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Navratri 2019: जरूर जानिए मां कामाख्या देवी की कथा

By पं.अनुज के शुक्ल
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लखनऊ। भारतीय समाज में जहां एक ओर रजस्वला स्त्रियों को अपवित्र मानकर धार्मिक पूजा-पाठ व मन्दिर में प्रवेश करना वर्जित माना जाता है वहीं दूसरी ओर शक्ति की प्रतीक मां कामाख्या देवी को रजस्वला होने के दौरान पवित्र मानकर पूजा जाता है। कामाख्या देवी को बहते रक्त की देवी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रंग के समान हो जाता है।

गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित

गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित

गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या मंदिर नीलांचल पर्वत के मध्य में स्थित है यह मंदिर प्रसिद्ध 108 शक्तिपीठों में से एक है। शास्त्रों के अनुसार पार्वती के पिता दक्ष के द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर सती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे।

सती के शव के टुकड़े

सती के शव के टुकड़े

तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे थेए आज उस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।

चलिए जानते हैं मां कामाख्या देवी की पौराणिक कहानी

चलिए जानते हैं मां कामाख्या देवी की पौराणिक कहानी

पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलयुग में एक अद्भुत आश्चर्य सा प्रतीत होता है।

कामाख्या तंत्र के अनुसार

योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥

कामाख्या की सुंदरता पर मोहित नरकासुर

कामाख्या की सुंदरता पर मोहित नरकासुर

प्राचीन समय की बात है कि एक बार नरकासुर नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर, उनसे प्रेम करने लगा और फिर वह मां कामाख्या देवी से विवाह करना चाहता था। किन्तु देवी कामाख्या ने उससे छुटकारा पाने के लिए नरकासुर के समक्ष एक शर्त रख दी। देवी ने नरकासुर से कहा कि यदि वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढि़यां बना पाएगा तो ही वह उससे विवाह कर लेगी। नरका ने देवी की शर्त स्वीकार कर ली।

राक्षस का वध

राक्षस का वध

जब देवी को लगा कि नरका इस कार्य को पूरा कर लेगा तो उन्होंने एक चाल चली। देवी ने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे प्रातःकाल से पहले ही आवाज देने को कहा। जब नरकासुर को लगा कि वह देवी से लगाई हुई शर्त हार गया तो दुःखी हुआ किन्तु जब उसे यह पता चला कि उसके साथ छल किया गया है तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी। जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई उसे कुकुराकता नाम से जाना जाता है। तत्पश्चात मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बन गया। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा। नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।

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English summary
Kamakhya temple is a famous pilgrimage situated at Guwahati, Assam. The temple is located on the Nilachal hill in Guwahati at about 8 kms from the railway station. Here is Story Of A Bleeding Devi.
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