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'स्वास्तिक' केवल एक चिह्न नहीं बल्कि शक्ति और विश्वास का नाम है...

स्वास्तिक जैसा एक छोटा सा धार्मिक चिन्ह ना केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में प्रचलित और समान रूप से पूज्य है।

By पं.गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। हिंदू पूजा विधान में स्वास्तिक के महत्व से कौन परिचित नहीं है। पूजा का प्रारंभ ही पूजन स्थल पर स्वास्तिक बनाने के साथ होता है। हिंदू घरों में हर शुभ कार्य स्वस्ति, स्वास्तिक या सातिया बनाकर ही शुरू किया जाता है। साधारण पूजा-पाठ हो या कोई विशाल धार्मिक आयोजन, स्वास्तिक हर जगह अंकित किया ही जाता है।

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आखिर क्यों है स्वास्तिक इतना विशेष, आइए जानते हैं-

स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति

स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति

स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के सु उपसर्ग और अस धातु को मिलाकर हुई है। सु का अर्थ है श्रेष्ठ या मंगल, वहीं अस का अर्थ है सत्ता या अस्तित्व है। इसके अनुरूप स्वास्तिक का अर्थ है कल्याण की सत्ता या मांगल्य का अस्तित्व। विस्तृत अर्थ में देखें तो इसका मतलब हुआ कि जहां स्वास्तिक है, वहां धन, प्रेम, कल्याण, उल्लास, सुख, सौभाग्य एवं संपन्नता सभी कुछ सहज ही उपलब्ध होता है। स्वास्तिक चिह्न मानव मात्र और विश्व कल्याण के विकास के लिए बनाया जाने वाला अतिप्राचीन धार्मिक चिन्ह है।

पतंजलि योगशास्त्र

पतंजलि योगशास्त्र

पतंजलि योगशास्त्र में कहा गया है कि यदि आप कोई भी कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न करना चाहते हैं तो कार्य का प्रारंभ मंगलाचरण लिखने के साथ होना चाहिए। यह सदियों पुरानी भारतीय परिपाटी है और हमारे मनीषी ऋषियों द्वारा सत्यापित की गई है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि कार्य प्रारंभ करने से पहले उस अनुष्ठान से संबद्ध मंगल श्लोकों की रचना कर मंगलाचरण लिखते थे। हमारे जैसे आम मनुष्यों के लिए ऐसी संस्कृत रचना कर पाना असंभव है, इसीलिए ऋषियों ने स्वस्तिक चिन्ह का निर्माण किया। कार्य के प्रारंभ में स्वास्तिक बनाने मात्र से कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाता है।

 धार्मिक चिन्ह

धार्मिक चिन्ह

स्वास्तिक कार्य प्रारंभ करने के लिए निर्मित किया गया एक धार्मिक चिन्ह है, लेकिन अपनी महत्ता के कारण यह स्वयं पूज्य है। हमारे यहां चातुर्मास में हिंदू स्त्रियां स्वस्तिक का व्रत करती हैं। पद्यपुराण में इस व्रत का विधान है। इसमें सुहागिनें मंदिर में स्वस्तिक बनाकर अष्टदल से उसका पूजन करती हैं। माना जाता है कि इस पूजन से स्त्रियों को वैधव्य का भय नहीं रहता। हिंदू घरों में विवाह के बाद वर-वधु को स्वस्तिक के दर्शन कराए जाते हैं, ताकि वे सफल दांपत्य जीवन प्राप्त कर सकें। कई स्थानों पर नवजात शिशु को छठी यानी जन्म के छठवें दिन स्वस्तिक अंकित वस्त्र पर सुलाया जाता है। राजस्थान में नवविवाहिता की ओढ़नी पर स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। माना जाता है कि इससे वधु के सौभाग्य सुख में वृद्धि होती है। गुजरात में लगभग हर घर के दरवाजे पर सुंदर रंगों से स्वस्तिक बनाए जाने का चलन है। माना जाता है कि इससे घर में अन्न, वस्त्र, वैभव की कमी नहीं होती और अतिथि हमेशा शुभ समाचार लेकर आता है।

शुभ माना जाता है स्वास्तिक

शुभ माना जाता है स्वास्तिक

स्वास्तिक भारत और हिंदू धर्म में ही पूजनीय नहीं है, बल्कि विश्व के अनेक देशों में इससे मिलते-जुलते चिन्हों को पूजने का चलन है। नेपाल में हेरंब नाम से इसकी पूजा की जाती है। यूनान में स्वास्तिक के समान ओरेनस नाम का चिन्ह पूजा स्थल पर देखने को मिलता है। यूनान में इसे लाल या सिंदूरी रंग से बनाया जाता है, जैसे हमारे यहां प्रथम पूज्य गणपति भगवान को सिंदूर चढ़ाया जाता है। बर्मा में स्वस्तिक समान चिन्ह महापियन्ते चलन में है, तो मंगोलिया में त्वोतरवारूनरवागान स्वस्तिक के समान सर्वस्वीकार्य है। कंबोडिया में प्राहेकेनीज, चीन में कुआद-शी-तियेत्, जापान में कांग्येन और मिस्र में एक्टोन नाम के धार्मिक चिन्ह पूजास्थल पर निर्मित किए जाते हैं। इन सबका विधान और संदर्भ स्वास्तिक के ही समान है।

 पूरे विश्व में प्रचलित

पूरे विश्व में प्रचलित

तो देखा आपने, स्वस्तिक जैसा एक छोटा सा धार्मिक चिन्ह ना केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में प्रचलित और समान रूप से पूज्य है। इसका प्रसार और प्रभाव ही यह प्रमाणित करता है कि संपूर्ण विश्व ही उस परमपिता परमात्मा की कर्मस्थली है। विश्वबंधुत्व की भावना के साथ स्वस्तिक यह भी संकेत करता है कि विश्व का हर धर्म एक ही भावना, विश्व कल्याण के लिए जन्मा है और कहीं ना कहीं एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

English summary
The swastika is an ancient religious symbol used in the Indian subcontinent, East Asia and Southeast Asia. It is also a historic symbol found in almost every culture with different significance.
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