Kartik Month festivals: ये हैं कार्तिक माह 2020 के प्रमुख व्रत और त्योहार
नई दिल्ली। हिंदू धर्म की खूबसूरती और महत्व ही इसके व्रत-त्योहार हैं। ऐसा कोई माह नहीं है जिसमें कोई व्रत-त्योहार ना आता हो। लेकिन इनमें सबसे अधिक व्रत त्योहारों वाला महीना है कार्तिक माह। इसलिए इस माह का सर्वाधिक महत्व है। इस माह की शुरुआत शरद पूर्णिमा के स्नान से शुरू हो जाती है और कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दीवाली तक जारी रहता है। इस वर्ष कार्तिक माह 1 नवंबर से प्रारंभ होकर 30 नवंबर तक जारी रहेगा।
आइए जानते हैं कार्तिक माह के प्रमुख व्रत-त्योहार कब आ रहे हैं...
कार्तिक स्नान प्रारंभ : 31 अक्टूबर से
भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के समस्त सुख, भोग की प्राप्ति और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्ति की कामना से कार्तिक माह में प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व जागकर तारों की छाया में स्नान किया जाता है। दिनभर व्रत रखकर रात्रि में तारों की छाया में भोजन किया जाता है।
करवाचौथ : 4 नवंबर
शरद पूर्णिमा के बाद कार्तिक माह का पहला व्रत है करवाचौथ। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन होता है। पति की दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ यह व्रत विवाहित महिलाएं करती हैं। इस दिन निराहार, निर्जला रहते हुए स्ति्रयां व्रत करती हैं। भगवान गणेश की पूजा करती हैं और रात्रि में चंद्रदर्शन के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।
अहोई अष्टमी, रवि पुष्य : 8 नवंबर
यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान के दीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत को संतान आठे के नाम से भी जाना जाता है। नि:संतान स्ति्रयां भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इस व्रत में गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है। यह व्रत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस दिन रविवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से रवि-पुष्य का शुभ संयोग भी बना है, जो समस्त प्रकार की खरीददारी के लिए शुभ है।
रमा एकादशी : 11 नवंबर
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के सुख, भोग, भौतिक सुख-सुविधाएं देने वाला कहा गया है। व्रत के प्रभाव से जीवन के संकटों, परेशानियों का नाश होता है। इसमें पूर्ण व्रत रखते हुए भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप का ध्यान-पूजा की जाती है।
गोवत्स द्वादशी : 12 नवंबर
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी कहा जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है। उन्हें गेहूं से बनी चीजें खिलाई जाती है। इस दिन व्रत करने वाले गाय के दूध और इससे बनी वस्तुओं का सेवन नहीं करते। गेहूं से बने पदार्थ और कटे फल भी नहीं खाते।
धनतेरस, यम दीपदान : 13 नवंबर
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि का जन्मोत्सव मनाया जाता है। दीपावली से दो दिन पहले वाले धनतेरस को धन की पूजा की जाती है। इस दिन नए बर्तन, सोना-चांदी खरीदने का विधान है। व्यापारी लोग इस दिन अपने प्रतिष्ठानों में नई गादी बिछाकर, बही-खाता की पूजा करते हैं। धनतेरस के दिन से पांच दिवसीय दीपावली पर्व की शुरुआत होती है। तिथि संयुक्त होने के कारण इस रात्रि में यम दीपदान किया जाएगा।
रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी : 14 नवंबर
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी, नरक चौदस कहा जाता है। मान्यता है किइस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षण का वध उसके आतंक से संसार को मुक्ति दिलाई थी। यह रूप निखारने का दिन भी माना जाता है। इस दिन घरों में लोग उबटन लगाकर स्नान करते हैं और अपने रूप को चमकाते हैं।
दीपावली : 14 नवंबर
कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। यह हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। पांच दिनी पर्व का यह मुख्य दिन होता है। दीपावली की तैयारियां कई दिन पहले से प्रारंभ हो जाती है। घरों में साफ-सफाई, रंग-रोगन किया जाता है और घरों को खूबसूरत लाइटिंग से सजाया जाता है। इस दिन रात्रि में मां लक्ष्मी पूजा, गणेश और सरस्वती माता की जाती है और उनसे वर्ष अन्न, धन के भंडार भरने की कामना की जाती है। लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम इस दिन अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्या को दीपमालाओं से सजाया गया था। इस दिन पटाखे चलाकर खुशियां मनाई जाती है। मिठाइयों से एक-दूसरे का मुंह मीठा कराया जाता है।
गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव : 15 नवंबर
कार्तिक माह के शुक्लपक्ष का पहला दिन गोवर्धन पूजा के नाम रहता है। इसकी परंपरा भगवान श्रीकृष्ण ने प्रारंभ करवाई थी। इस दिन दिन गायों को धन मानते हुए उनके सजाया-संवारा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। ग्रामीण घरों में इस दिन प्रकीतात्मक रूप में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है और उसकी परिक्रमा की जाती है। इस दिन अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है।
भाई दूज, यम द्वितीया, चंद्र दर्शन : 16 नवंबर
कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भाई दूज या यम द्वित्तीया मनाया जाता है। पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का समापन इसी दिन होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को भोजन करवाकर उन्हें तिलक करती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती है। भाई बहनों को उपहार देते हैं।
छठ पूजा प्रारंभ : 18 नवंबर
भगवान सूर्य की आराधना का पर्व छठ पूजा मुख्यत: बिहार, झारखंड, पूर्वाचल में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन से प्रारंभ होने वाला यह पर्व 18 नवंबर से प्रारंभ होगा। इसमें नहाय खाय, खरना, सांध्य अर्घ्य किया जाता है। 20 नवंबर को छठ पूजा होगी। प्रात: अर्घ्य के साथ व्रत का पारणा होगा।
आंवला नवमी, अक्षय नवमी : 23 नवंबर
कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवला नवमी या अक्षय नवमी मनाई जाती है। इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करके इसके नीचे बैठकर भोजन करने का महत्व है। कहा जाता है इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन को छोड़ मथुरा गए थे। यह व्रत परिवार के सुख-सौभाग्य के लिए किया जाता है।
देवोत्थान एकादशी, देव उठनी एकादशी : 25 नवंबर
कार्तिक शुक्ल एकादशी देवोत्थान एकादशी होती है। यह वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी है क्योंकिइसी दिन भगवान विष्णु चार माह के शयनकाल से जागते हैं। चातुर्मास का समापन इसी एकादशी के दिन होता है। इस दिन से विवाह प्रारंभ हो जाते हैं और वर्ष का स्वयंसिद्ध मुहूर्त होता है। हिंदू परिवार इस दिन छोटी दीवाली मनाते हैं। सायंकाल में तुलसी विवाह किया जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी, हरिहर मिलन : 28 नवंबर
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरि और हर अर्थात् विष्णु और शिव का मिलन होता है। चातुर्मास के चार माह भगवान विष्णु के शयनकाल में रहने के कारण पृथ्वी का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। उसके बाद बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव पुन: यह कार्यभार भगवान विष्णु को सौंपते हैं। यह एकमात्र ऐसा दिन होता है जब शिव को तुलसी और विष्णु को बिल्व पत्र अर्पित किया जाता है।
देव दीवाली, कार्तिक पूर्णिमा : 30 नवंबर
कार्तिक पूर्णिमा के साथ कार्तिक माह का समापन हो जाता है। इस दिन देव दीवाली मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इसी दिन गुरुनानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। इस दिन घरों को दीपों से सजाया जाता है। पवित्र नदियों में दीपदान किया जाता है। जो लोग कार्तिक स्नान और कार्तिक व्रत रखते हैं वे इस दिन व्रत का उजमना करते हैं।
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