कौन थीं अहिल्या, क्यों और कैसे बन गई थीं वो पत्थर?
नई दिल्ली। रामायण के पात्रों से हमारे यहां बच्चा-बच्चा परिचित है, इसका कारण यह है कि हर व्यक्ति के मन, विचार और रुचि को मोहने वाली अनेक कथाएं इसमें बसी हैं। ऐसी ही कथा है श्री राम के वनवास के समय पत्थर की शिला पर पैर पड़ने पर उसका जीवित स्त्री में बदल जाना, यही अहिल्या थीं, जो राम के स्पर्श से श्राप मुक्त हुई थीं।
महर्षि वाल्मीकि: नर्क के भय से एक डाकू का बदला था हृदय
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि अहिल्या को श्राप क्यों मिला? वे पत्थर की शिला कैसे बन गईं थीं? भारतीय पौराणिक कथाओं की एक विशेषता यह भी है कि एक कहानी में दूसरी कहानी मिलकर एक कड़ी बनाती जाती है। अहिल्या की कहानी भी कुछ इसी तरह की है।
आइए, आज इस रोचक और अनोखी कथा का आनंद लेते हैं...
महर्षि गौतम की पत्नी
भारतीय पौराणिक कथा संसार के अनुसार अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थीं। ज्ञान में अनुपम अहिल्या स्वर्गिक रूप-गुणों से संपन्न थीं। अपने अतुलनीय सौंदर्य और सरलता के कारण वे अपने पति की प्रिय थीं। इसके साथ ही वे अपने पति के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थीं, इसीलिए उन्हें सती अहिल्या का नाम मिला था। दोनों ही पति-पत्नी धर्म का पालन करते हुए प्रेम रस से परिपूर्ण दांपत्य का निर्वहन कर रहे थे। ऐसे अद्भुत प्रेम को अचानक एक दिन बुरी नजर लग गई।
देवराज इंद्र
यह बुरी नजर थी देवराज इंद्र की, जो अहिल्या के सौंदर्य पर आसक्त होकर उनका प्रेम पाने के लिए लालायित हो उठा। इंद्र को महर्षि गौतम की दैवीय शक्तियों और सामर्थ्य का ज्ञान था, इसके साथ ही वह अहिल्या के पतिनिष्ठ होने के सत्य से भी परिचित था। इंद्र के पास इन शक्तियों से पार पाने का सामर्थ्य नहीं था, पर वह अहिल्या को भूलना भी नहीं चाहता थे। वह स्वयं को संयमित कर सही अवसर की प्रतीक्षा करने लगा।
एकांतवास में तपस्या करने जाना है...
समय अपनी गति से चलता रहा और एक दिन महर्षि गौतम ने अहिल्या से कहा कि उन्हें एक विशेष सिद्धि की प्राप्ति के लिए कम से कम 6 माह तक वन के एकांतवास में तपस्या करने जाना है। अहिल्या ने उन्हें सहमति देते हुए उनकी प्रतीक्षा करने की बात कह विदा कर दिया। इंद्र बस ऐसे ही एक अवसर की प्रतीक्षा जाने कब से कर रहा था। ऋषि के जाते ही वह महर्षि गौतम का वेश धारण कर अहिल्या के पास पहुंच गया। पति को वापस देख जब अहिल्या चौंकीं तो उसने प्रेम जताते हुए कहा कि उनके सौंदर्य पाश ने वन में जाना असंभव बना दिया इसीलिए तपस्या का विचार छोड़ वापस आ गया।
तो तू भी पत्थर की ही हो जा...
पति की बात सुनकर अहिल्या का मन मयूर नाच उठा और वे दोनों पहले से भी अधिक प्रेम से जीवन का आनंद लेने लगे। देखते ही देखते 6 माह का समय बीत गया और एक दिन अहिल्या ने सुबह सवेरे अपने आंगन में अपने पति की चिर-परिचित पुकार सुनी, जबकि ऋषि का रूप धरे इंद्र तब तक सो ही रहे थे। एक पल में ही अहिल्या को अनर्थ का ज्ञान हो गया। महर्षि गौतम को सामने पाकर अहिल्या पत्ते की तरह कांपते हुए उनके चरणों में गिर पड़ीं। तब तक इंद्र को भी ऋषि के आने का भान हो गया था तो बिना देरी किए वह वहां से भाग निकला। अहिल्या से सारा वृतांत जान ऋषि क्रोध से भर उठे और तुरंत ही उन्होंने श्राप दे दिया कि जिस स्त्री को अपने पति के स्पर्श का भान ना हुआ, वह जीवित नहीं हो सकती। तन और मन से पत्थर की तरह कठोर व्यवहार किया है, तो तू भी पत्थर की ही हो जा।
तन-मन से पति संग थी
ऋषि के श्राप और अपनी अज्ञानता से निराश अहिल्या ने तब अपने पति को रोते हुए समझाया कि आप इतनी दिव्य शक्तियों से संपन्न हैं। आप मुझे अकेला छोड़कर गए और बीते 6 माह में आपको एक बार भी आभास ना हुआ कि मेरे साथ कोई छल कर रहा है, तो मैं तो एक साधारण स्त्री हूं। मैंने अनजाने में अपराध किया है। भले ही मैं पराए पुरूष के साथ रही हूं, पर मेरा मन पवित्र है क्योंकि उस पुरूष को मैंने आप यानि अपना पति जानकर ही अपनाया था। तन और मन दोनों से ही मैं अपने पति के ही साथ थी।
श्रीराम ने किया श्राप मुक्त
अहिल्या की बात सुनकर ऋषि उनसे सहमत हुए और कहा कि अब तो श्राप दिया जा चुका है, उसे वापस नहीं लिया जा सकता, किंतु त्रेतायुग में भगवान विष्णु, श्रीराम के रूप में अवतार लेंगे और वनवास के दौरान तुम्हें स्पर्श करेंगे। उनके स्पर्श से ही तुम्हारा पाप धुलेगा और तुम वापस अपने स्त्री रूप को प्राप्त करोगी। ऋषि के श्राप को धारण करते हुए अहिल्या पत्थर की शिला बन गईं और घोर प्रतीक्षा के बाद श्रीराम के पावन चरणों के स्पर्श से पुनः स्त्री रूप में प्रकट हुईं।