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जानिए 'स्वास्तिक', 'शंख' और 'ऊं' के क्या है मायने, क्यों हैं ये इतने पावन...
लखनऊ। भारत देश धार्मिक आस्थाओं एवं लोक कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। यहां पर सभी धर्मो के लोग अपने-अपने सामाजिक एवं धार्मिक कृत्यों को श्रद्धा व पूर्ण आदर सहित अपनाते हैं। कुछ लोग उनकी आस्था को अंधविश्वास कहते है जबकि समय आने पर पर वे भी इन कृत्यों को अपनाते हैं। उनके कृत्यों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक एवं आलौकिकता का रहस्य छिपा हुआ है। प्राचीन ऋषियों ने अपनी कठोर साधना एवं तप के बल पर जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर जिन आलौकिक शक्तियों को प्राप्त किया और उन्हें धार्मिक आस्थाओं के रूप में अपनाने को कहा, उन्हीं में मांगलिक चिन्ह हैं, जो भवन को वास्तु दोष रहित करते है।
स्वास्तिक
- स्वास्तिक का शाब्दिक अर्थ है स्वस्ति अथवा क्षेम, यह गणेश जी का निप्यात्मक स्वरूप है। इसका प्रयोग प्रत्येक कार्य को बिना विघ्न के सम्पन्न करने के लिए किया जाता है। स्वास्तिक को माॅगलिक चिन्ह के रूप में आदिकाल से प्रयोग किया जा रहा है। ऐसा शुभ कार्यो का प्रतीक स्वास्तिक को भवन के मुख्यदार के दोनों ओर बनाने से भवन की अशुभ दृष्टि व अनिष्ट से रक्षा होती है।
- स्वास्तिक यन्त्र-स्वास्तिक यन्त्र की तरह ही स्वास्तिक यंत्र प्रभावशाली होता है। इसे घर की विदिशाओं में गाड़कर या घर की दीवारों पर लगाकर इसका लाभ उठाया जा सकता है। स्वास्तिक यन्त्र गाड़ने के लिए जमीन में एक फिट छः इंच गहरा गड्डा खोदकर उसमें दूध, गंगाजल और गौमूत्र का मिश्रण छिड़ककर शुद्ध कर लें। उसके बाद दिशाओं के सामान्तर रखकर उसकी पूजा करें, फिर गड्डे को मिट्टी से भर दें। दीवार में स्वास्तिक यन्त्र लटकाना चाहते है, तो तिरछा न हों, इसका पूरा-पूरा ध्यान रखें।
- शंख-दक्षिणावर्त और वामावर्त शंख से भी वास्तु दोष दूर होता है। दक्षिणावर्त शंख जिस घर के पूजन कक्ष में होता है, वहाॅ स्वयं लक्ष्मी निवास करती है। शंख ध्वनि जॅहा तक जाती है, वहाॅ तक रोग उत्पन्न नहीं होते है। संध्या के समय शंख बजाने से गरीबी, नेत्ररोग और क्षय रोग आदि दूर हो जाते है। भवन के जिस कोने में वास्तुदोष का प्रभाव हो, उस स्थान पर शंख की विधिवत पूजा करके स्थापना करनी चाहिए।
- अग्निहोत्र-अग्निहोत्र को करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। अग्निहोत्र का अर्थ होता है आवश्यक मन्त्रों का उच्चारण करके आहूतियाॅ दें और अग्नि ठण्डी होने के बाद उस राख को पेड़-पौधों में डाल दें। अग्निहोत्र करने से वास्तु के कई दोष स्वतः दूर हो जाते है और घर में समृद्धि व खुशहाली का माहौल बन जाता है।
- ऊं-ऊं शक्ति का प्रतीक होता है। किसी भी यन्त्र का उच्चारण करते समय इसका प्रयोग किया जाता है। इसे घर में लगाने या बनाने से कई दोषों का शमन हो जाता है। दरवाजे और चैखट पर भी इसे अंकित कर द्वार दोष से आप-अपने व परिवार की रक्षा कर सकते है।
- म्ंगल कलश-मंगल कलश नारियल, फूल और पान के पत्ते से ढका हुआ कलश सभी तरह के दोष दूर करने वाला होता है। इसकी स्थापना घर या व्यवसाय स्थल में करना शुभ होता है। इसे घर के मुख्य द्वार पर अंकित करने वास्तु दोषों का शमन होता है।
- मीन मछली-भवन के मुख्य द्वार पर जुड़वा मछली के चित्र बनाने की परंपरा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भगवान का प्रथम अवतार मत्स्य ही है। प्रलय के समय मीन ने मनु व सृष्टि की रक्षा नख के रूप में की थी। मीन कामदेव की ध्वजा का प्रतीक है। अतः घर के मुख्यद्वार दो मछलियों को बनाने से घर में नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं होता है एवं सुख व शान्ति बनी रहतह है।
- पंचागुलक का हाथ-हाथ कर्म का प्रतीक है। माॅगलिक चिन्ह के रूप में पंचागुल हाथ की छाप विवाह के समय एवं प्रत्येक मांगलिक कृत्यों पर चावल की पीठी एवं हल्दी से पीठ पर लगाने की परम्परा है। घर के मुख्यद्वार पर पंचागुल हाथ की छाप लगाने से भवन का वास्तु दोष समाप्त होता है एवं सुख व समृद्धि बनी रहती है।
दक्षिणावर्त और वामावर्त शंख से भी वास्तु दोष दूर होता है
ऊं शक्ति का प्रतीक है...
जुड़वा मछली के चित्र बनाने की परंपरा
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English summary
Here is Religious Importance Of Hindu Spiritual Symbols Om, Swastik Explained By Pt Anuj K Shukla.
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