Karva Chauth 2017: करवा-चौथ पर क्यों की जाती है करवे की पूजा?
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नई दिल्ली। 8 अक्टूबर को करवा-चौथ है, जिसके लिए महिलाएं अभी से ही तैयारियों में जुट गई हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाये जाने वाले व्रत में सुहागिन महिलायें अपने पति के जीवन के रक्षार्थ, दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करते हुये संध्या के समय गौधूली बेला में अर्थात् चन्द्रोदय के पूर्व पूर्ण विधिविधान के साथ भगवान श्री गणेश एवं गौरी,शिव पार्वती तथा चौथ की मुख्य देवी अम्बिका का पूजनार्चन करती हैं। इस दौरान करवे की पूजा होती है और इसलिए इस व्रत को करवा-चौथ कहा जाता है।
क्यों होती है करवे की पूजा?
मिट्टी का बना 'करवा' पंचतत्व का प्रतीक है क्योंकि ये मिट्टी और पानी से मिलकर बना है और इसे बनाने के बाद इसे धूप और वायु में सुखाया जाता है और फिर आग में तपाया जाता है। इसलिए ये शुद्द होता है। भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है, क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है। इसलिए मिट्टी के करवे को पूजने के बाद इसमें रखे पानी को पीकर पति -पत्नी अपने रिश्ते की रक्षा करते हैं, अगर ये पानी पति अपने हाथ से पत्नी को पिलाए तो वो अमृत माना जाता है। वैसे कुछ क्षेत्रों में तांबे,पीतल एवं चांदी के घट का प्रयोग भी महिलाएं करती हैं।
शिव-गौरी की पूजा
पौराणिक कथाओं मे भगवान शिव एवं पार्वती को एक आर्दश युगल बतलाया गया है। चन्द्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित रहता है इसी कारण उसे अर्ध्य देने का विधान बतलाया गया है। दिन भर व्रत के साथ उक्त पूजन सम्पन्न करने के पश्चात् महिलाएं चांद का पूजन कर उसे करवा से अर्ध्य देते हुये उसे चलनी से निहारने के साथ-साथ पति को निहारती है।
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