जानिए क्या होता है यह कालसर्प योग?
जब
किसी
जन्म
कुण्डली
में
सभी
ग्रह
राहु
और
केतु
के
मध्य
आ
जाते
हैं
तो
काल
सर्प
योग
बनता
है।
राहु
कुण्डली
में
कहीं
भी
हो,
केतु
हमेशा
उससे
सातवें
भाव
में
रहता
है।
ऐसा
होने
पर
कुछ
व्यक्तियों
को
जीवन
में
अशुभ
प्रभाव
का
सामना
करना
पड़ता
है।
कभी-कभी
यह
योग
मनुष्य
को
जीवन
में
असाधारण
सफलता
भी
प्रदान
करता
है।
[ज्योतिष
से
जुड़ी
महत्वपूर्ण
बातें]
हमारे जीवन में राहु का प्रभाव
राहु का प्रभाव हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण रहता है। अन्य ग्रहों के साथ विशेषकर चन्द्रमा, सूर्य, बृहस्पति, शनि और मंगल के साथ मिलकर यह उस ग्रह के प्रभाव को बहुत क्षीण कर देता है। राहु चन्द्र का योग या राहु सूर्य का योग मानसिक कष्ट प्रदान करता है। गुरु-राहु का योग धन सम्बन्धी या संतान संबंधी चिंता उत्पन्न करता है।
शनि-राहु का योग जीवन में दु;ख या बीमारी लाता है। अगर यह योग लग्न में हो तो व्यक्ति को मादक पदार्थों का सेवन करने का शौक होता है। लग्न में केवल राहु अगर शुभ राशियों में हो तो व्यक्ति को प्रशासकीय योग्यतायें प्रदान करता है। [जानिए वो बातें जिससे ज्योतिष नहीं बना सकेंगे आपको बेवकूफ]
काल सर्प योग का जीवन पर असर
राहु और शुक्र एक साथ हों तो धन सम्बन्धी सुख प्रदान करते हैं किन्तु पारिवारिक जीवन में अशान्ति रहती है। उपरोक्त विवेचन में आपने देखा कि राहु का विभिन्न ग्रहों के साथ बैठकर विशिष्ट प्रभाव जीवन में पड़ता है। जन्मकुण्डली में राहु दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो केतु क्रमश; आठवें, बारहवें, दूसरे या छठें भाव में होगा।
ऐसी स्थिति में सभी ग्रह अगर दूसरे आठवें भाव के मध्य हों, या छठे - बारहवें भाव के मध्य हों या छठे - बारहवें भाव के मध्य हो, आठवें - दूसरे भाव के मध्य हों, अथवा बारहवें और छठे भाव के मध्य हो तो इनसे बनने वाला काल सर्प योग जीवन में अशुभ प्रभाव उत्पन्न करता है।
किन दिक्कतों का करना पड़ सकता है सामना?
ऐसी स्थिति में सुखी जीवन व्यतीत करने हेतु अपने घर के पुरोहित से इसकी शांति करा लेनी चाहिए। इस योग का दुष्प्रभाव राहु की विंशोत्तरी महादशा या अन्तर्दशा के दौरान सामने आता है। कभी-कभी यह दुष्प्रभाव गोचर में राहु के अशुभ स्थानों में आने पर भी सामने आता है।
इस स्थिति की जानकारी जन्म कुण्डली में दी गई गणनाओं से आसानी से की जा सकती है। कालसर्प योग होने से शारीरिक कष्ट, आर्थिक हानि, विद्यार्जन में बाधायें, रिश्तेदारी या परिवार में विराध, अनावश्यक मुकदमों में व्यय आदि फल मिलते हैं। कभी-कभी विवाह में बाधा, संतान सुख में कमी, पत्नी या पति सुख की कमी/दुर्घटना आदि भी होती है।
उपाय
और
समाधान
अगर
कुण्डली
में
मंगल,
बुध,
बृहस्पति,
शुक्र
या
शनि
अपनी
राशि
या
अपनी
उच्च
राशि
में
स्थित
होकर
लग्न
या
चन्द्रमा
से
केन्द्र
स्थान
में
हो
तो
कालसर्प
योग
नष्ट
हो
जाता
है।
कालसर्प योग होने पर बिना किसी अनावश्यक भय के रहना चाहिये। किसी एक विपरीत योग के होने पर अनिष्ट नहीं हो पाता है। अगर समय प्रतिकूल हो तो पूरी कुण्डली का समग्र अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। साधारणतया शिव जी की आराधना और ताँबे के सर्प चढ़ाने से लाभ होता है।
(लेखक भारतीय ज्योतिष तथा कुंडली से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ हैं)