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#Lingayat: 'लिंगायत' कौन हैं, क्यों हिंदू धर्म से अलग होना चाहते हैं , कर्नाटक में क्यों मचा है नाटक?

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Lingayats कौन है ? क्यों होना चाहते हैं Hindu धर्म से अलग | वनइंडिया हिंदी

बेंगलुरु । कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले 'लिंगायत' समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की केंद्र से सिफारिश की है। कांग्रेस के इस कदम ने सियासी विवाद पैदा कर दिया है, आगामी विधानसभा के चुनावों के मद्देनजर सरकार ने ये फैसला किया है क्योंकि कर्नाटक में एक-दो नहीं बल्कि 18 फीसदी लोग 'लिंगायत' है, जो कि चुनावों में किसी भी पार्टी की जीत और हार का कारण बन सकते हैं। फिलहाल ये राजनीति है, जहां जोड़-तोड़ के लिए कुछ भी होता रहता है लेकिन यहां समझने वाली बात ये है कि आखिर 'लिंगायत' हैं कौन और क्यों वो हिंदू धर्म से अलग होने की बात कर रहे हैं।

'लिंगायत'

'लिंगायत'

दरअसल 'लिंगायत' को भारतवर्ष के प्राचीनतम हिन्दू धर्म का एक हिस्सा ही कहा जाता रहा है , जो कि भगवान शिव की आराधना पर आधारित है। 'लिंगायत' सम्प्रदाय की स्थापना 12 वी शताब्दी में महात्मा बसवन्ना ने की थी। इस मत के उपासक 'लिंगायत' कहलाते हैं जो कि कन्नड़ शब्द लिंगवंत से उत्पन्न हुआ है। ये लोग मुख्यतः महात्मा बसवन्ना (उन्हें भगवान बासवेश्वरा भी कहा जाता है) की शिक्षाओं के अनुगामी माने जाते हैं।

'लिंगायत' मूर्ति पूजा नहीं करते

'लिंगायत' मूर्ति पूजा नहीं करते

हालांकि 'लिंगायत' मूर्ति पूजा नहीं करते हैं क्योंकि बासवन्ना इसके विरोधी थे, हालांकि ये अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं, जो कि अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं। लिंगायत लोग इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं और इसे अपनी शक्ति मानते हैं।

 'लिंगायत' शवों को दफनाते हैं

'लिंगायत' शवों को दफनाते हैं

'लिंगायत' पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं, इनके लिए कर्म ही प्रधान है और इसी के आधार पर इंसान को स्वर्ग और नरक मिलता है। 'लिंगायत' शवों को दफनाते हैं , लिंगायत परंपरा में मृत्यु के बाद शव को नहलाकर कुर्सी पर बिठाया जाता है और फिर कंधे पर उठाया जाता है, इसे 'विमान बांधना 'कहते हैं, इनके अलग कब्रिस्तान भी हैं।

 'लिंगायत' और 'वीरशैव' में अंतर

'लिंगायत' और 'वीरशैव' में अंतर

आम तौर पर लोग 'लिंगायत' और 'वीरशैव', दोनों को एक ही मानते हैं लेकिन 'लिंगायत' इसका विरोध करते हैं। उनका कहना है 'वीरशैव' की उत्पत्ति उनसे पहले की है और वो शिव की पूजा करते हैं, तो वो और हम एक कैसे हुए।

कौन हैं बसवन्ना?

कौन हैं बसवन्ना?

12वीं से 16 वीं शती के बीच बसवन्ना नाम के एक व्यक्ति कर्नाटक के जैन राजा विज्जल के प्रधान मंत्री थे। वह योगी महात्मा ही नहीं थे बल्कि कर्मठ संघटनकर्ता भी थे, जिन्होंने 'लिंगायत संप्रदाय' की स्थापना की। उनका लक्ष्य ऐसा आध्यात्मिक समाज बनाना था जिसमें जाति, धर्म या स्त्रीपुरुष का भेदभाव न रहे। बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया था।

क्यों हिंदू धर्म से होना चाहते हैं अलग?

क्यों हिंदू धर्म से होना चाहते हैं अलग?

दरअसल बसवन्ना को मानने वाले आडंबरों, मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं इसलिए वो हिंदू धर्म से अलग होना चाहते हैं। 'लिंगायत' का कहना है कि उनके भगवान ने जाति व्यवस्था और वैदिक परंपराओं का विरोध किया था इसलिए हमें अलग पहचान मिलनी चाहिए।

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English summary
The Karnataka government has decided to favour recognition of one more religious minority in India — Lingayats, so called for their veneration of linga, the icon of Shiva.
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