Vastu Tips: वास्तु-द्वार निर्णय कैसे करें?
लखनऊ। भवन निर्माण में वैसे तो हर चीज का महत्व होता है लेकिन द्वार का विशेष महत्वपूर्ण स्थान होता है। एक कहावत है कि हमारे कम से कम अपना द्वार तो है। किन्तु जमीन के कमी के कारण आज लोग फलैट में रहने लगे है। फलैट में न छत है और न ही द्वार। जो लोग जमीन लेकर अपने घर बनवाते है, वे मकान में छोटा ही सही किन्तु द्वार या गार्डन अवश्य बनायें। आज हम बात कर रहें वास्तु के अनुसार घर का द्वार या गार्डन कैसा हो और उसका किस मुहूर्त में निर्माण करवायें। मुख्य द्वार गृह की दिशा के विषय में वास्तुशास्त्र में के आचार्यो के भिन्न-भिन्न मत हैं।
पूर्व दिशा में
- ज्योतिर्निबन्ध के अनुसार कर्क, वृश्चिक और मीन राशि वाले जातक पूर्व दिशा में अपना द्वार अथवा गार्डन बनायें, कन्या, मकर और मिथुन राशि वाले लोग दक्षिण दिशा में, तुला, कुम्भ और वृष राशि वाले लोग पश्चिम दिशा में, तथा मेष, सिंह और धनु राशि वाले जातक अपने द्वार अथवा गार्डन का निर्माण उत्तर दिशा में करें।
- वास्तुराजवल्लभ के अनुसार जिन लोगों की वृश्चिक, मीन, व सिंह राशि है वे अपने घर का मुख्यद्वार या गार्डन पूर्व दिशा में बनायें, कन्या, कर्क और मकर राशि वाले लोग दक्षिण दिशा में बनायें, धनु, तुला और मिथुन राशि वाले लोग पश्चिम दिशा में बनायें, कुम्भ, वृष तथा मेष राशि वाले जातक अपने घर का मुख्यद्वार या गार्डन उत्तर दिशा में बनायें।
- वास्तुप्रदीप ग्रन्थ के अनुसार जो प्रायः सर्वमान्य है कि जो ब्रहाम्ण राशि{ 4/8/12} वालो को पूर्व दिशा में, वैश्य राशि{ 2/6/10 } वालों के लिए दक्षिण दिशा में, शूद्र राशि { 3/7/11} वालों को को पश्चिम दिशा में एवं क्षत्रिय राशि {1/5/9 } वालों के लिए घर का मुख्यद्वार या गार्डन उत्तर दिशा में बनाना उत्तम रहता है।
- द्वार निर्माण के लिए मुहूर्त का विचार करने में द्वारशाखा, चक्र, नक्षत्र, वार एवं तिथ्यादिक के द्वारा निर्णय किया जाता है।
- शुभ दिन-सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार।
- शुभ नक्षत्र-अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाती, उत्तराषाढ़, श्रवण, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती।
- शुभ तिथियाॅ-पंचमी, सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथियाॅ शुभ होती है।
- वस्तुतः सुमुहूर्त में मुख्यद्वार की स्थापना करने पर गृहस्वामी के जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है, उसका परिवार दिन-दूने, रात-चैगने, फल-फूलता है।
घर का द्वार प्रमाण
मकान के हस्तात्मक व्यास {विस्तार} के तुल्य अंगुल में 50 अंगुल और जोड़ देने पर कनिष्ठ द्वार की ऊॅचाई, 60 अंगुल और जोड़ देने से मध्यम द्वार की ऊॅचाई होती है, 70 अंगुल जोड़ देने से उत्तम द्वार की ऊॅचाई होती है। लम्बाई के 13वें हिस्से से युक्त लम्बाई के आधे के बराबर उत्तम द्वार की चैड़ाई, लमबाई में लम्बाई का तृतीयांश 1/3 कम {अर्थात लम्बाई के 2/3 के बराबर} मध्यम द्वार चैड़ाई तथा लम्बाई के आधे के तुल्य निकृष्ट द्वार की चैड़ाई का मान होता है। उतने ही अंगुल द्वार की चैड़ाई और द्वार की चैड़ाई का दूना द्वार की ऊंचाई होना चाहिए।
पूर्व दिशा में बनाना उत्तम
यदि मकान में एक ही दरवाजा हो तो पूर्व दिशा में बनाना उत्तम होता है। ब्रम्हा, महादेव और जैन इनके मन्दिर में चारो ओर द्वार होना श्रेष्ठ माना जाता है। यदि मकान में दो ओर द्वार बनना हो तो पूर्व और पश्चिम दिशा में एक साथ कदापि न बनायें। इससे सकारात्मक ऊर्जा मकान में टिकती नहीं है, जिस कारण विकास धीमी गति से होता है।
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द्वार-स्थापना मुहूर्त
मकान के दरवाजे लगाने का मुहूर्त
स्वाती नक्षत्र, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तरा भाद्रपद इन नौं नक्षत्रों में बुधवार व शुक्रवार दिन हो और प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी व पूर्णिमा तिथियों में और द्विस्वभावराशि 3, 6, 9, 12 के लग्नों में दरवाजे लगाना बहुत शुभ माना जाता है।
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