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बलराम जयंती 2017: पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है हलछठ व्रत

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति और पुत्रों के दीर्घायु और सुख-सौभाग्य की कामना के लिए भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि को हलछठ व्रत-पूजा का विधान है। हलछठ का व्रत उत्तरभारत में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में जन्मे बलराम के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलछठ मनाई जाती है। इसलिए इससे बलराम जयंती, ललई छठ या बलदेव छठ के नाम से भी जाना जाता है।

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चूंकि बलराम का प्रमुख शस्त्र हल है इसलिए इसे हल छठ कहा जाता है। माना जाता है बलराम भगवान विष्णु की शैया के रूप में विराजमान शेषनाग के अवतार हैं। इस दिन ब्रज, मथुरा समेत समस्त बलदेव मंदिरों में धूमधाम से बलराम जयंती मनाई जाती है।

पूजा विधान

पूजा विधान

हल छठ के दिन प्रातःकाल स्नानादि के बाद पृथ्वी को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है, जिसमें झरबेरी, पलाश, गूलर, की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हर छठ को स्थापित कर देते हैं। इसकी पूजा की जाती है। पूजन में सतनजा यानी गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा और जौ सात प्रकार के अनाज का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है। हल्दी में रंगा हुआ वस्त्र तथा सुहाग सामग्री अर्पित की जाती है। पूजा के बाद कथा सुनी जाती है।

हलछठ की कथा

हलछठ की कथा

एक गांव में एक ग्वालिन रहती थी। वह गर्भवती थी और उसके प्रसव का समय समीप ही था। उसका दही-मक्खन बेचने के लिए घर में रखा हुआ था। तभी अचानक उसे प्रसव पीड़ा होने लगी, लेकिन उसने सोचा कि बच्चे ने जन्म ले लिया तो दही-मक्खन घर में ही रखा खराब हो जाएगा इसलिए वह उसे बेचने गांव में निकल पड़ी। रास्ते में उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई तो वह एक झरबेरी की झाड़ी की ओट में बैठ गई और उसने वहां एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को बच्चे से ज्यादा चिंता दूध बेचने की थी।

बच्चे का पेट फट गया

बच्चे का पेट फट गया

इसलिए वह बच्चे को कपड़े में लपेटकर झाड़ी में छोड़कर गांव की ओर चल दी। उस दिन संयोग से हल छठ थी इसलिए गांव में सभी को केवल भैंस का दूध-मक्खन चाहिए था, लेकिन ग्वालिन के पास तो गाय का दूध था। उसने पैसों के लालच में आकर सबसे झूठ बोलकर गाय के दूध को भैंस का बताकर बेच दिया। उधर जहां ग्वालिन ने बच्चे को झाड़ी में छुपाया था वहां समीप ही एक किसान खेत में हल चला रहा था। उसके बैल बिदककर खेत की मेढ़ पर जा चढ़े और हल की नोक बच्चे के पेट से टकरा जाने से बच्चे का पेट फट गया।

बालक जीवित मिला

बालक जीवित मिला

किसान ने यह देखा और झरबेरी के कांटों से बच्चे का पेट सिलकर उसे वहीं पड़ा रहने दिया। ग्वालिन ने लौटकर देखा तो उसके होश उड़ गए। वह तुरंत समझ गई कि यह उसके पाप और झूठ बोलने का फल है। उसने गांव में जाकर लोगों के सामने अपने पाप के लिए क्षमा मांगी। ग्वालिन की दशा जानकर लोगों ने उसे माफ कर दिया और वह पुनः जब खेत के समीप पहुंची तो उसका बालक जीवित मिला।

 माता देवकी ने छठ का व्रत किया

माता देवकी ने छठ का व्रत किया

एक अन्य आख्यान के अनुसार द्वापर युग में माता देवकी ने छठ का व्रत किया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस देवकी की सभी संतानों का वध कर रहा था। देवर्षि नारद ने देवकी को हल षष्ठी व्रत करने की सलाह दी थी। उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से ही बलराम और कृष्ण कंस पर विजयी हुए थे।

यह भी है मान्यता

यह भी है मान्यता

  • हलछठ का व्रत करने वालों के बीच मान्यता है कि इस दिन ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं खेतों में पैर नहीं रखती है और इस दिन हल की पूजा की जाती है।
  • व्रत करने वाले के लिए इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना वर्जित माना गया है।
  • इस दिन हल से जुता हुआ अन्न नहीं खाया जाता है। इस दिन वृक्ष पर लगे खाद्यान्न खाए जाते हैं।
  • माना जाता है कि इस दिन व्रती को महुए की दातून करना चाहिए।

English summary
Balarama is a Hindu deity and the elder brother of Krishna, Lord Balarama's birthday this year falls on August 13, and it is celebrated across the globe as Hal Shashti, Halayudha or Balaram Jayanti.
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