Navratri 2019: मां अंबिका ने तोड़ा था धूम्रलोचन का गुरूर
नई दिल्ली। नवरात्र के प्रत्येक दिन में देवी के नाना प्रकार के रूपों की आराधना की जाती है। इस आराधना को देवी के मात्र 9 रूपों में समेटा नहीं जा सकता, क्योंकि संसार के कल्याण के लिए आदिशक्ति ने हर पल एक नया रूप धारण किया है। आदिशक्ति मां दुर्गा अपने हर अवतार में मनोहारिणी हैं। उनके जिस तीसरे रूप को नवरात्र में सर्वाधिक पूजनीय स्थान मिला है, वह है महागौरी, महाकाली और परम सौंदर्यशालिनी मां अंबिका। ये तीनों रूप देवी के तीन अवतार ना होकर एक दूजे में ही समाए हुए हैं और अवसर के अनुरूप प्रकट होते हैं। देवी के इस रूप के साथ अनेक असुरों के काल कवलित होने की कथा जुड़ी है, जिसमें महादेवी ने असुरों के महाबलशाली सेनापति धूम्रलोचन का अंत किया था।
शुंभ और निशुंभ
प्राचीन समय में दैत्यकुल में महाशक्तिशाली दैत्य भ्राता शुंभ और निशुंभ का राज्य था। दोनों ही भाई इतनी घातक शक्तियों के स्वामी थे, जिनकी काट किसी के पास नहीं थी। इसके साथ ही स्थिति और विकराल तब हो गई, जब दोनों भाइयों ने तपस्या कर यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उनका अंत कोई स्त्री ही कर सकती थी। इस तरह महाशक्तिशाली शुंभ-निशुंभ ने अपना सुरक्षा कवच और मजबूत कर लिया और फिर सारे संसार पर अधिकार कर लिया। देवता भी उनके आगे हथियार डालने को विवश हो गए। ऐसी स्थिति में देवता अपने उद्धार के लिए एक बार फिर देवी अंबिका की शरण में पहुंचे।
चंड और मुंड
देवताओं का आर्तनाद सुन देवी क्रोध से भर उठीं और उनके शरीर से महाकाली का प्राकट्य हुआ। इसी समय देवताओं का पीछा करते दो असुर सेनापति चंड और मुंड हिमालय पर पहुंचे और देवी अंबिका का दैवीय सौंदर्य देखकर अभिभूत हो गए। वे उसी समय युद्ध रोककर अपने राजा शुंभ और निशुंभ के पास पहुंचे और उनसे कहा कि सौंदर्य का वह रत्न ना पाया तो आपका राजा होना निरर्थक है। उनकी बात सुनकर शुंभ ने अपने सेनापति सुग्रीव को विवाह का प्रस्ताव लेकर देवी अंबिका के पास भेजा।
स्वामी वास्तव में प्रचंड पराक्रमी
दूत सुग्रीव ने विविध प्रकार से शुंभ के पराक्रम और वैभव का वर्णन करते हुए देवी अंबिका से कहा कि आप मेरे साथ चलकर मेरे स्वामी का वरण करें और ब्रह्मांंड के समस्त सुखों का उपभोग करें। देवी ने मंद हास्य करते हुए कहा कि तुम्हारे स्वामी वास्तव में प्रचंड पराक्रमी हैं, त्रिलोकपति हैं। किंतु मैंने नादानी में एक प्रतिज्ञा पहले ही कर ली है कि तीनों लोकों में जो मुझे युद्ध में परास्त कर मेरा घमंड तोड़ेगा, मैं उसे ही अपना पति स्वीकार करूंगी। इसलिए तुम जाकर शुंभ-निशुंभ से कहो कि वे शीघ्रता से आएं और मुझे हराकर मेरे स्वामी बन जाएं।
धूम्रलोचन अपनी सेना समेत भस्म हो गया
दूत
के
मुख
से
ऐसा
उत्तर
पाकर
शुंभ-निशुंभ
ने
अपने
महापराक्रमी
सेनापति
धूम्रलोचन
को
60
हजार
सैनिक
देकर
देवी
अंबिका
को
केश
पकड़कर
खींचते
हुए
अपने
सामने
प्रस्तुत
करने
की
आज्ञा
दी।
धूम्रलोचन
ने
हिमालय
पहुंचकर
देवी
अंबिका
से
कहा
कि
तुमने
मेरे
स्वामी
का
अपमान
करने
की
जो
धृष्टता
की
है,
मैं
उसका
दंड
तुम्हें
देने
आया
हूं।
मैं
अभी
तुम्हारे
केश
पकड़कर
घसीटता
हुआ
तुम्हें
अपने
स्वामी
के
पास
हो
जाउंगा
और
तुम्हें
उनकी
दासी
बनाउंगा।
इस
पर
देवी
ने
कहा-
तुम
महाबलशाली
भी
हो
और
तुम्हारे
पास
इतनी
बड़ी
सेना
भी
है।
अब
मैं
भला
क्या
कर
सकती
हूं।
आओ
और
मुझे
बंदी
बनाकर
ले
चलो।
देवी
के
इस
कथन
को
सुनकर
जैसे
ही
धूम्रलोचन
उन्हें
बंदी
बनाने
आगे
बढ़ा,
तब
देवी
ने
केवल
''हूं''
शब्द
का
उच्चारण
किया।
इस
एक
ध्वनि
के
प्रचंड
प्रहार
से
धूम्रलोचन
अपनी
सेना
समेत
भस्म
हो
गया।
सीख
देवी की इस कथा से खासकर पुरुषों को यह सीख लेना चाहिए कि स्त्री पर जब भी किसी ने बुरी दृष्टि डाली है, चाहे वह कितना ही बलशाली क्यों न हो उसको दंड मिलता ही है, उसका अंत निश्चित होता है।