Jain Maha Kumbh 2018 : कौन थे बाहुबली और क्या था इनका भगवान विष्णु से संबंध
मैसूर। इस वक्त जैन महाकुंभ का पर्व बड़े उत्साह के साथ पूरे भारत में मनाया जा रहा है। ये महापर्व 17 फरवरी 2018 से शुरू हो चुका है । हर 12 साल बाद होने वाले इस पर्व में भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक 20 दिन तक चलेगा, जिसे देखने और समझने के लिए दुनिया भर के लोग श्रवणबेलगोला आना चाहते हैं, जो कि जैनियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से...
श्रवणबेलगोला
श्रवणबेलगोला वो स्थान है, जहां भगवान बाहुबली को मोझ प्राप्त हुआ था। लोग उनके दर्शन के लिए यहां पधारते हैं। यहां भगवान बाहुबली की भव्य प्रतिमा है, जिसका निर्माण 981 में हुआ था। यह मूर्ति 57 फीट की है,यह जैनियों का सबसे बड़ा तीर्थ हैं और इस वक्त यहां आप सारे धर्मों के लोगों को देख सकते हैं।
महामस्तकाभिषेक का आयोजन
यहां कुंभ के दौरान भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक होता है, जो कि 10वीं सदी से हर 12 साल के अंतराल पर होता है। कहा जाता है कि इसका प्रारंभ जब हुआ था, तब कर्नाटक राज्य में गंग वंश का शासन था।
इस अभिषेक का बहुत मान
इस अभिषेक का बहुत मान है और इसी कारण देश के पीएम नरेंद्र मोदी भी इसका हिस्सा बने थे। उनसे पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव भी इस आयोजन का हिस्सा बन चुके हैं।
कहां है श्रवणबेलगोला
जैनियों का ये प्रमुख तीर्थ स्थल कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर से मात्र 80 किमी की दूरी पर है। इसकी दूरी राजधानी बेंगलुरू से मात्र 150 किमी है। प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म का महान केन्द्र था। जैन अनुश्रुतियों के मुताबिक मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किया था।
कौन हैं भगवान बाहुबली
भगवान बाहुबली को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जैनियों में मान्यता है कि बाहुबली गोमतेश्वर मोक्ष पाने वाले पहले व्यक्ति थे। भगवान बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। ऋषभदेव के दो पुत्र हुए जिनका नाम भरत और बाहुबली था। भगवान बाहुबली अयोध्या के राजा थे और उनकी दो रानियां थीं। बाहुबली का अपने ही भाई भरत से उनके शासन, सत्ता के लोभ और चक्रवर्ती बनने की इच्छा के कारण दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध हुआ। इसमें बाहुबली विजयी रहे, लेकिन उनका मन ग्लानि से भर गया और उन्होंने सब कुछ त्यागकर तप करने का निर्णय लिया। अत्यंत कठिन तपस्या के बाद वे मोक्षगामी बने इसलिए जैन धर्म में भगवान बाहुबली को पहला मोक्षगामी माना जाता है।
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