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जानिए 'गौमाता' को क्यों खानी पड़ती है जूठन?

भारत में गाय को माता का स्थान प्राप्त है, पुराणों में उसे साक्षात् देव की संज्ञा दी गई है।

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। हिंदू पौराणिक कथाओं में ऐसे रोचक किस्सों की भरमार है, जिन्हें सुनकर हमारे मन में घुमड़ रहे प्रश्नों का एक तरफ समाधान होता है, तो दूसरी तरफ हम पाप कर्म का ज्ञान प्राप्त कर नैतिकता की ओर अग्रसर हो पाते हैं। इसी क्रम में भगवान शिव और मां पार्वती की इतनी कथाएं मिलती हैं, जो दांपत्य प्रेम और छेड़छाड़ के रस से परिपूर्ण होकर जनमानस को हर्षित करती हैं तथा नीति ज्ञान भी देती हैं।

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ऐसी ही एक कथा आरंभ करते हैं-

 गाय को माता का स्थान प्राप्त

गाय को माता का स्थान प्राप्त

भारत में गाय को माता का स्थान प्राप्त है। पुराणों में उसे साक्षात् देव की संज्ञा दी गई है। माना जाता है कि कामधेनु का हर अंश मानव मात्र के लिए वरदान है। हर गृहस्थी की रसोई में पहली रोटी गौमाता के नाम की निकाली जाती है। सुख और दुख से जुड़ा कोई भी धार्मिक अनुष्ठान गौेमाता का ग्रास निकाले बिना पूरा नहीं होता। इसके बावजूद परम पूज्य गौमाता के झुंड के झुंड कचरे के ढेर पर जूठन से पेट भरते दिखाई देते हैं। इसे देखकर मन में प्रश्न आना स्वाभाविक है कि गौमाता की ऐसी दुर्गति क्यों है? इसका उत्तर मां पार्वती के श्राप से जुड़ा है।

 शिव जी के मन में एक शरारत आई

शिव जी के मन में एक शरारत आई

एक बार की बात है, जब भगवान शिव और मां पार्वती समुद्र के किनारे विहार के लिए गए। इस विहार के बीच शिव जी के मन में एक शरारत आई। उन्होंने कहा कि देवी पार्वती, मुझे अचानक आवश्यक काम से जाना पड़ रहा है। मैं कार्य पूर्ण कर अभी आता हूं। आप यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। असल में शिव जी पार्वती को परेशान करना चाहते थे। यही छेड़खानी, ठिठोली शिव पार्वती के दांपत्य जीवन को सबसे अनमोल सिरा है। यही उनकी कहानियों को सबसे रोचक और रसमय बनाता है।

 पार्वती अकेले ही तट पर बैठ गईं

पार्वती अकेले ही तट पर बैठ गईं

शिव जी की बात मानकर देवी पार्वती अकेले ही तट पर बैठकर उनकी प्रतीक्षा करने लगी। इसी तरह शाम हो गई। उस दिन तीज की तिथि थी। जब रात तक शिव जी ना लौटै, तो देव पार्वती ने तट पर ही रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और आस-पास उपलब्ध पूजन सामग्री से रातभर शिव जी का निर्जला, निराहार व्रत संपूर्ण किया। शिव जी सूक्ष्म रूप में वहीं उपस्थित थे और हर गतिविधि के साक्षी थे। सुबह होने पर पार्वती ने समुद्र में रेत के शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन कर दिया। इसके थोड़ी ही देर बाद शिव जी प्रकट हो गए और बोलने लगे कि देवी पार्वती, आपने कल तीज की तिथि पर मेरी पूजा नहीं की? पार्वती जी ने कहा कि मैंने पूजा की है और अभी सामग्री विसर्जित की है। शिव जी अभी भी पार्वती के साथ और ठिठोली करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि पार्वती, मुझे तो पूजा का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता। अगर आपने पूजा की है, तो प्रमाण दीजिए।

जगत की हर घटना का साक्षी

जगत की हर घटना का साक्षी

अब तक मां पार्वती भी समझ चुकी थीं कि भगवान शिव उन्हें जान बूझकर सता रहे हैं क्योंकि जो जगत की हर घटना का साक्षी है, उसे प्रमाण की क्या आवश्यकता है। देवी पार्वती भी इस हंसी-मजाक का भरपूर मजा ले रही थीं। शिव जी की बात सुनकर माता पार्वती ने आस-पास देखा। उन्हें एक गाय खड़ी दिखाई दी। उन्होंने शिव जी से कहा कि ये गाय मेरी साक्षी है। मेरे पूजा करते समय यह उपस्थित थी। शिव जी ने गाय से पूछा कि क्या पार्वती ने पूजा की है? गाय ने ना में सिर हिला दिया। शिव जी ने कहा, पार्वती, आप असत्य कह रही हैं। गाय ने आपकी गवाही नहीं दी। शिव जी के सामने स्वयं का अकारण झूठा साबित होना पार्वती सहन नहीं कर पाईं। उन्होंने उसी वक्त गाय को श्राप दिया कि तू दिव्य जन्मा है, जगत कल्याण के लिए प्रकट हुई है इसीलिए जनहित के लिए तेरे गुण यथावत रहेंगे, किंतु जिस मुंह से तूने झूठी गवाही दी है, उसे दंड भुगतना होगा। झूठ बोलने के कारण अब से जूठन ही तेरा आहार होगी।

गौमाता क्रोध की भागी बनीं

गौमाता क्रोध की भागी बनीं

इस तरह झूठ बोलने से गौमाता क्रोध की भागी बनीं और आज तक उनकी संतति अच्छा भोजन प्राप्त होने के बावजूद जूठन खाने के लिए बाध्य है। यह कथा हमें बताती है कि असत्य भाषण के कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। साथ ही दांपत्य जीवन को रसपूर्ण बनाकर मधुरता से जीवन यापन करना भी सिखाती है।

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English summary
The cow has been a symbol of wealth since ancient days. However, they were neither inviolable nor revered in the same way they are today.
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