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Ganesh Chaturthi 2020: क्यों लगा था भगवान कृष्ण पर झूठा कलंक?

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को कलंक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना निषेध है। यदि भूल से भी कोई मनुष्य चंद्रमा का दर्शन कर ले तो उस पर झूठा आरोप लगता है। इस दोष से स्वयं भगवान कृष्ण भी नहीं बच पाए थे।

Ganesh Chaturthi 2020: क्यों लगा था भगवान कृष्ण पर झूठा कलंक?

आइए जानते हैं क्या है वह कथा-

श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में वर्णित कथा के अनुसार- एक बार जरासंध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के मध्य द्वारकापुरी नगरी बसाकर रहने लगे। द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित ने सूर्यनारायण की आराधना की। तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमंतक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी। मणि पाकर सत्राजित जब श्रीकृष्ण के सामने गया तो कृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर चढ़कर शिकार के लिए गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। इसके बाद रीछों का राजा जामवंत ने उस शेर को मारकर मणि ले ली और अपनी गुफा में चला गया।

सत्राजित ने सोचा कि कृष्ण ने ही प्रसेनजित का वध कर दिया

जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित ने सोचा कि कृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसका वध कर दिया होगा। अत: बिना कोई सबूत जुटाए उसने प्रचार कर दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर स्यमंतक मणि छीन ली है। लोक निंदा के निवारण के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को ढूंढने वन में गए। वहां उन्हें प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न मिल गए।

जामवंत की पुत्री उस मणि से खेल रही है

रीछ के पंजों के निशान के आधार पर खोज करते-करते वे जामवंत की गुफा के भीतर चले गए। वहां उन्होंने देखा कि जामवंत की पुत्री उस मणि से खेल रही है। श्रीकृष्ण को देखकर जामवंत उनसे युद्ध करने लगा। इधर गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग उन्हें मर गया जानकर पश्चाताप करते हुए द्वारिकापुरी लौट गए। इधर 21 दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जामवंत श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका। तब उसने सोचा ये अवतारी पुरुष हैं और यह पुष्टि होने पर उसने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दे दी। श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ। इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

श्रीकृष्ण को लेकर फैली गलत सूचना

कुछ समय बाद श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ गए। तब अक्रूर तथा ऋतु वर्मा की राय से शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मारकर मणि अपने कब्जे में ले ली। सत्राजित की मौत का समाचार जब श्रीकृष्ण को मिला तो वे तत्काल द्वारिका पहुंचे। वे शतधन्वा को मारकर मणि छीनने को तैयार हो गए। इस कार्य में सहायता के लिए बलराम भी तैयार थे। यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और स्वयं भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उसका पीछा करके उसे मार तो डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिल पाई। बलरामजी भी वहां पहुंचे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि इसके पास नहीं है। बलरामजी को विश्वास न हुआ। वे अप्रसन्न् होकर विदर्भ चले गए। श्रीकृष्ण के द्वारिका लौटने पर लोगों ने उनका भारी अपमान किया। तत्काल यह समाचार फैल गया कि स्यमंतक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई को भी त्याग दिया। श्रीकृष्ण इस अकारण हुए अपमान के शोक में डूबे थे कि वहां नारदजी आ गए। उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया कि आपने भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था। इसी कारण आपको इस तरह लांछित होना पड़ रहा है।

सिद्धिविनायक व्रत करने से दोष मुक्त हुए भगवान श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण के पूछने पर नारदजी ने कलंक लगने के पीछे के कारण वाली पूरी कथा कह सुनाई। इस पर श्रीकृष्ण ने दोष मुक्त होने का उपाय पूछा तो नारद जी ने उन्हें सिद्धिविनायक व्रत करने को कहा। श्रीकृष्ण ने सिद्धिविनायक व्रत किया और दोष मुक्त हुए।

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English summary
When Shri Krishna was accused of theft, this stigma was erased at this place, read This Interesting Story of Ganesh Chaturthi 2020.
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