Navratri 2019: मां वैष्णों देवी की पौराणिक कथा
लखनऊ। उत्तर भारत में स्थित मां वैष्णी देवी का मन्दिर हिन्दुओं की आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है। यहॉ पूरे वर्ष मॉ के दशर्न के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। माता अपने सभी भक्तों की मुराद पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। वैसे तो माता के दरबार में भक्तों की भीड़ हमेशा उमड़ी रहती है लेकिन नवरात्र में माता के दरबार का विशेष महत्व रहता है।
आज हम चर्चा करते हैं कि वैष्णी देवी की पौराणिक कथा क्या है ?
एक प्राचीन कथा के अनुसार कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी जिस कारण वे दुःखी रहते थे। एक बार दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने के लिए अपने घर पर आमत्रिंत किया। कन्या के रूप में मां वैष्णी देवी भी उन्हीं कन्याओं के बीच आ बैठीं। पूजन के पश्चात सभी कन्याएं तो चली गईं किन्तु मां वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोली। सबको अपने घर पर भंडारे के लिए आमत्रिंत कर दो। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया।
गांव के लोग आश्चर्यचकित
भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांव के लोग आश्चर्यचकित थे कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में सभी गावों के लोग भोजन के लिए पधारे। तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तो भैरव ने कहा कि मैं तो खीर-पूड़ी की जगह मॉस खाऊंगा और मदिरा का सेवन करूंगा।
पवित्र जलधारा बाणगंगा
भैरव की इस जिद्द पर कन्या रूपी मां ने भैरव को बहुत समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता लेकिन भैरवनाथ अपनी बात पर अड़ा रहा और फिर भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना का प्रयास किया, तब मॉ वैष्णों वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चली और भैरवनाथ भी उनके पीछे चल पड़ा। मां की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी पीछे-पीछे चल दिये। काफी समय पश्चात हनुमानजी को प्यास लगी तो माता ने अपने धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए. आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है. इसके पवित्र जल को पीने या इसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं को शक्ति और उर्जा मिलती है।
महाशक्ति का पीछा छोड़ दे
इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। जिन लोगों के सन्तान न हो, उन्हें इस गुफा में प्रवेश करके मॉ से सन्तान की कामना करनी चाहिए। ऐसा करने से मॉ के आशीर्वाद से आपका घर नन्हीं किलकारियों से गूंज उठेगा। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है। जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। लेकिन वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गईं और माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी। जब हनुमान थक गये, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप धारण करके भैरवनाथ का संहार कर दिया।
मां से क्षमादान की भीख मांगी
अपने वध के पश्चात भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं।
दुष्ट भैरवनाथ का वध
वैष्णो देवी ने जिस स्थान पर दुष्ट भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर मां महाकाली (दाएं), मां महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं. इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। मॉ वैष्णों देवी के दर्शन करने से व्याधियों का नाश होता है एंव मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।