अगर पुत्र प्राप्ति की इच्छा है तो जरूर करें पुत्रदा एकादशी व्रत
नई दिल्ली। श्रावण मास के विशिष्ट त्योहारों में से एक है पुत्रदा एकादशी। अपने नाम के ही अनुरूप यह एकादशी निःसंतान व्यक्ति को संतान सुख प्रदान करती है। यह एकादशी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है।
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स्त्री-पुरूष दोनों ही समान रूप से इस व्रत को कर मनोवांछित फल पा सकते हैं। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के संकल्प के साथ यह व्रत किया जाता है। भगवान विष्णु पूरे जगत के कर्ता-धर्ता माने जाते हैं, इसलिए इस एकादशी का उपवास कर उनसे हर मनोकामना पूर्ण करने का वरदान प्राप्त किया जा सकता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा और विधि इस प्रकार है-
व्रत की कथा
बहुत समय पहले की बात है। महिष्मति नगरी में महीजीत नाम का राजा राज्य करता था। राजा महीजीत धर्मपरायण, प्रजापालक शासक था। वह अपनी प्रजा से पुत्रवत स्नेह करता था और हर तरह से उनके कल्याण में ही रत रहता था। उसने अपने राज्य में धर्म और शांति का वातावरण स्थापित किया था। दान-पुण्य में भी वह सबसे आगे रहा करता था। हर तरह से धर्म के अनुकूल आचरण करने के कारण राजा को सबका आशीर्वाद प्राप्त था। उसका जीवन हर तरह के सुख से परिपूर्ण था। इसके बाद भी काफी समय से वह चिंतित और विचलित रहने लगा था। इसका कारण यह था कि विवाह के कई वर्ष बाद भी उसके कोई संतान नहीं थी। वह हर तरह के उपाय कर चुका था, पर संतान सुख ना मिला था। अपने बाद राज्य की सुरक्षा और उत्तराधिकार के बारे में सोच-सोचकर वह हर समय दुखी रहने लगा था।
अभी तक निःसंतान हैं
एक दिन राजा ने अपने राज्य के विद्वान ऋषियों को बुलाकर उनसे अपनी चिंता व्यक्त की। उसके राज्य में एक परमज्ञानी संत लोेमेश ऋषि का वास था। राजा की चिंता जान उन्होंने ध्यान के माध्यम से राजा के पूर्व जन्म की सारी बातें जान लीं। उन्होंने राजा को बताया कि आपन पिछले जन्म में एक प्यासी गाय को अपने तालाब से पानी नहीं पीने दिया था। इसी के परिणामस्वरूप आप अभी तक निःसंतान हैं।
सावन मास की एकादशी
उस दिन सावन मास की एकादशी का पुण्य प्रतापी दिन था और आपके हाथ से पाप हो गया, जिसका फल आपको इस जन्म में भुगतना पड़ रहा है। उनकी बात सुनकर राजा ने इस संकट से पार पाने का उपाय पूछा। लोमेश ऋषि ने उन्हें श्रावण मास की एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी और बताया कि यह एकादशी महाफलदायी है। भगवान विष्णु का ध्यान कर पूरे मन से उनकी उपासना कर रात्रि जागरण करें और रात भगवान की मूर्ति के ही पास बिताएं।
विष्णु का आशीर्वाद
इससे आपको अवश्य ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा और आपको पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। ऋषि के कथानानुसार राजा महीजीत ने रानी समेत पूरी श्रद्धा से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत के फलस्वरूप समय आने पर उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। तभी से सावन मास की यह एकादशी पुत्रदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
व्रत की विधि
इस व्रत के दिन सुबह से नहाकर भगवान विष्णु को गंगाजल से नहलाकर भोग लगाएं। पूरे दिन भगवान विष्णु का स्मरण करते रहें और दोनों समय भोजन ग्रहण ना करें। इस व्रत में अन्न किसी भी समय नहीं लेना है। निराहार व्रत का पुण्य ही अलग होता है पर यदि आप निराहार नहीं रह सकते तो बिना तला हुआ आहार, फल आदि ले सकते हैं। इस दिन पूरे समय विष्णु भगवान का स्मरण करने के बाद रात्रि में सोना भी भगवान की प्रतिमा के पास ही चाहिए। अगले दिन वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा से संतुष्ट करें और उनका आशीर्वाद लें। ऐसा करने से घर में सुख, शांति, ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और निश्चित रूप से पुत्र की प्राप्ति होती है।