'प्रार्थना' समय की बर्बादी नहीं बल्कि भरोसे का नाम है
नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति में ईश्वर भक्ति के जो रूप प्रचलित हैं, उनमें सबसे आम है- प्रार्थना। प्रार्थना यानि कि ईश्वर का नाम जपना, उनसे संबंधित मंत्रों का उच्चारण करना, अपने मन की बात, अपनी आवश्यकताएं, अपनी तकलीफें और अपनी खुशियां तथा सुख भी ईश्वर से बांटना।
अब तो विज्ञान ने भी मान लिया है कि प्रार्थना में कई ऐसी शक्तियां हैं, जो इंसान को बाह्य और आंतरिक रूप से लाभ पहुंचाती हैं।
कैसे, आइये देखते हैं-
प्रार्थना संयम सिखाती है:- प्रार्थना करते समय व्यक्ति का मन केवल उसके ईष्ट के चरणों में नत रहता है। वह अपने आसपास की सारी दुनिया को भूलकर पूरा ध्यान परमपिता के स्मरण में लगाता है। इसी प्रक्रिया में वह एक अद्भुत शक्ति पा जाता है, जो है संयम या आत्म नियंत्रण की शक्ति। वैज्ञानिक शोधों ने प्रमाणित किया है कि जो लोग नियमित रूप से प्रार्थना करते हैं, वे व्यावहारिक जीवन में अधिक संयमित होते हैं। जीवन में कैसी भी परिस्थिति से सामना हो, प्रार्थना करने वाले लोग हमेशा आत्मनियंत्रण बनाए रखते हैं।
प्रार्थना क्रोध को नियंत्रित करती है:- प्रार्थना का सबसे सकारात्मक परिणाम यह है कि इससे व्यक्ति अपने मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण करना सीखता है। शोध से साबित हुआ है कि नियमित रूप से प्रार्थना करने वाले लोग किसी भी परिस्थिति में अपना आपा नहीं खोते। वे अपने क्रोध को नियंत्रित करना जानते हैं और इसी कारण से ना सिर्फ परेशानियों से बचते हैं, बल्कि समाज में सम्मान भी पाते हैं।
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प्रार्थना क्षमा करना सिखाती है:- प्रार्थना व्यक्ति में दैवीय गुणों का विकास करती है। नियमित प्रार्थना से व्यक्ति में विश्वास, प्रेम, नम्रता और क्षमा की भावना विकसित होती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्रार्थना करने वाले लोगों का हृदय दूसरों के मुकाबले अधिक नर्म और कोमल होता है। उनमें करूणा की भावना बलवती होती है। वे दूसरों के कष्टों, पीड़ाओं को अधिक स्पष्टता से महसूस करते हैं और इसीलिए वे लोगों को आसानी से क्षमा कर देते हैं।
प्रार्थना से विश्वास की भावना पनपती है:- विज्ञान ने साबित किया है कि जो लोग एक साथ बैठकर प्रार्थना करते हैं, उनके बीच एक तरह का भाईचारा विकसित हो जाता है। इस तरह के रिश्ते आपसी विश्वास को बढ़ाते हैं। भारत में वैसे भी मंदिरों या आश्रमों में सामूहिक स्मरण, सत्संग आदि में समूह में इकट्ठे होकर प्रार्थना करने का चलन है। इस तरह एक साथ एकत्र होने वाले लोगों के बीच सामाजिक बंधुत्व और आपसी विश्वास की भावना पैदा होती है।
प्रार्थना तनाव के नकारात्मक असर को खत्म करती है:- जो लोग नियमित रूप से प्रार्थना करते हैं, वे ईश्वर से एक विशेष प्रकार के बंधन में बंध जाते हैं। ऐसे लोगों के मन में ईश्वर की श्रद्धा से ऐसी भावना विकसित होती है कि उनका संपूर्ण जीवन एक परम शक्ति के द्वारा नियंत्रित और नियमित किया जा रहा है। इस तरह की सोच से अकेलेपन की भावना कमजोर पड़ती है और जीवन में सामने आने वाले विभिन्न प्रकार के तनावों का असर कम होता जाता है।
प्रार्थना गलतियों को स्वीकार करना सिखाती है:- जीवन में गलतियां किससे नहीं होतीं? कहा जाता है कि इंसान गलतियों का पुतला है। गलतियां इंसान से ही होती हैं। इसके बावजूद कई बार ऐसा होता है कि गलती करने वाला इंसान आत्मग्लानि से भर उठता है।यह ग्लानि कई बार इस हद तक बढ़ जाती है कि व्यक्ति सोचने लगता है कि वह माफी के लायक नहीं है और वह आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लेता है या खुद को संसार से काट कर नितांत अकेला रहने लगता है। ये दोनों ही तरीके जीवन जीने की सही राह नहीं हैं। सही राह है अपनी गलती को स्वीकार करना, माफी मांगना और नए सिरे से जीवन शुरू करना। यह शक्ति प्रार्थना से ही मिल सकती है।