सावधान! बिना सोचे-समझे न पहनें नीलम
नीलम किस व्यक्ति को लाभ देगा और किसे नुकसान यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नीलम कितनी मात्रा का पहनाया गया है।
नई दिल्ली। नवग्रहों में शनि एकमात्र ऐसा ग्रह है जिससे प्रत्येक व्यक्ति भयभीत रहता है। शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते तो अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं और फिर शनि को प्रसन्न करने के लिए व्यक्ति अनेक ज्योतिषियों, विद्वानों की सलाह से अनेक प्रकार के उपाय करता है। इन्हीं उपायों में से एक है शनि के रत्न नीलम को धारण करना। लेकिन कई बार यह नीलम लाभ की बजाय उल्टा नुकसान देने लगता है।
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इसका कारण यह है कि कुंडली में शनि की स्थिति का ठीक से आकलन न करना या कुंडली में ग्रहों के अंशों का सटीक निर्धारण न होना। नीलम किस व्यक्ति को लाभ देगा और किसे नुकसान यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नीलम कितनी मात्रा का पहनाया गया है और इसका निर्धारण जन्म कुंडली में शनि के अंश देखकर कि जाता है। इसके अलावा अन्य ग्रहों के साथ शनि की स्थिति, लग्न, लग्नेश और महादशा का अध्ययन करना भी जरूरी है।
सावधानी की आवश्यकता
नीलम धारण करने से पहले अत्यंत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि यह अपना शुभ-अशुभ प्रभाव तुरंत दिखाता है। जिस तरह शनि की साढ़ेसाती या महादशा प्रारंभ होते ही जीवन में उथल-पुथल मचने लगती है, ठीक उसी तरह नीलम धारण करते ही इसका प्रभाव सामने आने लगता है। इसलिए बिना सोचे-समझे या आधे-अधूरे ज्ञान से नीलम कभी धारण न करें। नीलम धारण करने से पहले इसे कुछ दिन नीले या काले कपड़े में बांधकर अपने पास रखा जाता है। इसे बाजू में भी सात दिन बांधकर देखा जाता है, ताकि प्रभाव का पता चल सके। यदि इन सात दिनों में कोई बुरी घटना न हो और मन में शांति महसूस हो तो नीलम पहना जा सकता है, लेकिन यदि रात में बुरे स्वप्न आएं, मन-मस्तिष्क में भारीपन लगे, लोगों से विवाद हो, चोट लगे या दुर्घटना हो तो नीलम नहीं पहनना चाहिए।
नीलम होता क्या है?
नीलम को नीलाष्म, नील रत्न, शनिरत्न या शनिप्रिय भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ब्लू सफायर और फारसी में याकूत कबूद कहते हैं। यह कुरूविंद जाति का रत्न है। पहले नीले रंग के रत्न को ही नीलम माना जाता था, लेकिन आजकल नीलम की कई किस्में उपलब्ध हैं। जैसे पीला नीलम, हरा नीलम। नीलम आमतौर पर रंगहीन, गुलाबी, नारंगी, पीला, हरे, बैंगनी और काले रंग में पाया जाता है। किसी नीलम में सफेद धारियां भी देखने का मिलती हैं। उत्तम श्रेणी का नीलम भारत, म्यांमार और श्रीलंका में पाया जाता है। भारत में नीलम का भंडार कश्मीर में है। नीलम का रंग ही महत्वपूर्ण माना जाता है। रंग के आधार पर नीलम दो प्रकार का होता है - इंद्रनील, जिसका रंग नीले आकाश जैसा होता है और जलनील, जिसका रंग समुद्र के पानी जैसा होता है।
कब-कैसा नीलम धारण करें
कुंडली में शनि की दशा अथवा स्थिति के अनुरूप नीलम पहनने का विशेष प्रभाव रहता है। शनि के बारे में माना जाता है कि ये जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसे निहाल कर देते हैं और जिस पर कुपित होते हैं, उसे बर्बाद करने में भी पीछे नहीं रहते।
अशुभ शनि राशि के 21 से 29 अंश
- कुंडली में अशुभ शनि यदि 11 से 20 अंश तक रहने पर 11 रत्ती का नीलम धारण करना चाहिए। इस नीलम को श्रवण नक्षत्र के चौथे चरण में खरीदना, धनिष्ठा के पहले चरण में गहने में जड़वाना और दूसरे चरण में धारण करना चाहिए।
- यदि अशुभ शनि राशि के 21 से 29 अंश तक हो तो तीन रत्ती का नीलम धारण करना प्रभावी रहता है। भाद्रपक्ष नक्षत्र के पहले चरण में यह नीलम खरीदकर, दूसरे चरण में गहने में जड़वाकर तीसरे चरण में विधि विधान से पहना जाना शुभ फलदायी रहता है।
कैसे धारण करें नीलम
समस्त रत्नों को धारण करने से पहले उनका शुद्धि संस्कार किया जाना जरूरी है। नीलम धारण कर रहे हैं तो शनिवार के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर दैनिक पूजन करें। उसके बाद नीलम को किसी बर्तन में रखकर गंगाजल, कच्चे दूध से धोएं। इसे साफ कपड़े से पोछकर काले या नीले कपड़े पर रखें और शनि मंत्र ओम शं शनैश्चराय नमः की एक माला जपकर धारण करें।
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