भगवान कृष्ण ने किसके 100 अपराध किए थे क्षमा?
नई दिल्ली। भगवान कृष्ण भारतीय संस्कृति के आदर्श पारिवारिक पुरूष हैं। दूर दूर तक फैली रिश्तेदारी निभाना, हर रिश्ते को सहेजना, हर संबंध को उसका मान देना और किसी के साथ अन्याय ना होने देना भारतीय परिवारों के मुखिया का मुख्य कर्तव्य माना जाता है।
कृष्ण ने किया था 16 हजार कन्याओं से विवाह!
हमारे यहां मुखिया को मुख के समान माना गया है, जो अन्न ग्रहण कर शरीर के हर हिस्से को उसकी आवश्यकता का प्राप्य उपलब्ध कराता है, वह किसी के साथ पक्षपात नहीं करता अन्यथा वह सही मायनों में मुखिया नहीं कहलाएगाश्री कृष्ण ने सही मायनों में भारतीय परिवार की इस परंपरा को जीवंत किया है। इसी संबंध में एक कथा सामने आती है, जिसमें न्याय और रिश्तेदारी के द्वंद्व को श्री कृष्ण ने पूरी गरिमा के साथ निभाया है।
यह कथा शिशुपाल वध से जुड़ी है। आइए, आज इसी पर चर्चा करते हैं-
श्रुतकीर्ति के घर पुत्र का जन्म हुआ
यह उस समय की बात है जब किशोरवय कृष्ण शिक्षा पूरी कर लौट चुके थे और बाल लीलाओं का दौर समाप्त होकर किशोरावस्था अपने चरम पर थी। इस समय श्री कृष्ण राजकार्य में रूचि लेते हुए असुरों के विनाश में संलग्न हो चुके थे। इसी समय उन्हें सूचना मिली कि उनकी बुआ श्रुतकीर्ति के घर पुत्र का जन्म हुआ है। शुभ समाचार से प्रसन्न श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ अपने नन्हे भाई को दुलारने पहुंचे। वहां पहुंचने पर कृष्ण ने अनुभव किया कि सब तरफ प्रसन्नता का वातावरण होते हुए भी बुआ कुछ खिन्न हैं। उन्होंने बुआ से इसका कारण पूछा। बुआ ने स्वीकार किया कि सब कुछ ठीक नहीं है। उनका पुत्र जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुआ है और ज्योतिषीय गणनाएं अशुभ की भविष्यवाणी कर रही हैं।
श्रुतकीर्ति से भाई को देखने की इच्छा प्रकट की
कृष्ण ने अपनी बुआ श्रुतकीर्ति से भाई को देखने की इच्छा प्रकट की। बुआ का पुत्र वाकई सामान्य नहीं था। इस बच्चे के चार हाथ और चार आंखें थी। बुआ ने बलराम और कृष्ण से बारी बारी बच्चे को गोदी में लेने को कहा। बलराम की गोद में आने पर बालक में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, लेकिन कृष्ण की गोद में आते ही बालक जोर जोर से रोने लगा और उसके अतिरिक्त हाथ और आंखें अलग होकर धरती पर गिर पड़ीं। इस घटना से कृष्ण अचंभित थे कि अचानक उन्होंने बुआ को अपने चरणों पर गिरा पाया। बुआ बुरी तरह रो रहीं थीं, कृष्ण ने उन्हें उठाकर पूरी बात बताने को कहा। तब बुआ ने कहा कि ज्योतिषियों ने बताया है कि बच्चा आसुरी प्रवृत्ति लेकर पैदा हुआ है और जिसकी गोद में जाकर इसके अतिरिक्त अंग गिर जाएंगे, वही इसका काल बनेगा। बुआ ने कहा कि हे कृष्ण, तुम अपने ही भाई को मारकर अपनी ही बुआ की गोद कैसे उजाड़ सकते हो? मुझे वचन दो कि तुम हमेशा इसकी रक्षा करोगे और इसको मारने की बात मन में भी ना लाओगे।
कर्मफल सिद्धांत
बुआ की बात सुनकर कृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा कि हर प्राणी अपने पूर्व जन्म और कर्मफल सिद्धांत से बंधा हुआ है। इस जन्म का हर प्राप्य पिछले जन्म के कर्मों का फल होता है। यदि इस जन्म में इस बच्चे की मृत्यु मेरे हाथों लिखी है तो प्रारब्ध को कोई बदल नहीं सकता। बुआ के रोने कलपने से पसीजे कृष्ण ने उन्हें दिलासा देते हुए वचन दिया कि वह उनके पुत्र के 100 अपराधों को क्षमा कर देंगे, लेकिन इसके बाद उसे कर्मफल भुगतना होगा। बुआ उनके वचन से संतुष्ट हुई और उन्होंने तय किया कि वे अपने बच्चे को समझा देंगी कि वह कभी 100 की गिनती पूरी ना होने दे।
यही बच्चा शिशुपाल के रूप में बड़ा हुआ
आगे चलकर यही बच्चा शिशुपाल के रूप में बड़ा हुआ। अपनी मां के लाख समझाने पर भी उसने कुसंग और कुप्रवृत्तियों को नहीं छोड़ा और कृष्ण के लिए बैर पालता ही रहा। शिशुपाल ने हर वह कार्य किया जिससे कृष्ण अप्रसन्न हों और उसका वध करने के लिए उद्यत हों क्योंकि बार बार उकसाने पर भी कृष्ण द्वारा संयम बरतने को वह उनकी कमजोरी मान बैठा था। उसे गर्व हो गया था कि कृष्ण उससे डरते हैं। शिशुपाल के लाख उकसाने पर भी कृष्ण ने अपनी बुआ को दिया वचन निभाया। उन्होंने हर गलती पर शिशुपाल को समझाते हुए उसे गिनती भी याद दिलाई, अंततः 100 अपराध पूरे होते ही शिशुपाल कृष्ण के सुदर्शन चक्र का ग्रास बनते हुए मोक्ष को प्राप्त हुआ।
दंड विधान
इस तरह श्री कृष्ण ने कर्मफल को सार्थक करते हुए दंड विधान के साथ न्याय किया और बुआ को दिया वचन निभाकर रिश्ते का भी मान रखा। दोनों ही पक्षों को पूर्ण रूप से संतुष्ट करते हुए उन्होंने मुखिया के गुणों का भली भांति निर्वहन किया।