थे और उन्हीं के नाम पर इस वंश को रघुकुल के नाम से जाना जाता है। उनके काल में कैसे और क्यों होलिका दहन किया गया, एक रोचक कथा के माध्यम से जानते हैं।
'राज्य में हर तरह से सुख-शांति थी'
यह त्रेतायुग की बात है, जब महाराज रघु अयोध्या के सिंहासन पर आसीन थे और उनकी कीर्ति चारों दिशाओं में छाई हुई थी। राज्य में हर तरह से सुख-शांति थी। इसी बीच अचानक अयोध्या और उसके आस-पास के गांवों से बच्चे गायब होने लगे। अचानक आई इस विपदा से हर तरफ होहल्ला मच गया। राजा रघु ने बच्चों के गायब होने का कारण पता लगाने में सारे साधन झोंक दिए। इसके साथ ही एक चौंकाने वाली बात सामने आई। महाराज को दूंढी नाम की एक राक्षसी की जानकारी मिली, जो छोटे बच्चों को मारकर खा जाती थी। महाराज ने उसे मारने के कई प्रयास किए, पर वह हाथ ही ना आई।
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राज्य से बच्चे धड़ाधड़ गायब हो रहे थे...
एक तरफ राज्य से बच्चे धड़ाधड़ गायब हो रहे थे, प्रजा का दुख बढ़ता जा रहा था और महाराज रघु को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। ऐसे में उन्होंने राजपुरोहित से सलाह ली। राजपुरोहित ने बताया कि ढूंढी को मारना किसी के बस की बात नहीं है। उसे वरदान प्राप्त है कि कोई मानव, जानवर, देवता, अस्त्र, शस्त्र, सर्दी, गर्मी, बरसात उसे नहीं मार सकते। यह सुनकर महाराज चिंता में पड़ गए।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा
तब राज-पुरोहित ने बताया कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को जब थोड़ी सी ठंड और थोड़ी सी गर्मी रहती है, यदि बच्चे घरों से लकडि़यां लाकर किसी एक स्थान पर इकट्ठा करें और खूब हल्ला कर राक्षसी को सामने आने पर मजबूर कर दें, तो वे मिलकर उसे आग में जलाकर भस्म कर सकते हैं।
बच्चों का शोर सुनकर राक्षसी रूक ना सकी...
राजपुरोहित के निर्देशानुसार राज्य के सब बच्चे एक स्थान पर लकड़ी इकट्ठा कर हल्ला मचाने लगे। बच्चों का शोर सुनकर राक्षसी रूक ना सकी और उन्हें खाने के लिए सामने आ गई। तब महाराज और राजपुरोहित की मदद से बच्चों ने उस पर कीचड़ और राख से हमला कर दिया और पकड़कर आग में डाल दिया। इस तरह ढंूढी अग्नि में भस्म हो गई और फाल्गुन की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा शुरू हो गई।
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