Hartalika Vrat 2019: अखंड सौभाग्यदायक है हरितालिका तीज व्रत
नई दिल्ली। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरितालिका तीज व्रत किया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं इस व्रत को भविष्य में अच्छे और गुणी पति की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस वर्ष हरितालिका तीज व्रत 1 सितंबर रविवार को आ रही है।
व्रतों और त्योहारों की परंपरा
हिंदू धर्म में शिव-पार्वती के अटूट प्रेम को आधार बनाकर अनेक व्रतों और त्योहारों की परंपरा बनी है। माना जाता है कि माता पार्वती और शिव अपनी पूजा करने वाली सभी सुहागिन महिलाओं को अटल सुहाग का वरदान देते हैं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि स्वयं पार्वती ने एक जन्म में शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया और वरदान में उनसे उन्हें ही मांग लिया। इसी व्रत को हरितालिका तीज व्रत के नाम से जाना जाता है। कई स्थानों पर इसे बड़ी तीज भी कहते हैं। वैसे तो पूरे भारत में सभी सुहागिनें इस व्रत को बड़े उत्साह से करती हैं, लेकिन विशेष रूप से मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान में हरितालिका तीज को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
हरितालिका तीज व्रत की कथा
एक बार पार्वती ने हिमालय पर गंगा किनारे 12 वर्ष की आयु में कठोर तप किया। वे शिव जी को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। उनके व्रत के उद्देश्य से अपरिचित उनके पिता गिरिराज अपनी बेटी को कष्ट में देखकर बहुत दुखी हुए। ऐसे समय में एक दिन स्वयं नारद मुनि ने आकर गिरिराज से कहा कि आपकी बेटी के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। उनकी बात सुनकर पार्वती के पिता ने बहुत ही प्रसन्न होकर अपनी सहमति दे दी। उधर, नारद मुनि ने भगवान विष्णु से जाकर कहा कि गिरिराज अपनी बेटी का विवाह आपसे करना चाहते हैं। श्री विष्णु ने भी विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी।
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गिरिराज ने अपनी पुत्री को यह शुभ समाचार सुनाया
नारद जी के जाने के बाद गिरिराज ने अपनी पुत्री को यह शुभ समाचार सुनाया कि उनका विवाह श्री विष्णु के साथ तय कर दिया गया है। उनकी बात सुनकर पार्वती जोर-जोर से विलाप करने लगीं। यह देखकर उनकी प्रिय सखी ने विलाप का कारण जानना चाहा। पार्वती ने बताया कि वे तो शिवजी को अपना पति मान चुकी हैं और पिताजी उनका विवाह श्री विष्णु से तय कर चुके हैं। पार्वती ने अपनी सखी से कहा कि वह उनकी सहायता करे, उन्हें किसी गोपनीय स्थान पर छुपा दे अन्यथा वे अपने प्राण त्याग देंगी। पार्वती की बात मान कर सखी उनका हरण कर घने वन में ले गई और एक गुफा में उन्हें छुपा दिया। वहां एकांतवास में पार्वती ने और भी अधिक कठोरता से भगवान शिव का ध्यान करना प्रारंभ कर दिया।
पार्वती ने बालूरेत का शिवलिंग बनाया
इसी बीच भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में पार्वती ने बालूरेत का शिवलिंग बनाया और निर्जला, निराहार रहकर, रात्रि जागरण कर व्रत किया। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने साक्षात दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने उन्हें अपने पति रूप में मांग लिया। शिव जी वरदान देकर वापस कैलाश पर्वत चले गए। इसके बाद पार्वती जी अपने गोपनीय स्थान से बाहर निकलीं। उनके पिता बेटी के घर से चले जाने के बाद से बहुत दुखी थे। वे भगवान विष्णु को विवाह का वचन दे चुके थे और उनकी बेटी ही घर में नहीं थी। चारों ओर पार्वती की खोज चल रही थी। पार्वती ने व्रत संपन्न होने के बाद समस्त पूजन सामग्री और शिवलिंग को गंगा नदी में प्रवाहित किया और अपनी सखी के साथ व्रत का पारण किया। तभी गिरिराज उन्हें ढंूढते हुए वहां पहुंच गए। उन्होंने पार्वती से घर त्यागने का कारण पूछा। पार्वती ने बताया कि मैं शिवजी को अपना पति स्वीकार चुकी हूं और आप श्री विष्णु से मेरा विवाह कर रहे हैं। यदि आप शिवजी से मेरा विवाह करेंगे, तभी मैं आपके साथ घर चलूंगी। पिता गिरिराज ने पार्वती का हठ स्वीकार कर लिया और धूमधाम से उनका विवाह शिवजी के साथ संपन्न कराया।
हरत यानि हरण करना और आलिका यानि सखी
पार्वती की सखी उनका हरण कर उन्हें घनघोर वन में ले गई थीं। हरत यानि हरण करना और आलिका यानि सखी अर्थात सखी द्वारा हरण करने के कारण ही यह व्रत हरितालिका व्रत के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो स्त्री पूरे विधि-विधान से इस व्रत को संपन्न करती है, वह शिवजी से वरदान में अटल सुहाग पाती है और अंत में शिवलोक गमन करती है।
व्रत की पूजा विधि
हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस दिन बालूरेत के शंकर-पार्वती बनाए जाते हैं। उनके ऊपर फूलों का मंडल सजाया जाता है। पूजा गृह को केले के पेड़ों से सजाया जाता है। यह निर्जल, निराहार व्रत है, जिसमें प्रसाद के रूप में फलादि ही चढ़ाए जाते हैं। व्रती स्त्रियां रात्रि जागरण कर, भजन-कीर्तन कर भगवान शिव की पूजा करती हैं। दूसरे दिन भोर होने पर नदी में शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन करने के साथ यह व्रत संपन्न होता है।
तृतीया तिथि का क्षय है
इस वर्ष हरितालिका तीज का व्रत भले ही 1 सितंबर को किया जा रहा है लेकिन वास्तव में इस बार तृतीया तिथि का क्षय है। क्योंकि 1 सितंबर को प्रातः 8.26 बजे तक द्वितीया तिथि रहेगी। 8.26 बजे से तृतीया तिथि प्रारंभ होगी जो 2 सितंबर को सूर्योदय से पूर्व तड़के 4.56 बजे ही समाप्त हो जाएगी। चूंकि 1 सितंबर को सूर्योदय के बाद से प्रारंभ होकर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही तृतीया समाप्त हो जाएगी, इसलिए इस तिथि का क्षय हो गया है।
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