राहु-केतु की शांति के लिए 18 शनिवार करें व्रत
नई दिल्ली, 09 जुलाई। राहु और केतु दो ऐसे ग्रह हैं जो प्रत्यक्ष रूप से ब्रह्मांड में भले ही दिखाई न देते हों किंतु इनका प्रभाव व्यापक होता है। ये दोनों छाया ग्रह हैं इसीलिए हर समय सभी ग्रहों के साथ छाया की तरह रहते हैं। ये जातक को उसकी कुंडली के अनुसार अचानक अच्छे या बुरे फल प्रदान करते हैं। राहु और केतु से ही कालसर्प दोष भी बनता है। यदि ये सूर्य या चंद्र के साथ बैठ जाएं तो सूर्य ग्रहण दोष, चंद्र ग्रहण दोष बनाकर जीवन को कष्टमय बना देते हैं। राहु यदि मंगल के साथ बैठ जाए तो अंगारक योग बनाकर जातक को अनेक प्रकार के कष्ट देता है। ऐसा नहीं है किराहु-केतु मात्र बुरा ही करते हैं। यदि शुभ स्थिति में हों तो जातक को राजा के समान जीवन भी देते हैं।
शास्त्रों में राहु-केतु की प्रसन्नता के लिए अनेक उपाय बताए गए हैं किंतु सबसे तेजी से फल देने वाला उपाय इनके व्रत करना होता है। राहु और केतु की शांति के लिए 18 शनिवार तक व्रत करने का विधान है। राहु के व्रत के लिए काले रंग के वस्त्र धारण करके ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: मंत्र एवं केतु के व्रत में ऊं स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: मंत्र की 18, 11 या 5 माला जप करें। जप के समय एक पात्र में जल, दूर्वा और कुशा अपने पास रख लें। जप के बाद इन्हें पीपल की जड़ में चढ़ा दें। राहु के जाप में दूर्वा और केतु के जाप में कुशा का प्रयोग करें।
भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी, भूजा और काले तिल से बने पदार्थ खाएं। रात में घी का दीपक पीपल वृक्ष की जड़ में रखें। 18 व्रत पूरे होने के बाद व्रत का उद्यापन करें। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उचित दान-दक्षिणा प्रदान कर आशीर्वाद लें।