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Guru Pradosh Vrat 2020: कथा सुने बिना पूरा नहीं होता व्रत, पढ़िए गुरु प्रदोष व्रत की महिमा

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक व्रत-त्योहार के साथ कोई न कोई कथा जुड़ी हुई है। व्रत-त्योहार की पूजा के बाद उसके माहात्म्य की कथा जरूर सुनना या पढ़ना चाहिए, इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया था कि- हे देव! कथा श्रवण के बिना व्रत अधूरा क्यों माना जाता है। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि- हे धर्मराज! जब भी कोई व्रत या त्योहार संपन्न् किया जाता है उसकी कथा का श्रवण या पठन आवश्यक होता है, क्योंकि कथा उस व्रत या पर्व के महत्व और उसके माहात्म्य का गुणगान करती है। यदि किसी के व्रत के संबंध में तुम्हें जानकारी ही नहीं होगी कि वह क्यों, कब से और कैसे किया जा रहा है तो उसके पूर्ण प्रभाव से तुम वंचित रह जाओगे। इसलिए कथा के बिना व्रत अधूरा होता है। कथा से मन पवित्र होता है और यह हमें उस व्रत के देवता से सीधे जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।

 गुरु प्रदोष व्रत कथा

गुरु प्रदोष व्रत कथा

गुरु प्रदोष व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को पूरी तरह नष्ट कर दिया। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और स्वयं युद्ध के मैदान में उतर आया। उसके भयानक स्वरूप को देखकर देवता भयभीत हो गए और प्राण बचाने के लिए अपने गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति बोले -पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।

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वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ

वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ

वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न् किया है। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया था। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, किंतु देवलोक में ऐसा कभी दिखाई नहीं दिया कि स्त्री सभा में समीप बैठे।"

माता पार्वती ने क्रोधित होकर चित्ररथ से कही ये बात

माता पार्वती ने क्रोधित होकर चित्ररथ से कही ये बात

इस पर शिवजी तो कुछ नहीं बोले, लेकिन माता पार्वती ने क्रोधित होकर चित्ररथ से कहा- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है। अत: मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे सर्वव्यापी के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।" जगदंबा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋ षि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न् हो वृत्तासुर बना।

 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है'

'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है'

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है। अत: हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न् करो।" देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए। इसके बाद स्वयं शिवजी ने प्रकट होकर देवराज को इंद्र को कहा कि गुरु प्रदोष व्रत के प्रभाव से तुम वृत्तासुर नामक राक्षस का अंत करने में सफल हुए हो। ऐसे ही जो मनुष्य इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा के साथ संपन्न् करेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे।

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English summary
For Pradosham Vrat, day is fixed when Trayodashi Tithi falls during Pradosh Kaal which starts after Sunset, Guru Pradosh Vrat on 18th June 2020, Read Katha.
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