Diwali 2017: दिवाली में क्यों जगाते हैं मां लक्ष्मी को, क्या है इसकी कहानी?
लखनऊ। हिन्दूओं के बड़े त्यैहारों में अधिकतर त्यौहार पूर्णिमा तिथि में मनाने की परम्परा है। दीपावली ही एक ऐसा पर्व है, जो अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि दशरथ पुत्र राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासी रामचन्द्र जी को देखने के लिए लालयित थे, उस काल में बिजली आदि की व्यवस्था नहीं थी इसलिए चारों ओर दीपों को जलाकर जनमानस ने दीपों का प्रकाश उत्सव मनाकर रामचन्द्र जी का भव्य स्वागत किया और तभी से दीपावली में लक्ष्मी जी को जगाने की परम्परा भी प्रचलित हो गई। दिवाली की रात किसान अपनी उपजाऊ भूमि पर अग्नि को जलाकर धरती मां से जागने की प्रार्थना करते है। दीपदान के पश्चात सोई हुयी लक्ष्मी का हाथ में दीपक लेकर स्त्रियां जगाती है।
माना जाता है कि क्षीर सागर में पालनकर्ता भगवान विष्णु को सोया देखकर लक्ष्मी जी ब्राहम्णों से अभय प्राप्त करके कमल में रहने लगी। उसी लक्ष्मी को दिवाली के दिन महिलायें, व्यापरी, किसान आदि हाथ में दीपक लिए भगवान विष्णु से पहले जागने की प्रार्थना करते है। जैसे महिलायें ब्रहमकाल में पतियों से पहले जागती है, वैसे ही लक्ष्मी जी भी अपने पति भगवान विष्णु से 12 दिन पहले जागती है।
मिट्टी के दीयें ही क्यों जलाना चाहिए ?
दीपावली के पर्व में दीपक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। मिट्टी के दीपकों का महत्व इसलिए अधिक होता है क्योंकि इसमें पांचों तत्व पाये जाते है। मिट्टी में- आकाश, जल, अग्नि, वायु व पृथ्वी तत्व निहित होते है। हिन्दू त्यौहारों में पांच तत्वों की उपस्थित अपरिहार्य मानी गई है। पारम्परिक दीपकों की रोशनी पर चाइनीज झालरें, मोमबत्तियों आदि ने कब्जा कर रखा है, जिसके कारण कुम्भकार का पारम्परिक व्यवसाय धरातल में चला गया है। अतः आप सभी आर्टीफीशियल रोशनी का प्रयोग न करके मिट्टी के दीयों प्रयोग करें।
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