Religion: जानिए ईश्वर के नेत्र यानी कि 'सूर्य' से जुड़ी कुछ खास बातें
नई दिल्ली। सूर्य धरती पर ऊर्जा का श्रोत है और सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा है। इसी तारे के चारों ओर पृथ्वी चक्कर लगाती है। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हजार किलोमीटर है। सूर्य की बाहरी सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम,ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निशियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरज आकाश गंगा के केन्द्र की 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड से परिक्रमा करता है। इस परिक्रमा में 25 करोड़ वर्ष लगते हैं इस कारण इसे 'एक निहारिका वर्ष' भी कहते हैं।हिंदू धर्म में सूर्य को देव का स्थान मिला है क्योंकि सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है।सूर्य का अर्थ होता है 'सर्व प्रेरक' अर्थात 'सर्व कल्याणकारी'।यजुर्वेद ने सूर्य को भगवान का नेत्र माना है।ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है।ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का दर्जा मिला है।
वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो लोगों ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर लिया। अनेक पुराणों में लिखा है कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है।
उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी
सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, जब भगवान सूर्य मेष और तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब रात लंबी होती है और दिन छोटे होते हैं और जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं।
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