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राजयोग के समान होता है सूर्य-बुध की युति से बनने वाला बुधादित्य योग

By Pt. Gajendra Sharma
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Budhadaya yoga: वैदिक ज्योतिष में सूर्य और बुध की युति से बनने वाले बुधादित्य योग की सर्वाधिक चर्चा मिलती है। सूर्य आत्मा, पिता, सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, सरकारी सेवा क्षेत्रों में उन्न्ति आदि का कारक ग्रह होता है। कुंडली में अकेला सूर्य मजबूत हो और बाकी सारे ग्रह कमजोर हों तो भी जातक भाग्यशाली होता है, लेकिन यदि सूर्य खराब है तो सारे अच्छे ग्रह मिलकर भी जातक को वो पद नहीं दिला पाते जिसका वो हकदार होता है। इसी तरह बुध को ज्ञान, बुद्धि, संयम, व्यापार-व्यवसाय, धन आदि का कारक ग्रह माना जाता है।

कैसे बनता है बुधादित्य योग

किसी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य और बुध एक साथ किसी एक घर में बैठ जाते हैं तो इससे बुधादित्य योग का निर्माण होता है। यह शुभ योग की श्रेणी में आता है। कई विद्वानों ने तो इस योग की तुलना राजयोग से की है। लेकिन बुधादित्य योग सभी के लिए हमेशा अच्छा फल दे यह जरूरी नहीं, कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति, बलाबल, दृष्टि पर भी इस योग का फल निर्भर करता है। साथ ही यह योग बनाने वाले सूर्य और बुध दोनों का मजबूत होना आवश्यक है। इसके अलावा सूर्य और बुध के उच्च और नीच राशि का विचार भी करना आवश्यक होता है।

बुधादित्य योग का फल

बुधादित्य योग का फल

जिस जातक की कुंडली में बुधादित्य योग होता है वह प्रखर बुद्धि वाला होता है। अपने ज्ञान और बुद्धि के दम पर वह दुनिया पर राज करता है। इसलिए इसे राजयोग कहा गया है। ऐसे जातक की वाणी प्रभावी होती है। वाक क्षमता मजबूत होती है। नेतृत्व करने का सहज गुण इनमें होता है। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा जो चाहे वह हासिल कर सकता है।

बुधादित्य योग : किस भाव में क्या फल

बुधादित्य योग : किस भाव में क्या फल

  • प्रथम स्थान (तन भाव) : जन्मकुंडली के प्रथम भाव अर्थात् लग्न में यदि बुधादित्य योग बने तो बालक साहसी, वीर, तेज बुद्धि, आत्मसम्मानी और ज्ञानी होता है। कभी-कभी ऐसा जातक अहंकारी भी होता है, लेकिन यह अपने ज्ञान के दम पर बहुत धन अर्जित करता है। इसे नेत्र रोग और वात-पित्त की समस्या होती रहती है। व्यापार में प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
  • द्वितीय स्थान (धन भाव) : जन्मकुंडली के दूसरे स्थान में बुधादित्य हो तो जातक में दूसरों की वस्तुओं का उपभोग करने की आदत होती है। यह हमेशा दूसरों के धन, स्त्री पर नजर रखता है। हालांकि स्वयं भी अपने उद्देश्यों की पूति के लिए खूब धन अर्जित करता है। इसका वैवाहिक जीवन सुखी होता है तथा विदेशी वस्तुओं के व्यापार से धन प्राप्त करता है।
  • तृतीय स्थान (सहज भाव) : कुंडली के तीसरे स्थान में बुधादित्य बने तो जातक को भाई-बहनों, परिजनों का विशेष प्रेम प्राप्त होता है। यह पैतृक संपत्ति अर्जित करता है। जब-जब सूर्य शुभ स्थिति में होता है तो इन्हें खूब तरक्की मिलती है। भाग्योदय के अनेक अवसर मिलते हैं। व्यापारी वर्ग के ये लोग अनेक उद्यमों से धन अर्जित करते हैं। जातक पराक्रमी होता है।
  • चतुर्थ स्थान (सुख भाव) : कुंडली के चौथे भाव में बनने वाला बुधादित्य योग सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इस स्थान में यदि बुधादित्य योग है तो जातक प्रत्येक कार्य में सफलता हासिल करता है। मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, सरकारी सेवा क्षेत्रों में उन्न्ति, सफल राजनेता, न्यायाधीश, वकील होता है। यह सरकारी संपत्तियों का उपभोग करता है।
  • पंचम स्थान (संतान भाव) : पंचम स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग प्रतिभावान संतान का सुख प्रदान करता है, हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि पंचम में बुधादित्य योग के प्रभाव से संतान कम पैदा होती है। ऐसा जातक कलात्मक वस्तुओं के व्यापार में माहिर होता है। नेतृत्व क्षमता जबर्दस्त होती है। बुध प्रबल हो तो अनेक क्षेत्रों में सफलता मिलती है।
 बौद्धिक क्षमता कमजोर होती है

बौद्धिक क्षमता कमजोर होती है

  • षष्ठम स्थान (शत्रु भाव) : छठे भाव में बना बुधादित्य योग शत्रुओं पर विजय दिलवाता है। चाहे कितने भी शत्रु हों कुछ बिगाड़ नहीं पाते। लेकिन यदि सूर्य कमजोर हो तो जातक को नेत्र और मस्तिष्क रोग होने की आशंका रहती है। बुध कमजोर हो तो जातक की बौद्धिक क्षमता कमजोर होती है। ऐसा जातक श्रेष्ठ जज, ज्योतिषी, डॉक्टर होता है।
  • सप्तम स्थान (विवाह, साझेदारी भाव) : सप्तम स्थान में बना बुधादित्य योग जातक को अतिकामी बनाता है। ऐसे जातक के अनेक विपरीतलिंगी से संबंध बनते हैं। कार्य-व्यवसाय, नौकरी में सफलता मिलती है। अच्छा लेखक, बनता है। साझेदारी के बिजनेस से लाभ कमाता है। इसे पत्नी के भाग्य का सहारा भी मिलता है। एक से अधिक कार्यों से पैसा कमाता है।
  • अष्टम स्थान (आयु भाव) : आठवें स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का मालिक बनाता है। यदि सूर्य कमजोर हो तो जातक को वाहनों से चोट लगती रहती है। ऐसा जातक विदेशी व्यापार से धन अर्जित करता है। गुप्त और रहस्यमयी विद्याओं का जानकार होता है। पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। धार्मिक-आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होता है।
  • नवम स्थान (भाग्य भाव) : भाग्य स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को एक राजा के समान जीवन देता है, लेकिन ऐसा व्यक्ति अहंकारी होता है। इस कारण कई लोग इनसे चिढ़ते भी हैं। ऐसे जातक को अनेक क्षेत्रों में सफलता मिलती है। सरकार में उच्चाधिकारी या मंत्री तक बनने के योग होते हैं। ऐसा जातक मठाधीश या बड़ा संत भी होता है।
  • दशम स्थान (आजीविका भाव) : दशम स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग चतुर्थ के बाद दूसरा सबसे श्रेष्ठ योग होता है। ऐसा जातक सरकारी नौकरी में देश के शीर्ष तक पहुंचता है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी इसी श्रेणी में आते हैं। व्यापार के क्षेत्र में दुनिया के अनेक देशों से डील करता है। आविष्कारक, वैज्ञानिक, खोजकर्ता भी इसी श्रेणी में आते हैं।
  • एकादश स्थान (आय भाव) : 11वें स्थान में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को कलावान, रूपवान, धनवान बनाता है। ऐसा जातक अनेक मार्ग से धन कमाता है। चाहे नौकरी करे या व्यापार, सभी तरह से जातक पैसा कमाता है। भूमि, भवन, संपत्ति, कृषि भूमि प्राप्त होती है। बड़ा बिल्डर भी ऐसा ही जातक होता है। सरकारी क्षेत्र में सफलता मिलती है।
  • द्वादश स्थान (व्यय भाव) : कुंडली के 12वें भाव में बनने वाला बुधादित्य योग जातक को थोड़ा क्रूर मिजाज बनाता है। गलत कार्यों से धन अर्जित करता है, लेकिन यदि धर्म-कर्म से जुड़ा हुआ है तो ऐसा व्यक्ति बड़े पद हासिल करता है। वैवाहिक जीवन सुखी होता है। विदेशी कार्यों से पैसा कमाता है।

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English summary
Budhadaya yoga is formed by the combination of Sun and Mercury.Everything you need to know about Budhaditya Yoga.
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