Chaitra Navratri 2019: नवरात्र-मध्यान्ह काल में घट स्थापना क्यों ?
लखनऊ। मां दुर्गा जो भी शस्त्र धारण किये हुये है, उसका अपना प्रतीकात्मक अर्थ होता है। देवी-देवता हमारे अन्तःकरण में रहते है, वे हमारे स्वयं का प्रतिबिम्बन है। सुन्दर व वात्सल्यमयी देवी दुर्गा शेर की सवारी करती है। आखिर ऐसा क्यों? शेर शक्ति का द्योतक है और स्त्री सहनशक्ति का प्रतीक है। माॅ दुर्गा इन दोनों के सामंजस्य का प्रतीकात्मक स्वरूप है। हमारे मनीषियों ने शब्दों की बजाय प्रतीक रूपों में ईश्वर को प्रस्तुत करना उचित समझा क्योंकि शब्द समय के अनुसार बदलते रहते है, किन्तु प्रतीक कभी बदला नहीं करते है। इस बार नवरात्र में मध्यान्ह काल में घटस्थापना की जायेगी आखिर ऐसा क्यों ?
आईये जानते है इसके पीछे का सैद्धान्तिक कारण क्या है...
नवरात्र का आरंभ 6 अप्रैल को
पंचांग के अनुसार, 5 अप्रैल सन् 2019 के दिन शुक्रवार दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से ही प्रतिपदा लग जाएगी, जो कि अगले दिन यानी 6 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 59 मिनट तक रहेगी तत्पश्चात द्वितीया तिथि प्रारम्भ हो जायेगी। दरअसल नवरात्र का आरंभ 6 अप्रैल को सूर्योदय के बाद से ही माना जाएगा, इसी दिन कलश स्भी की जाएगी।
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चैत्र प्रतिपदा यानी नवरात्र के पहले दिन शाम 9 बजकर 47 मिनट तक वैघृति योग है, सनातन धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि इस योग को छोड़कर कलश स्थापित करना चाहिए। किन्तु जब पूरे दिन वैधृति योग हो तब इस स्थिति में पूर्वार्ध भाग को छोड़कर कलश स्थापित करना चाहिए, ऐसे में 9 बजकर 57 मिनट के बाद कलश स्थापित किया जा सकता है, लेकिन कलश स्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 6 मिनट से लेकर 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। अतः इस काल में कलश स्थापना करना उत्तम फलदायक रहेगा।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना के जिए प्रतिपदा के दिन शुभ मुहूर्त से पहले उठकर प्रातः स्कर लें, एक रात पहले ही पूजा की सारी सामग्री एकत्र करके सोएं, स्के पश्आसन पर लाल रंग का एक वस्त्र बिछा लें, वस्त्र पर श्रीगणेश जी का स्ण करते हुए थोड़े से चावल रखें। अब मिट्टी की बेदी बनाकर उस जौ बो दें, और फिर उस पर जल से भरा मिट्टी या तांबे का कलश स्करें। कलश पर रोली से स्या फिर ऊं बनाएं, कलश के मुख पर रक्षा सूत्र भी बांधा जाना चाहिए। कलश में जल भरना चाहिए और सुपारी एवं सिक्का भी डालना चाहिए। इसके पश्चात कलश के मुख को ढक्कन से ढककर इसे चावल से भर देना चाहिए, अब एक नारियल लेकर उस माता की चुनरी लपेटें और उसे रक्षासूत्र से बांध दें, इस नारियल को कलश के ढक्कन के ऊपर खड़ा करके रख दें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ
सभी देवी-देवताओं का ध्यान करते हुए अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करें, पूजा के उपरांत फूल और मिठाइयां चढ़ाकर भोग लगाएं, कलश की पूजा के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना अनिवार्य है।
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