Basant Panchami 2018: रुत आ गई रे... रुत छा गई रे, पीली-पीली सरसों फूले...
Recommended Video
नई दिल्ली। आज बसंत पंचमी है, आज का दिन कला और संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। कहते हैं जब तक इंसान को मां सरस्वती का आशीष नहीं मिलता है तब तक वो प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए आज के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। कहीं-कहीं पूजा समितियों और स्कूलों में भी मां की पूजा की गई है। तो वहीं आज इस पर्व पर कुछ लोगों ने पवित्र प्रयाग नगरी के संगम में डुबकी भी लगाई है, चारों ओर खुशी का माहौल है, हालांकि कुछ जगहों पर कोहरे ने बसंत की चमक को थोड़ा धूमिल जरूर किया है लेकिन वो लोगों के मन और उत्साह को कम नहीं कर पाया है।
खास योग
आज 14 साल बाद मां लक्ष्मी और रवि योग का दिव्य संयोग बना है, पंचमी पर, जिसके कारण आज का दिन भी और महत्वपूर्ण हो जाता है यही नहीं आज उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र भी है। बसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है तो आज कहीं पर कहीं कौमुदी उत्सव मनाया जाता है।
रुत आ गई रे रुत छा गई रे, पीली-पीली सरसों फूले
ऋतुओं का राजा है बसंत, जिसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
पौराणिक महत्व
मान्यता है कि जब रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम मां सीता को खोजते हुए दक्षिण की ओर बढ़े थे तो इस दौरान वो दंडकारण्य पहुंचे थे, यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी।
एक शिला को पूजते हैं लोग
कहते हैं कि बसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
Read Also: आखिर बसंत पंचमी में क्यों पहनते हैं पीले वस्त्र, क्या है इसके पीछे का राज?