आपके लिए जानना जरूरी हैं रक्षाबंधन से जुड़ी ये कहानियां
नई दिल्ली। राखी हिंदुओं के प्रमुख चार सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्योहार संपूर्ण भारत में समान रूप से मनाया जाता है।
रक्षाबंधन 2017: राखी बांधने का सही मुहूर्त एवं समय
यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है, हालांकि इसके इतिहास पर नजर डालें, तो राखी यानि रक्षा बंधन के अनेक रूप देखने को मिलते हैं।
आज जानते हैं इन्हीं के बारे में..
श्री कृष्ण और द्रौपदी का रक्षाबंधन: द्वापर युग की बात है, जब श्री कृष्ण के सुंदर, अद्भुत और न्यायोचित कार्यों से संपूर्ण संसार उनके आगे नतमस्तक हो चुका था। श्री कृष्ण का पांडवों की पत्नी द्रौपदी से मायके से परिचय था। द्रौपदी उन्हें अपना गुरु, सखा, भाई और पूजनीय मानती थीं और हर कार्य में उनका मार्गदर्शन लेती थीं। श्री कृष्ण ने ही अर्जुन के साथ द्रौपदी का विवाह होना बनाया था।
कृष्ण के हाथ में किसी वस्तु से चोट लग गई
एक बार श्री कृष्ण, अर्जुन और द्रौपदी बैठे वार्तालाप का आनंद ले रहे थे। इसी समय कृष्ण के हाथ में किसी वस्तु से चोट लग गई। श्री कृष्ण के हाथ से रक्त बहता देख द्रौपदी ने झट से अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ा और उनके हाथ में बांध दिया। इसी समय श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि द्रौपदी ने उनकी रक्षा के लिए जिस सूत्र को बांधा है, वे इसका मान रखेंगे। कालांतर में हस्तिनापुर में हुई द्यूतक्रीड़ा में युधिष्ठर अपने साम्राज्य, चारों भाइयों के साथ द्रौपदी को भी हार गए। द्रौपदी का अपमान करने के लिए दुशासन ने जब उनके वस्त्र हरण का प्रयास किया, तब द्रौपदी ने श्री कृष्ण को मदद के लिए पुकारा और कृष्ण की लीला के स्वरूप उनका चीरहरण असंभव हो गया। इस तरह भगवान ने रक्षासूत्र की लाज रखी।
रानी कर्मावती और मुगल सम्राट हुमायूं की राखी
वैसे तो रक्षाबंधन हिंदुओं का त्योहार है, पर भारत में आए मुस्लिम शासकों ने भी भारतीय त्योहारों को पूरा मान दिया है। इतिहास में ऐसी अनेक कहानियां मिलती हैं, जिनमें मुसलमान शासकों ने हिंदुओं की रीति-नीति का निर्वाह उन्हीं की परंपरा के अनुसार किया है। ऐसी ही एक कहानी चित्तौड़ की रानी कर्मावती की है। रानी कर्मावती अपने पति के दिवंगत होने के बाद चित्तौड़ का राज काज संभाल रही थीं। यह वह समय था, जब भारत पर मुगलों का शासन स्थापित हो चुका था और दिल्ली की सल्तनत मुगल सम्राट हुमायूं ने संभाल रखी थी।
प्राणों की आहूति देने का निश्चय किया
चित्तौड़ में महिला शासक को देख गुजरात के बादशाह ने मौके का फायदा उठाने के लिए अचानक ही युद्ध की घोषणा कर घेराबंदी कर दी। अचानक सिर पर आई मुसीबत देख रानी कर्मावती ने अपने मुट्ठी भर सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार कर अपने प्राणों की आहूति देने का निश्चय किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के उद्देश्य से एक सैनिक के हाथ एक पत्र पर राखी हुमायूं के पास भेज सहायता मांगी। मुगल सम्राट हुमायूं ने अपनी हिंदू बहन की राखी की लाज रखी और फौरन ही युद्ध में भागीदारी कर रानी की जान बचाई।
इंद्र और इंद्राणी की राखी
पौराणिक कथाओं में रक्षाबंधन का विवरण देव-दानव युद्ध और इंद्र-इंद्राणी के रक्षासूत्र के रूप में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में भयानक युद्ध हुआ। यह युद्ध पूरे बारह वर्ष तक चला, जिसमें देवता हार गए और तीनों लोकों पर दानवों का अधिकार हो गया। दैत्यों ने तीनों ही लोकों में इतना अत्याचार किया कि धरती कांप उठी। इस स्थिति में धरती पर शांति स्थापित करने और देवों की दयनीय हालत सुधारने के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति ने एक रक्षा विधान किया। यह रक्षा विधान श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल संपन्न किया गया।
इस विधान के अंतर्गत गुरु बृहस्पति ने एक मंत्रोच्चार किया, जो इस प्रकार था
येन
बद्धोबली
राजा
दानवेन्द्रो
महाबलः।
तेन
त्वामभिबध्नामि
रक्षे
मा
चल
मा
चल।।
गुरु बृहस्पति के अनुसार ही इंद्र और इंद्राणी ने भी इस मंत्र का उच्चारण किया। इसके पश्चात इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों से स्वस्तिवाचन कराकर इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांध दिया। कहते हैं कि इसी रक्षासूत्र के बल पर इंद्र ने एक बार फिर दानवों को पराजित किया।