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Foreign yoga: अपने लग्न से जानिए विदेश यात्रा के योग

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। आजकल पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है। न केवल जॉब के लिए बल्कि पर्यटन के लिहाज से भी लोग खूब विदेश यात्राएं करने लगे हैं। लेकिन कई लोग चाहते हुए भी विदेश नहीं जा पाते, इसका कारण आपकी जन्म कुंडली में छुपा हुआ है। कौन व्यक्ति जीवन की किस अवस्था में विदेश यात्रा करेगा यह जन्म कुंडली में लिखा हुआ है, बस जरूरत है उसका सही-सही विश्लेषण करने की। ज्योतिष के अनुसार किसी भी कुंडली के अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते हैं, जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है। इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी यात्राओं की जानकारी हासिल की जा सकती है। कुंडली में अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओं या विदेशों में व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास का संकेत करता है।

आइए जानते हैं लग्न के अनुसार विदेश यात्रा के योग

मेष लग्न में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो...

मेष लग्न में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो...

  • मेष लग्न में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तथा द्वादश भाव का स्वामी बलवान हो तो जातक कई बार विदेश यात्राएं करता है।
  • वृषभ लग्न के साथ शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक अनेक बार विदेश जाता है। वृषभ लग्न में भाग्य स्थान या तृतीय स्थान में मंगल के साथ राहु स्थित हो तो जातक सैनिक के रूप में विदेश यात्राएं करता है। वृषभ लग्न में राहु लग्न, दशम या द्वादश स्थान में हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
  • मिथुन लग्न के साथ यदि शनि वक्री होकर लग्न में बैठा हो तो कई बार विदेश यात्राओं के योग बनते हैं। यदि लग्न में राहु अथवा केतु अनुकूल स्थिति में हों और नवम भाव तथा द्वादश स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
  • विदेश यात्रा का योग

    विदेश यात्रा का योग

    • तुला लग्न में शुक्र व सप्तम स्थान में चंद्रमा हो तो जातक विदेश यात्रा करता है। यदि नवमेश या दशमेश परस्पर संबंध या युति या परस्पर दृष्टि संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
    • वृश्चिक लग्न की कुंडली हो और लग्नेश यानी मंगल सप्तम भाव में स्थित हो व इसके साथ शुभ ग्रह बैठें हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक विदेश में ही बस जाता है।
    • धनु लग्न के अष्टम भाव में चंद्रमा-गुरु की युति हो और नवम स्थान का स्वामी नवम भाव में ही बैठा हो तो विदेश यात्रा का प्रबल योग बनता है। धनु लग्न में बुध और शुक्र की महादशा के कारण जातक को अनेक विदेशों यात्राओं का सुख मिलता है।
    • मकर लग्न की कुंडली में चतुर्थ और दशम भाव में शनि हो तो....

      मकर लग्न की कुंडली में चतुर्थ और दशम भाव में शनि हो तो....

      • मकर लग्न की कुंडली में चतुर्थ और दशम भाव में शनि हो तो विदेश यात्रा होती है। मकर लग्न में सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो तो कई विदेश यात्राएं करनी पड़ती हैं।
      • कुंभ लग्न में तृतीय स्थान, नवम स्थान व द्वादश स्थान का परस्पर संबंध विदेश यात्रा का योग बनाता है।
      • ऐसे जातक को कई देशों की यात्रा करने का अवसर मिलता है

        ऐसे जातक को कई देशों की यात्रा करने का अवसर मिलता है

        मीन लग्न की कुंडली में यदि शुक्र चंद्रमा से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में स्थित हो तो विदेश यात्रा का अवसर मिलता है। मीन लग्न में लग्नस्थ चंद्रमा व दशम भाव में शुक्र हो तो जातक को कई देशों की यात्रा करने का अवसर मिलता है।

        नोट : विदेश यात्रा का योग बनने के लिए इनके अलावा भी कई स्थितियां देखी जाना जरूरी है। शुभ, अशुभ ग्रहों की स्थिति, उनका आपसी दृष्टि संबंध और महादशा आदि का विस्तार किया जाना भी आवश्यक है।

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English summary
Foreign yoga comes into effect when a native has one or more planets situated in the 12th House.
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